हाट, बाट, कोट, ओट, अट्टनि, अगार, पौरि, खोरि खोरि दौरि दौरि दीन्ही अति आगि है। आरत पुकारत, सँभारत न कोऊ काहू, ब्याकुल जहाँ सो तहाँ लोग चले भागि हैं।। बालधी फिरावै बार बार झहरावै, झरै बुंदिया सी लंक पघिलाइ पाग पागिहैं। तुलसी बिलोकि अकुलानी जातुधानी कहैं "चित्रहू के कपि सों निसाचर न लागिहैं" |
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harsh93198
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