हारे हुए कोबायाशी का जर्जर मन इन दोनों अनुभवों से खीजकर कराह उठा।"" ये दोनों अनुभव कौन से थे?
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होश में आने के बाद कोबायाशी को मौत के पंजे से छूटकर निकल जाने पर जो अनुभव हुए, वे दोनों ही अनुभव उसे निराश कर देने वाले थे। एक तो मौत से बच जाने पर उसके तन को जीवनदायिनी स्फूर्ति मिलनी चाहिए थी, दूसरी मन को शान्ति मिलनी चाहिए थी, परन्तु इसके विपरीत उसका दिल फिर गफलत में डूबने लगा था। इससे परेशान होकर वह तन और मन की कमजोरी के साथ चिढ़ उठा।
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