India Languages, asked by aayuahpalbalaji108, 3 months ago

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गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
ते निर्गुण प्राप्य भवन्ति दोषाः।
सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।
साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः
साक्षात्यशुः पुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः
तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ।।2।।
लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री
नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः।
विद्याफल व्यसनिनः कृपणस्य सौख्य
राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य ।3।। ​

Answers

Answered by samraparveen0079103
3

Ans: जिस प्रकार गुणियों में गुण होते हैं, परंतु गुणहीनों की संगत में रहकर स्वयं भी गुणहीन हो जाते हैं। जो साहित्य, संगीत ,कला से विहीन है, वह पूँछ और सींग के बिना साक्षात पशु है। घास न खाते हुए भी वह जीवित रहता है, यह पशुओं के लिए सौभाग्य की बात है।लोभी का यश नष्ट हो जाता है, चुगली करने वालो की मित्रता नष्ट हो जाती है। (निकम्मे) निष्कर्मण्य का कुल, अर्थपरक का धर्म, व्यसनी की विद्या का फल, कंजूस का सुख और प्रमत्त मंत्री वाले राजा का राज्य नष्ट हो जाता है।

Answered by nirmalakatara007
1

Answer :

Hope you like my answer

_________________________

Thank you

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