हास्य रस का उदाहरण दीजिए???
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तुलसीदास द्वारा लिखी गई यह पंक्तियां हास्य रस का उदाहरण है:
बिन्ध्य के बासी उदासी तपो ब्रतधारि महा बिनु नारि दुखारे।
गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिबृन्द सुखारे॥
ढहैं सिला सब चन्द्रमुखी परसे पद मंजुल कंज तिहारे।
कीन्हीं भली रघुनायक जू ! करुना करि कानन को पगु धारे॥
Explanation:
इसका स्पष्टीकरण कुछ इस प्रकार है:
इस छन्द में स्थायी भाव ‘हास’ है। ‘रामचन्द्रजी’ आलम्बन हैं, ‘गौतम की स्त्री का उद्धार’ उद्दीपन है। ‘मुनियों की कथा आदि सुनना’ अनुभाव हैं तथा ‘हर्ष, उत्सुकता, चंचलता’ आदि संचारी भाव हैं। इसमें हास्य रस का आश्रय पाठक है तथा आलम्बन हैं–विन्ध्य के उदास वासी।
Dear Queen,
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- हाथी हाथी जैसी देह
- गैंडे जैसी चाल
- तरबूजे सी खोपड़ी, खरबूजे से गाल
- बुरे समय को देखकर गंजे तू क्यों रोए
- किसी भी हालत में तेरा बाल न बांका hoye कोई कील चुभ आए तो उसे हथोड़ा मार
- इस युग में तो चाहिए Jas ko tas vyavhar
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