हालाखए
।
प्रश्न 22- सूरदास अथ्वा घनानंद का साहित्यिक परिचय निम्नलिखित बिदुओं के
आधार पर लिखिये।
1. दो रचनॉए 2 भाव पक्ष कला पक्ष
3. साहित्य मे स्थान
Answers
Answer:
सूरदास
जन्म- सन् 1478 ई. ( संवत् 1535 )
जन्म स्थान- दिल्ली के पास स्थित सीरी ग्राम में , कुछ विद्वान मथुरा के पास स्थित रेनुका (रेणुका) क्षेत्र को उनका जन्म स्थान मानते हैं ।
कर्मस्थली - मथुरा
स्वर्गवास - सन् 1583 ई.
रचनाएँ-
1. सूरसागर ( भगवान कृष्ण की लीलाओं से संबंधित 10000 पद संकलित हैं )
2. सूरसारावली ( सूरसागर का सार रूप लगभग 1107 पद संकलित हैं)
3. साहित्य लहरी ( इसमें रस और अलंकार से परिपूर्ण 118 पद हैं )
भाव पक्ष-
सूरदास प्रेम और सौन्दर्य के अमर गायक हैं । उनका भावपक्ष अत्यंत सबल है । जिसका विवरण निम्नानुसार है-
1. भक्ति भाव - सूरदास कृष्ण के अनन्य भक्त थे । उनकी रचनाओं में भक्ति भाव की अविरल गंगा बहती है । उनकी भक्ति धारा सख्यभाव की है, किन्तु इसमें विनय, दाम्पत्य और माधुर्य भाव का भी संयोग है ।
2. वात्सल्य रस का अद्वितीय प्रयोग - सूरदास वात्सल्य के सर्वोत्कृष्ट कवि हैं । इनकी रचनाओं में श्रीकृष्ण के बालचरित, शारीरिक श्री ,एवं नन्द और यशोदा के पुत्र- प्रेम ( वात्सल्य) का अद्भुत सौंदर्य विद्यमान है ।
3. श्रृंगार रस का चित्रण - सूरदास ने श्रृंगार रस का कोना -कोना झांक आए हैं । उनकी रचनाओं में संयोग एवं वियोग दोनों रूपों का मार्मिक चित्रण देखा जा सकता है ।
कलापक्ष -
1. ब्रज भाषा का लालित्यपूर्ण प्रयोग - सूरदास के पदों की भाषा ब्रज भाषा है । उनके पदों में ब्रज भाषा का लालित्यपूर्ण , परिष्कृत एवं निखरा हुआ रूप देखने को मिलता है । माधुर्य की प्रधानता के कारण इनकी भाषा अत्यंत प्रभावोत्पादक हो गई है ।
2.संगीतमय गेय पद शैली - सूरदास का संपूर्ण काव्य संगीत की राग - रागनियों में बँधा पद शैली का गीत काव्य है । व्यंग्य , वचनवक्रता और वाग्वैदग्धता सूर की रचना की विशेषता है ।
3. अलंकारों का सहज प्रयोग - सूर की रचनाओं में अलंकार का सहज रूप देखने को मिलता है । इनकी रचनाओं में मुख्यतः उपमा , उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार की छटा देखी जा सकती है । आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा था - अलंकारशास्त्र तो सूर के द्वारा अपना विषय वर्णन शुरू करते ही उनके पीछे दौड़ पडता है , उपमानों की बाढ़ आ जाती है ,रूपकों की बर्षा होने लगती है ।
साहित्य में स्थान -
सूरदास भक्तिकाल के अष्टछाप कवियों में श्रेष्ठ कवि हैं । वे वात्सल्य और श्रृंगार रस के सिध्द आचार्य हैं। भाव तथा कलापक्ष की जो गरिमा सूरदास में है , वह अन्यत्र दुर्लभ है। सूर हिंदी साहित्याकाश के सूर (सूर्य) हैं । उनके लिए यह कथन सर्वथा उपयुक्त है -
सूर , सूर तुलसी शशि उडगन केशव दास।