Hindi, asked by govindram91, 8 months ago

हाल तक गरु से मार खाकर लडके जब घर रोते-रोते पहँचते थे तो माता-पिता यही कहते थ, Jo गुरु Se maar
खाते हैं उनका भविष्य उज्ज्वल होगा ही। मगर आज गरु किसी बच्चे को पीटे तो उन पर आभभावक मुकdama
चला देगा। आज के गुरु भी सिर्फ सेवा लेने में ही चतुर हैं, देने में नहीं। उपनिषदों में आचार्यों ने कहा है, seवा
देने की चीज़ है, लेने की नहीं।" सेवा लेने के अधिकारी बच्चे, रोगी, असहाय और वृद्ध हैं। बच्चों का परमश्वर
का ही मूर्त रूप समझ सेवा रूपी पूजा से उनकी शक्ति को प्रज्वलित करने की क्षमता और सहृदयता रखने वाल
ज्ञानी और तपस्वी पुरोहित आजकल के गुरु नहीं रह गए हैं। किसी भी देव-मंदिर की मूर्ति की शक्ति उतनी मात्रा
तक ही संभव है जितनी मात्रा तक उसके पुजारी की भाव-पूजा में नैवेद्य-भावना भरी रहती है। मूर्ति में स्वयं कुछ
भी नहीं है। पुजारी की शक्ति ही मूर्ति में विकसित होने लगती है। काश, भारतीय संस्कृति का यह रहस्य भारतीय
समझ पाते। इसका ज्ञान न होना ही तो आज हमारे सारे दु:खों का कारण है।
1. गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
2. आज के गुरु किस बात में चतुर हैं?
3. 'गुण' शब्द में उपसर्ग लगाकर विलोम बनाइए।
4. भारतीय संस्कृति का कौन-सा रहस्य लोग भूल चुके हैं?
5. मूर्ति की शक्ति वस्तुतः क्या है?​

Answers

Answered by kumarravinder4126
3

Answer:

change in think is chapter name

Answered by pathakshobha300033
5

( 1 ) - सेवा एक दान।

( 2 ) - आज के गुरु सेवा लेने में चतुर हैं वह बच्चों को पढ़ा कर उन्हें शिक्षित कर कर अपना सेवा नहीं देते बल्कि वह बच्चों से सिर्फ सेवा लेते हैं।

( 3 ) - अवगुण।

( 4 ) - भारतीय संस्कृति के लोग आज ही भूल चुके हैं की महानता सेवा लेने में नहीं बल्कि दूसरों की सेवा करने में है लोग यह भूल चुके हैं कि सेवा और विश्वास में ही असली सकती हैं।

( 2 ) - मूर्ति की शक्ति का मतलब यह है मंदिर में रखे भगवान की पत्थर की मूर्ति को कभी भगवान ने माना जाता अगर पूजा करने वालों के मन में श्रद्धा ना होती पुजारी का श्रद्धा मूर्ति को भगवान बनाता है और शक्ति देता है।

Similar questions