Hindi, asked by kartikashirsath54, 2 months ago

हिंदी निसर्ग वैभव भावार्थ class 9th.
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Answered by aayushkumar0
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Answered by vikasbarman272
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निसर्ग वैभव नामक कविता सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखी गई है I

  • प्रस्तुत कविता के प्रथम दो भागो में महाकवि पंत जी ने प्राकृतिक सुषमा का बहुत ही सुन्दर और अद्भुत वर्णन किया है। प्रकृति के कण-कण में सौन्दर्य है।

पहला भाग - कितनी सुन्दरता बिखेरती है……………. वन प्रिय कोयल!

भावार्थ : पंत जी स्वभाव से अच्छे कवि थे। वे जानते हैं कि यह ईश्वर ही है जो प्राकृतिक दुनिया में सुंदरता फैलाता है। तो कवि भगवान को संबोधित करते हुए कहता है, "हे भगवान! सुंदरता पूरे प्राकृतिक जगत में बिखरी हुई है। पहाड़ों की चोटियों पर फैली धूप घाटी की ओर लौट रही है और चुपचाप अपनी किरणों में लिपटी हुई है। मानो धूप और छांव मिल रहे हों। “हवा हर जगह बह रही है। हरी घास उसके स्पर्श से पुलकित हो उठती है। मधुर संगीत गाते हुए नदी उन्मुक्त रूप से बह रही है। वन भूमि प्रतिदिन प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य का आनंद ले रही है। “चारों ओर लाल रंग के फूल खिले हुए हैं। फूलों का लाल रंग आग पैदा कर रहा है। लाल रंग के फूलों ने तितलियों को भी अपनी ओर आकर्षित किया है। वे भी फूलों पर मंडरा रहे हैं। ऐसे में एक पेड़ के पत्तों की छांव में बैठी प्यारी वन कोयल रुक-रुक कर अपना गीत गा रही है।

दूसरा भाग -लेटी नीली ………………. कर संध्यावंदन!

भावार्थ - कवि पंत प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं, “आकाश में सर्वत्र नीले रंग के बादल दिखाई देते हैं। यही कारण है कि नीले रंग की छाया दिखाई देती है। इस नीले रंग ने सूर्य की किरणों को अपने में समा लिया है। सूर्य की किरणों का सुनहरा रंग नीली छाया में विलीन हो गया है। इस विहंगम दृश्य को देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश में स्थिर तरंग के समान नीला और सुनहरा आवरण निर्मित हो गया है। ऐसे में भोर होने से पहले सबसे पहले हर तरफ सुनहरी किरणें छा जाती हैं। मानो उषा उनका अभिवादन करने के लिए तैयार हो जाती है। इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए शाम भी बेताब है।

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