Hindi, asked by suyash8950, 11 months ago

हिन्दू मुस्लिम एकता पर निबंध इन हिंदी​

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Answered by shabeetakapoor62
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Explanation:

हिन्दू धर्म में जिस तरह जगराता और भजन संध्या जैसा जनमानस को अध्यात्म और भक्ति से जोड़ने व मन को शांति व संकल्प को संतोष देने वाला गीत-संगीत से जुड़ा कार्यक्रम होता है, वैसे ही मुस्लिम समुदाय में नात शायरी की हैसियत है। रमजान के मौके पर इसके आयोजन बहुतायत में होते हैं। उर्दू और फ़ारसी में इसे नात-ए-शरीफ़ कहते हैं।

यह इस्लामी साहित्य में एक पद्य रूप है जिसमें पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब की तारीफ़ करते लिखी जाती है। इस पद्य रूप को बड़े अदब से गाया भी जाता है। अक्सर नात-ए-शरीफ़ लिखने वाले आम शायर को नात गो शायर कहते हैं और इसे महफिल में प्रस्तुत करने वाले को नात ख्वां कहते हैं। यह नात ख्वानी का चलन भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में आम है। भाषा के अनुसार उर्दू, पश्तो, पंजाबी, सिन्धी व बंगाली भाषा में नात ख्वानी प्रचलित है। अन्य मुस्लिम देशों में नात ख्वां तुर्की, फ़ारसी, अरबी, कश्मीरी भाषा में भी पढ़ी जाती है।

देश में जहां कई जगहों पर छोटी-छोटी बातों को लेकर दोनों संप्रदायों के बीच जहर घोलने की कोशिश की जाती है, वहीं इससे इतर जबलपुर (मध्यप्रदेश) के निवासी तिलकराज 'पारस' सांप्रदायिक सौहार्द की अनोखी पहल को अंजाम पिछले 40 सालों से दे रहे हैं। आश्चर्य होता है की मुस्लिम संस्कृति के इस धार्मिक और अध्यात्म से जुड़े लेखन में कोई एक शख्स है, जो हिन्दू होकर भी इसमें रमा है और अपने तरीके से हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम कर रहा है।

नात शरीफ़, नात-ए-पाक शायर, नातिया कलाम के हिन्दू शायर तिलकराज 'पारस' का शुमार हिन्दोस्तान के बहुत ही मशहूर शायरों में होता है। गैरमुस्लिम होते हुए भी उन्होंने बेहद खूबसूरत नाते पाक कहे हैं। वे 23 जनवरी 1951 को जन्मे हैं। इनका पूरा नाम तिलकराज तिलवानी है, जो कि सिन्धी समाज से आते हैं। शायर ने उपनाम 'पारस' रखा, जो बाद में तिलकराज 'पारस' के नाम से नात शायरी के पुख्ता स्तंभ के रूप में दिख रहा है। इनके उस्ताद अब्दुल अंजुम साहब थे और इन्होंने इस आदाबी शायरी का सफर 1975 से शुरू किया।

ऐसे वक्त, जब वर्तमान सरकार 'सेकुलर हिन्दू राष्ट्र' की अवधारणा में एक के बाद एक मुस्लिम समाज की दिक्कतों को दूर करते हुए विकास की मुख्य धारा से उन्हें जोड़ने का काम कर रही है तब हिन्दू शायर द्वारा मुस्लिम समाज को नात शायरी के रूप में दिया जा रहा तोहफा राष्ट्र की इस अवधारणा को मजबूत कर रहा है। पिछले दिनों दिल्ली में उनसे हुई मुलाक़ात को आपके सामने रखते हुए हम मौजूदा सरकार की कोशिशों में एक शख्स की कोशिशों को भी जानने का प्रयास कर रहे हैं।


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Answered by Anonymous
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Explanation:

जहाँ लोग धर्म के नाम पर मर-मिटने को तैयार हो जाते हैं। एक-दूसरे के धर्म को श्रेष्ठ बताते हुए अन्य धर्म की आलोचना करते हैं। वहीं रायपुर में एक ऐसे भी व्यक्ति है, जो एक धर्म से परे हटकर सभी धर्मों को समान समझकर निःस्वार्थ भाव से अपना कार्य कर रहा है। उस शख्स का नाम है 'केंवटदास बैरागी (वैष्णव)।'

रायपुर के राजा तालाब पंडरी निवासी साठ वर्षीय केंवटदास बैरागी एक हिन्दू होते हुए पिछले 12 वर्षों से रमजान के मौके पर आधी रात को उठकर सेहरी के लिए मुस्लिमों को जगाने निकलते हैं। वे रात 2 बजे उठते हैं और सफेद कुर्ता, पायजामा पहनकर, सिर पर पगड़ी बाँधकर ढोलक बजाते नात-ए-पाक गाते हुए निकलते हैं। उनकी आवाज सुनकर मुस्लिम जागते हैं। वे सुबह 5 बजे अपने घर लौट आते हैं।

इसके बाद शंकरजी व बजरंगबली की पूजा-अर्चना करके दो-तीन घंटे परिवार वालों के साथ बिताते हैं फिर वे गली-गली खिलौना बेचने निकल जाते हैं।

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