हास्य रस की परिभाषा और उदाहरण
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हास्य रस की परिभाषा और उदाहरण इस प्रकार हैं...
हास्य रस की परिभाषा के अनुसार ‘जब दूसरों की चेष्टा को देखकर या उसके अनुकरण करने से जो हास्य से उत्पन्न होता है अथवा किसी वस्तु, व्यक्ति के विकृत आकार, वेशभूषा, वाणी, चेष्टा आदि से व्यक्ति को बरबस हंसी आ जाए तो वहां का हास्य रस की उत्पत्ति होती है।’
उदाहरण...
ना वाहन नाना वेषा । बिहसे शिव समाज निज देखा ।।
कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू । बिन पद-कर कोऊं बहु-बाहु ।।
इन पंक्तियों में हास्य रस है।
हास्य रस का स्थाई भाव हास होता है।
व्याख्या :
उपरोक्त पंक्तियों में हास्य रस प्रकट हो रहा है और हास्य रस का स्थाई भाव हास होता है। उपरोक्त पंक्तियों में स्थाई भाव हास के आलंबन - शिव समाज, आश्रय - शिव उद्दीपन विचित्र वेशभूषा, अनुभाव - शिव जी का हंसना और संचारी भाव - रोमांच, हर्ष, चापल्य आदि हैं। इससे इन सब तत्वों से पुष्ट हुआ हास नामक स्थाई भाव हास्य रस की अवस्था को प्राप्त हुआ है।
#SPJ3
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