हिंदी भाषा का विकास ,स्वरूप और लक्षण को विस्तार पूर्वक समझाइये।हिंदी भाषा का प्रयोग और लिपि का भी वर्णन कीजिये।
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हिंदी भाषा का विकास;-
हिंदी भाषा की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है।500 ई. पू के मध्य साहित्यकारों ने संस्कृत के कठोर व्याकरणिक नियमो त्याग कर उस समय के लोकभाषा प्राकृत को अपनाया।प्राकृत भाषा से”अपभ्रंस”नामक लोकभश का विकास हुआ।हिंदी ,पंजाबी,गुजराती, मराठी,उड़िया ,बंगला आदि भाषायों का विकास इसी अपभ्रंस ऐ हुआ है।धीरे-धीरे अपभ्रंश का ह्रास होने लगा और हिंदी भाषा का विकास होने लगी।
यही वर्तमान हिंदी का स्वरुप है और इसे ही सविधान में राजभाष के रूप में स्वीकार किया गया ।हिंदी भारत का राष्ट्रभाषा है।
स्वरुप और लक्षण:-
किसी भाषा को मानक रूप में प्रयोग करने की सामर्थ्य तभी आ सकती है,जब हम इसकी प्रकृति से परिचित हो,भाषा के प्रकृति से हमारा तात्पर्य उसके शब्द-भंडार,शब्द-निर्माण,वाक्य-विन्यास,भाव-व्यंजना, शैली मुहावरे ,आदि से है।स्पष्ठ है कि सर्वप्रथम हमें उस भाषा की वर्णमाला का सम्यक ज्ञान होना चाहिए
अर्थात हम उनकी वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर को ठीक ध्वनि से परिचित हो और हमें यह भी ज्ञान होना चाहिए कि जो ध्वनियां उक्त भाषा की वर्णमाला में नही है,उन्हें यह भी ज्ञान होना चाहिए उस ध्वनि को किस प्रकार व्यक्त किया जाना चाहिए। हिंदी में ए, ऐ,ण व् ब, ष, स,आदि कुछ ऐसे अक्षर समूह है जिनकी ध्वनियों के मध्य बहुत कम अंतर है,इन ध्वनियों का एकदम सही उच्चारण का ज्ञान होने पर ही इनका सही प्रयोग किया जा सकता है।
भाषा का प्रयोग;-
भाषा का प्रयोग हम दो प्रकार से कर सकते है,बोल कर और लिखकर।दैनिक जीवन में बोलकर तथा पात्र लेखन में -समाचार लेखन,पुस्तक लेखन तथा कार्यालयों में इसका लिखित प्रयोग होता है।
हिंदी की लिपि:-
कोई भी भाष जिस रूप में लिखी जाती है,वह उसकी लिपि कहलाती है।हिंदी की लिपि का नाम देवनागरी लिपि है।गुजराती आदि कुछ अन्य भाषाएं भी इसी लिपि में लिखी जाती है।