हार जीत कविता जो अशोक बाजपेई के द्वारा रचित है इसका केंद्रीय भाव क्या है
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हार के आगे जीत है साथी हार से मत घबड़ाना,
हार से हार के हार गया तो हँसेगा ये जमाना
जीत हुई इंसानों की और हार भी इंसान की,
हम भी तो इंसान हैं साथी फिर आदत क्यों हार की
हार को अपनी ढाल बनाकर जीत की जंग जीत लाना,
जीत के जब तुम दिखलाओगे, देखेगा जमाना
हार के आगे जीत है साथी..............
लक्ष्य तुम्हें जो पाना है उस लक्ष्य पर नज़र गड़ाओ,
पीछे मुड़कर कभी ना देखो, आगे बढ़ते जाओ
कर्म ही पूजा समझ के साथी कर्म को करते जाना,
फल तो ऊपर वाले देंगे, जो भी होगा देना
हार के आगे जीत है साथी..............
नफ़रत में तुम प्यार घोलकर हर मुकाम पा सकते हो,
सच्चाई की राह चुनकर हरिश्चन्द्र बन सकते हो
जब भी रावण सामने आए श्री राम बन जाना,
कंश अगर आ जाए सामने कृष्ण बनकर दिखलाना
हार के आगे जीत है साथी..............
नीचे तो धरती है पर ऊपर का कोई अंत नहीं,
सबसे पीछे हार है आगे जीत का कोई अंत नहीं
नई-नई ऊंचाई छूकर नया इतिहास बनाना,