History, asked by ambeshbhoop9785, 9 months ago

हिटलर जर्मनी में शक्तिशाकी कैसे बना

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Answered by susmita1996
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एडॉल्फ हिटलर का जन्म आस्ट्रिया के वॉन नामक स्थान पर 20 अप्रैल को 1889 में हुआ। हिटलर नाजी पार्टी से जुड़ा था। 1933 में वह जर्मनी का चांसलर बना और इसके साथ ही उसकी ताकत बढ़ती गई। 1934 में वह जर्मनी का अधिनायक बना। 1933 से 1945 तक वह जर्मनी का तानाशाह रहा। पहले विश्वयुद्ध में जर्मनी के अपमान का वह बदला लेना चाहता था। उसने 1 सितंबर, 1939 को पोलैंड पर हमला करके यूरोप में दूसरा विश्वयुद्ध शुरू कर दिया।

नाज़ीवाद के उदय के कारण

प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक चला . इसमें जर्मनी हार गया .युद्ध के कारण उसकी बहुत क्षति हुई . इन सब के ऊपर ब्रिटेन, फ़्रांस आदि मित्र राष्ट्रों ने उस पर बहुत अधिक दंड लगा दिए . उसकी सेना बहुत छोटी कर दी, उसकी प्रमुख खदानों पर कब्ज़ा कर लिया तथा इतना अधिक अर्थ दंड लगा दिया कि अनेक वर्षों तक अपनी अधिकांश कमाई देने के बाद भी कर्जा कम नहीं हो रहा था .१९१४ में एक डालर =४.२ मार्क था जो १९२१ में ६० मार्क, नवम्बर १९२२ में ७०० मार्क,जुलाई १९२३ में एक लाख ६० हजार मार्क तथा नवम्बर १९२३ में एक डालर = २५ ख़राब २० अरब मार्क के बराबर हो गया . अर्थात मार्क लगभग शून्य हो गया जिससे मंदी, मंहगाई और बेरोजगारी का अभूतपूर्व संकट पैदा हो गया . उस समय चुनी हुई सरकार के लोग अपना जीवन तो ठाट- बात से बिता रहे थे परन्तु देश की समस्याएँ कैसे हल करें , उन्हें न तो इसका ज्ञान था और न ही बहुत चिंता थी . ऐसे समय में हिटलर ने अपने ओजस्वी भाषणों से जनता को समस्याएँ हल करने का पूरा विश्वास दिलाया . इसके साथ ही उसके विशेष रूप से प्रशिक्षित कमांडों विरोधियों को मरने तथा आतंक फ़ैलाने के काम भी कर रहे थे जिससे उसकी पार्टी को धीरे- धीरे सत्ता में भागीदारी मिलती गई |

बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर उन्हे चांसलर बनने के लिए आमंत्रित किया गया। सन् 1933 में उन्होंने इस पद को स्वीकार कर लिया। 1934 में उन्होने राष्ट्रपति और चांसलर के पद को मिलाकर एक कर दिया। और उन्होंने राष्ट्र नायक की उपाधि धारण की। हिटलर तथा उनकी पार्टी के उत्थान के निम्नलिखित कारण थे जो इस प्रकार है।

वर्साय की संधि

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात यूरोप राष्ट्रों ने वर्साय की संधि की। जिसका प्रमुख उद्देश्य जर्मनी को कुचलना था। इसके द्वारा जर्मनी को आर्थिक राजनीतिक तथा अंतराष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से पुर्णत: पंगु बना दिया गया। वस्तुत: वर्साय की संधि जर्मनी की सारी तकलीफों की जड़ थी। जर्मन निवासी अपने प्राचीन गौरव को पुन: प्राप्त करना चाहते थे। और वह एक ऐसे नेता की तलाश में थे जो उनके राष्ट्र कलंक को मिटाकर जर्मनी के गौरव का पुर्ण उत्थान कर सके। हिटलर के व्यक्तित्व में उन्हें ऐसा नेता की तस्वीर दिखाई दी। उन्हें यह विश्वास हो गया की हिटलर के नेतृत्व में ही जर्मनी का उत्थान संभव है। हिटलर ने वर्साय की संधि की आलोचना करनी शुरु कर दी और लोगों के हृदय में इसके प्रति नफरत पैदा कर दी। उन्होंने जर्मन जाति के एक राजनीतिक सुत्र में बाँध कर लोगों के समक्ष जर्मन निर्माण का प्रस्ताव रखा। वे भाषण देने की कला में प्रवीण थे उनकी वाणी जादू का काम करती थी। यह कहा जा सकता है कि हिटलर ने अपनी जुबान की ताकत से जर्मनी की सत्ता हथिया ली।

जातीय परम्परा

जर्मन जाति का निजी परंपरा और प्रकृति ने भी हिटलर के उत्थान में सहयोग प्रदान किया। जर्मन स्वभावत: वीर और अनुशासन प्रिय होते हैं। अत: उन्होंने हिटलर के अधिनायकवाद को स्वीकार कर लिया। हिटलर ने जनता के समक्ष कोई नवीन कार्यक्रम नहीं रखा उन्होने वहीं किया जो व्हीगल, कॉन्ट और किक्टे आदि कर चुके थे। उनकी विचारधारा संपूर्ण जर्मन विचारधारा का निचोड़ ली इसलिए जनता ने उन्हें स्वीकार कर लिया।

आर्थिक संकट

जर्मनी में आर्थिक संकट के चलते भी हिटलर का उत्थान हुआ। वर्साय की संधि के फलस्वरुप जर्मनी की आर्थीक स्थिति काफी खराब हो गई थी। हिटलर ने जनता को पूँजीपतियों और यहुदियों के खिलाफ भड़काना शुरु किया। 1930 में जर्मनी ने 50 लाख से अधिक व्यक्ति बेकार हो गए थे। वे सभी हिटलर के समर्थक बन गए। अत: यह कहा जा सकता है कि आर्थीक संकट के चलते हिटलर तथा उसकी पार्टी को काफी सफलता मिली।

यहूदी विरोधी भावना

इस समय संपूर्ण जर्मनी में यहुदियों के खिलाफ असंतोष फैला हुआ था। जर्मनी की पराजय के लिए यहुदियों को ही उत्तरदायी ठहराया जा रहा था। हिटलर इसे भली- भांती जानता था। जनता का कद्र करते हुए उन्होंने यहुदियों को देश से निकालने की घोषणा की। हिटलर की इस घोषणा से जनता ने इसका साथ देना शुरु किया।

साम्यवाद का विरोध

हिटलर के उदय का एक महत्वपूर्ण कारण साम्यवाद का विरोध भी था। हिटलर ने साम्यवादियों के खिलाफ नारा बुलंद किया और जनता का दिल जीत लिया। इस समय पूँजीपति, जमींदार, पादरी सभी साम्यवाद के बढ़ते हुए प्रभाव से आतंकित था। वे जर्मनी को साम्यवाद के चंगुल से मुक्त कराना चाहते थे। इसलिए हिटलर ने साम्यवाद की तीखी आलोचना की और इसके विकल्प में राष्ट्रीय समाजवाद का नारा बुलंद किया जो नाजी दल का दुसरा रूप था।

संसदीय परंपरा का अभाव

वहाँ के संसदीय शासन में दुगुर्णों के चलते भी जनता में काफी असंतोष था। वे इस व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे। जब राजनीतिक व्यवस्था में लोगों का विश्वास घट जाता है तो तानाशाही के लिए रास्ता साफ हो जाता है जर्मन के साथ भी यही बात हुई। संसदीय शासन प्रणाली में जब उनका विश्वास समाप्त हो गया तो उन्होंने हिटलर का साथ देना शुरु किया।

जर्मनी जनता की प्रवृति

जर्मनी जनता की अभिरुचि सैनिक जीवन में थी। वे स्वभाव से वीर और सैनिक प्रवृत्ति के थे परन्तु वर्साय की संधि के द्वारा वहाँ की सैनिक संख्या घटा दी गई थी। फलत: काफी संख्या में लोग बेरोजगार हो चुके थे। हिटलर तथा उनकी पार्टी के सदस्य जनता की स्थिति से भली भांति परिचित थे। अत: जब उन्होंने स्वंयसेवक सेना का गठन किया तो भारी संख्या में युवक उसमें भर्ती होने लगे। इससे बेकारी की समस्या का भी समाधान हुआ और हिटलर को उत्थान करने का मौका मिला।

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