हिम्नहलखित पिंखक्तयोिं का सिंदर्िसह त र्ाव सपष्ट करें| 10
क. पुजा और पुजापा प्रभुवर |
इसी पुजाररन को समझो |
दान – दटक्षणा और टनछावर,
इसी टभखारन को समझो
ख. मै उन्मत प्रेम की प्यासी , हृदय टदखने आई हुँ
जो कु छ है वह यही पास है, इसेचढाने आई हुँ
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Answers
Answer:
देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं
धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुएं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी
धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं
हाय ! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं
कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आयी
पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो
मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ
चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो
ठुकरा दो या प्यार करो कविता में कवयित्री ने यह दिखाया है कि भगवान की उपासना सच्चे ह्रदय से की जाती है, न कि ठाट-बाट और आडंबरों से। कवियित्री कहती है, हे भगवान् आपके भक्त बहुत है। जो आपके लिए बहुमूल्य वस्तुएं अपने साथ लाते हैं। बहुत धूमधाम के साथ वह मंदिर आते हैं।