हिंदी का प्रथम नाटक है
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हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। उस काल के भारतेन्दु तथा उनके समकालीन नाटककारों ने लोक चेतना के विकास के लिए नाटकों की रचना की इसलिए उस समय की सामाजिक समस्याओं को नाटकों में अभिव्यक्त होने का अच्छा अवसर मिला।हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। उस काल के भारतेन्दु तथा उनके समकालीन नाटककारों ने लोक चेतना के विकास के लिए नाटकों की रचना की इसलिए उस समय की सामाजिक समस्याओं को नाटकों में अभिव्यक्त होने का अच्छा अवसर मिला।
जैसाकि कहा जा चुका है, हिन्दी में अव्यावसायिक साहित्यिक रंगमंच के निर्माण का श्रीगणेश आगाहसन ‘अमानत’ लखनवी के ‘इंदर सभा’ नामक गीति-रूपक से माना जा सकता है। पर सच तो यह है कि ‘इंदर सभा’ की वास्तव में रंगमंचीय कृति नहीं थी। इसमें शामियाने के नीचे खुला स्टेज रहता था। नौटंकी की तरह तीन ओर दर्शक बैठते थे, एक ओर तख्त पर राजा इंदर का आसन लगा दिया जाता था, साथ में परियों के लिए कुर्सियाँ रखी जाती थीं। साजिंदों के पीछे एक लाल रंग का पर्दा लटका दिया जाता था। इसी के पीछे से पात्रों का प्रवेश कराया जाता था। राजा इंदर, परियाँ आदि पात्र एक बार आकर वहीं उपस्थित रहते थे। वे अपने संवाद बोलकर वापस नहीं जाते थे।
उस समय नाट्यारंगन इतना लोकप्रिय हुआ कि अमानत की ‘इंदर सभा’ के अनुकरण पर कई सभाएँ रची गई, जैसे ‘मदारीलाल की इंदर सभा’, ‘दर्याई इंदर सभा’, ‘हवाई इंदर सभा’ आदि। पारसी नाटक मंडलियों ने भी इन सभाओं और मजलिसेपरिस्तान को अपनाया। ये रचनाएँ नाटक नहीं थी और न ही इनसे हिन्दी का रंगमंच निर्मित हुआ। इसी से भारतेन्दु हरिश्चन्द्र इनको 'नाटकाभास' कहते थे। उन्होंने इनकी पैरोडी के रूप में ‘बंदर सभा’ लिखी थी bhartendu harishchandra l
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हिंदी का प्रथम नाटक है?
हिंदी का प्रथम नाटक 'नहुष' माना जाता है, जिसकी रचना 'गोपालचंद्र गिरधर दास' ने की थी।
व्याख्या ⦂
हिंदी नाटक का इतिहास भारतेंदु हरिश्चंद्र के युग से आरंभ माना जाता है। गोपाल चंद्र भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र से पहले हिंदी रंगमंच या नाटक विधा का व्यवस्थित रूप से प्रचलन नहीं हो पाया था और ना ही रंगमंच या नाट्य विधा का विकास हुआ था। इसलिए 'नहुष' नाटक को हिंदी का प्रथम नाटक माना जाता है। कुछ विद्वान ब्रज भाषा में लिखे गए नाटक आनंद रघुनंदन को हिंदी का प्रथम नाटक मानते हैं।
नहुष नाटक के बाद ही हिंदी नाटक का विकास आरंभ हुआ और हिंदी पर आधारित विशुद्ध साहित्य रंगमंच और नाट्य विधा का विकास हुआ।
नहुष नाटक 1941 में लिखा गया था और 1868 आते-आते हिंदी नाटक अपने विकास की परिपक्व अवस्था में पहुंच चुका था। इस तरह नहुष नाटक, जो कि भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता गोपाल चंद्र दास द्वारा लिखा गया था, उसे प्रथम हिंदी का प्रथम नाटक माना जा सकता है।
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