होली: रंगों का त्योहार पर निबंध | Write an essay on Holi : Festival of Colors in Hindi
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होली हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है । यह मौज-मस्ती व मनोरंजन का त्योहार है। सभी हिंदू जन इसे बड़े ही उत्साह व सौहार्दपूर्वक मनाते हैं । यह त्योहार लोगों में प्रेम और भाईचारे की भावना उत्पन्न करता है ।
होली अन्य सभी त्योहारों से थोड़ा हटकर है । इसका संदेश मौज-मस्ती से परिपूर्ण है। मानव समुदाय अपने समस्त दु:खों, उलझनों एवं संतापों को भुलाकर ही इस त्योहार को उसकी संपूर्णता के साथ मना सकता है । फाल्गुन की पूर्णिमा ही नहीं अपितु पूरा फाल्गुन मास होली के रंगों से सराबोर हो जाता है । होली का त्योहार ज्यों-ज्यों निकट आता जाता है त्यों-त्यों हम नए उत्साह से ओत-प्रोत होने लगते हैं ।
होली का पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । इस पर्व का विशेष धार्मिक, पौराणिक व सामाजिक महत्व है । इस त्योहार को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है । प्राचीनकाल में हिरण्यकश्यप नामक असुर राजा ने ब्रह्मा के वरदान तथा अपनी शक्ति से मृत्युलोक पर विजय प्राप्त कर ली थी ।
अभिमानवश वह स्वयं को अजेय समझने लगा । सभी उसके भय के कारण उसे ईश्वर के रूप मे पूजते थे परंतु उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर पर आस्था रखने वाला था । जब उसकी ईश्वर भक्ति को खंडित करने के सभी प्रयास असफल हो गए तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को यह आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती हुई आग की लपटों में बैठ जाए क्योंकि होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था ।
परंतु प्रह्लाद के ईश्वर पर दृढ़-विश्वास के चलते उसका बाल भी बांका न हुआ बल्कि स्वयं होलिका ही जलकर राख हो गई । तभी से होलिका दहन परंपरागत रूप से हर फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है ।
होलिका दहन के दिन रंगों की होली होती है जिस दुल्हैड़ी भी कहा जाता है । इस दिन बच्चे, बूढ़े और जवान सभी आपसी वैर भुलाकर होली खेलते हैं । सभी होली के रंग में सराबोर हो जाते हैं । वे एक-दूसरे पर रंग डालते हैं तथा गुलाल लगाते हैं । ब्रज की परंपरागत होली तो विश्वविख्यात है जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं ।
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होली अन्य सभी त्योहारों से थोड़ा हटकर है । इसका संदेश मौज-मस्ती से परिपूर्ण है। मानव समुदाय अपने समस्त दु:खों, उलझनों एवं संतापों को भुलाकर ही इस त्योहार को उसकी संपूर्णता के साथ मना सकता है । फाल्गुन की पूर्णिमा ही नहीं अपितु पूरा फाल्गुन मास होली के रंगों से सराबोर हो जाता है । होली का त्योहार ज्यों-ज्यों निकट आता जाता है त्यों-त्यों हम नए उत्साह से ओत-प्रोत होने लगते हैं ।
होली का पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । इस पर्व का विशेष धार्मिक, पौराणिक व सामाजिक महत्व है । इस त्योहार को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है । प्राचीनकाल में हिरण्यकश्यप नामक असुर राजा ने ब्रह्मा के वरदान तथा अपनी शक्ति से मृत्युलोक पर विजय प्राप्त कर ली थी ।
अभिमानवश वह स्वयं को अजेय समझने लगा । सभी उसके भय के कारण उसे ईश्वर के रूप मे पूजते थे परंतु उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर पर आस्था रखने वाला था । जब उसकी ईश्वर भक्ति को खंडित करने के सभी प्रयास असफल हो गए तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को यह आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती हुई आग की लपटों में बैठ जाए क्योंकि होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था ।
परंतु प्रह्लाद के ईश्वर पर दृढ़-विश्वास के चलते उसका बाल भी बांका न हुआ बल्कि स्वयं होलिका ही जलकर राख हो गई । तभी से होलिका दहन परंपरागत रूप से हर फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है ।
होलिका दहन के दिन रंगों की होली होती है जिस दुल्हैड़ी भी कहा जाता है । इस दिन बच्चे, बूढ़े और जवान सभी आपसी वैर भुलाकर होली खेलते हैं । सभी होली के रंग में सराबोर हो जाते हैं । वे एक-दूसरे पर रंग डालते हैं तथा गुलाल लगाते हैं । ब्रज की परंपरागत होली तो विश्वविख्यात है जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं ।
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होली हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है । यह मौज-मस्ती व मनोरंजन का त्योहार है। सभी हिंदू जन इसे बड़े ही उत्साह व सौहार्दपूर्वक मनाते हैं । यह त्योहार लोगों में प्रेम और भाईचारे की भावना उत्पन्न करता है ।
होली अन्य सभी त्योहारों से थोड़ा हटकर है । इसका संदेश मौज-मस्ती से परिपूर्ण है। मानव समुदाय अपने समस्त दु:खों, उलझनों एवं संतापों को भुलाकर ही इस त्योहार को उसकी संपूर्णता के साथ मना सकता है । फाल्गुन की पूर्णिमा ही नहीं अपितु पूरा फाल्गुन मास होली के रंगों से सराबोर हो जाता है । होली का त्योहार ज्यों-ज्यों निकट आता जाता है त्यों-त्यों हम नए उत्साह से ओत-प्रोत होने लगते हैं ।
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