हास्य रस का दो उदाहरण बताए
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कथा सुनि भे मुनिवृन्द सुखारे। तं च क्रौंचपते: शिखी च गिरिजा सिंहोऽपिनागानर्न। निविं्वष्ण: स पयौ कुटुम्बकलहादीशोऽपिहालाहलम्।। चौंकि परो पितुलोक में बाप, सो आपके देखि सराध के पेरे।।
बिन्ध्य के बासी उदासी तपो ब्रतधारि महा बिनु नारि दुखारे। गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिबृन्द सुखारे॥ ढहैं सिला सब चन्द्रमुखी परसे पद मंजुल कंज तिहारे। ... 'मुनियों की कथा आदि सुनना' अनुभाव हैं तथा 'हर्ष, उत्सुकता, चंचलता' आदि संचारी भाव हैं।
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1. सीरा पर गंगा हसै, भुजानि में भुजंगा हसै
हास ही को दंगा भयो, नंगा के विवाह में ||
2. नाना वाहन नाना वेषा।
बिहसे सिव समाज निज देखा।।
कोउ मुख-हीन बिपुल मुख काहू।
बिन पद-कर कोउ बहु पद-बाहु।।
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