हिन्दीभाषया आशयं स्पष्टीकुरुत
(क) सत्यानुसरणं सत्यस्यार्थे हरिश्चन्द्रवनिर्विकल्पेन मनसा क्लेशानामनुभवः।
(ख) निस्संख्यवारमिदं नाटकं मया स्वयं मनसा प्रयुक्तं स्यात्।
(ग) श्रवणस्य पितृभक्तिरादर्शरूपेण त्वया स्थापनीयेत्यात्मनात्मानमबोधयम्।
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हिन्दीभाषया आशयं अस्य प्रकारः....
इन पंक्तियों का हिन्दी भाषा में आशय इस प्रकार है....
(क) सत्यानुसरणं सत्यस्यार्थे हरिश्चन्द्रवनिर्विकल्पेन मनसा क्लेशानामनुभवः।
हिंदी भाषार्थ ►गाँधी जी कहते हैं कि सत्य का अनुसरण करते हुए लोग हरिश्चन्द्र के समान निर्विकार भाव सत्य का पालन क्यों नही करते। वे सत्य का पालन करते हुये मन में क्लेश का अनुभव क्यों करते हैं।
(ख) निस्संख्यवारमिदं नाटकं मया स्वयं मनसा प्रयुक्तं स्यात्।
हिंदी भाषार्थ ► गाँधी जी कहते हैं कि उस नाटक को देखते हुए अंसख्य बार मेरे मन में प्रतीत हुआ कि वो नाटक मैं स्वयं ही प्रस्तुत कर रहा हूँ, ऐसा लग रहा था कि मैं उस नाटक एक पात्र हूँ।
(ग) श्रवणस्य पितृभक्तिरादर्शरूपेण त्वया स्थापनीयेत्यात्मनात्मानमबोधयम्।
हिंदी भाषार्थ ►श्रवण की पितृभक्तिरूप के आदर्श रूप को तुम्हे भी अपने जीवन और आचरण में स्थापित करना चाहिये, ऐसा गांधी जी ने अपने मन में विचार किया।
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संस्कृत (शास्वती) ◘ कक्षा - 11 ◘ द्वादश पाठः (पाठ - 12)
।। गांधिनः संस्मरणम् ।।
इस पाठ से संबंधित कुछ अन्य प्रश्न...▼
संस्कृतेन उत्तरं दीयताम्
(क) प्रस्तुतः पाठः कस्माद् ग्रन्थात् सङ्कलितः?
(ख) गान्धिनः आत्मकथा मूलतः कस्यां भाषायां लिखिता ?
(ग) गान्धिनः आत्मकथायाः संस्कृतभाषायाम् अनुवादकः कः?
(घ) महात्मा गाँधी किन्नाम नाटकम् अपठत् ?
(ङ) गान्धिनः ग्राम के उपागच्छन्?
(च) गान्धिनः मनसि कयो: विलापः पनः पनः श्रयते स्म?
(छ) महात्मा गान्धी हरिश्चन्द्रनाटकं द्रष्टुं कस्य अनुज्ञाम् अध्यगच्छत्?
(ज) कस्य कथायां सत्यत्वप्रतीति: आसीत?
(झ) कौ गान्धिन: हृदये नित्यसन्निहितौ आस्ताम्?
(ञ) कीदृशस्य श्रवणस्य प्रतिकृति: गान्धिना अवलोकिता?
(ट) गान्धिनः मनसा किं प्रयुक्तम् आसीत्?
(ठ) कः प्रश्न: गान्धिन: मनसि पुन: पुन: स्फुरति स्म?
https://brainly.in/question/15100221
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रिक्त स्थानानि पूरयत
(क) ग्रामात् ग्राम.................पुत्तलिकाप्रदर्शनोपजीविनः उपागच्छन्?
(ख) श्रवणस्य पितृभक्तिः .......... त्वया स्थापनीया।
(ग) स राग: में ................... तन्मयमकरोत।
(घ) अनेकशः मे नेत्राभ्याम् ..... विस्सारितानि।
(ङ) हरिश्चन्द्रश्रवणौ .......... मम हृदये नित्यसन्निहितौ।
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