हिंदी के मानक रूप के विकास पर प्रकाश डालें
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Explanation:
मानक हिन्दी हिन्दी का मानक स्वरूप है जिसका शिक्षा, कार्यालयीन कार्यों आदि में प्रयोग किया जाता है। भाषा का क्षेत्र देश, काल और पात्र की दृष्टि से व्यापक है। इसलिये सभी भाषाओं के विविध रूप मिलते हैं। इन विविध रूपों में एकता की कोशिश की जाती है और उसे मानक भाषा कहा जाता है।
मानक भाषा’ किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा, के माध्यम के रूप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करने का प्रयत्न करता है।
आज तो कुमायूंनी भाषी नामक हिंदी के जरिए मैथिली भाषी से बातचीत करता है किंतु यदि मानक हिंदी न होती तो दोनों एक दूसरे की बात समझ न पाते।इस तरह सभी बोलियों के ऊपर एक मानक भाषा को इसलिए आरोपित करना, अच्छा या बुरा जो भी हो, उसकी सामाजिक अनिवार्यता है और इसलिए विभिन्न क्षेत्रों में कुछ मानक भाषाएँ स्वयं विकसित हुई हैं, कुछ की गई हैं और उन्होंने उन क्षेत्रों को काफी़ दूर-दूर तक समझे जानेवाले माध्यम के रूप में अनंत सुविधाएं प्रदान की हैं। ऐसे ही प्रेस के अविष्कार तथा प्रचार ने भी मानकता को अनिवार्य बनाया है।
वास्तव में विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक कारणों से हिंदी प्राचीनकाल से ही अपने विविध् रूपों में भारत के प्राय: सभी प्रदेशों में प्रचलित रही है। बारहवीं-शताब्दी में यह केवल अपने मूल स्थान दिल्ली, मेरठ के आस पास की सीमित जनबोली थी।
लगभग छ:-सात सौ वर्षों तक यह बोली के रूप में प्रचलित रही, इसकी अपेक्षा इसके साथ की अन्य बोलियाँ जैसे अवधी, ब्रज आदि अधिक विकसित हुर्इ-और भाषा के रूप में उच्च साहित्य का माध्यम बनीं।
मुगल काल में फारसी का प्रभुत्व रहा तथा अंग्रेजों के शासनकाल में अंग्रेजी का प्रभुत्व स्थापित हुआ लेकिन भारतीय समाज में हिंदी का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान बना रहा। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध से ही ऐसी स्थिति बनती गर्इ-जिनके कारण खड़ी बोली ने अत्यंत तीव्रता से भाषा का दर्जा प्राप्त किया और लगभग एक सौ-वर्ष के भीतर ही हिंदी का मानक स्वरूप निर्धारित हो गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संवैधानिक तौर पर हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया क्योंकि यह देश के अधिकांश भागों में बोली और समझी जाती है। साथ ही सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टि से इसका विशेष महत्त्व है। भारत में ही नहीं, विदेशों में भी इसे बोलने वालों की संख्या बहुत अधिक है। मौरिशस, सूरीनाम, नेपाल, रूस, जर्मनी तथा कर्इ यूरोपीय देशों में भी शिक्षण तथा साहित्य के स्तर पर मानक हिंदी का प्रचार-प्रसार है।
Answer:
मानक रूप = किसी भाषा के शब्दों अलग-अलग जगहों पर प्रयोग की स्थिति में अलग-अलग रूप में लिखने से उस भाषा के शब्दों में अशुद्धि उत्पन्न हो जाती है, इसके लिये उस अशुद्धि को दूर करने के लिये तथा भाषा में एकरूपता लाने के लिये एक सार्वभौमिक अर्थात युनिवर्सल रूप दिया जाता है, जिसे उस भाषा का ‘मानक रूप’ कहते हैं। ये उस भाषा का सबसे शुद्ध रूप होता और जिनका उपयोग कार्यालयीन कार्यों में और शिक्षा कार्यों में किया जाता है...
जैसे उदाहरण के लिये...
अशुद रूप = दांत
मानक रूप = दाँत