Hindi, asked by kartavyalkr, 9 months ago

हार जीत कविता जो अशोक बाजपेई के द्वारा रचित है इसका केंद्रीय भाव क्या है​

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Answered by shekharanand52
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Answer:

हार के आगे जीत है साथी हार से मत घबड़ाना,

हार से हार के हार गया तो हँसेगा ये जमाना

जीत हुई इंसानों की और हार भी इंसान की,

हम भी तो इंसान हैं साथी फिर आदत क्यों हार की

हार को अपनी ढाल बनाकर जीत की जंग जीत लाना,

जीत के जब तुम दिखलाओगे, देखेगा जमाना

हार के आगे जीत है साथी..............

लक्ष्य तुम्हें जो पाना है उस लक्ष्य पर नज़र गड़ाओ,

पीछे मुड़कर कभी ना देखो, आगे बढ़ते जाओ

कर्म ही पूजा समझ के साथी कर्म को करते जाना,

फल तो ऊपर वाले देंगे, जो भी होगा देना

हार के आगे जीत है साथी..............

नफ़रत में तुम प्यार घोलकर हर मुकाम पा सकते हो,

सच्चाई की राह चुनकर हरिश्चन्द्र बन सकते हो

जब भी रावण सामने आए श्री राम बन जाना,

कंश अगर आ जाए सामने कृष्ण बनकर दिखलाना

हार के आगे जीत है साथी..............

नीचे तो धरती है पर ऊपर का कोई अंत नहीं,

सबसे पीछे हार है आगे जीत का कोई अंत नहीं

नई-नई ऊंचाई छूकर नया इतिहास बनाना,

अमावस्या के रात में भी चाँद सी चमक दिखाना

हार के आगे जीत है साथी..............

प्रयास करो करते रहो अभियान सफल हो जाएगी,

रौशनी आगे डाल के देखो परछाईं खुद पीछे हो जायेगी

मंजिल ज्यादा दूर नहीं है कदम बढ़ाते जाना,

स्वागत के लिए जीत खड़ी है जीत को गले लगाना

हार के आगे जीत है साथी..............

- रणजीत ‘शेखपुरी’

- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।

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