Hindi, asked by tasleemsiddiqu3986, 8 months ago

हिंदी साहित्य के कालों के नामकरण संबंधी विभिन्न मतों की चर्चा कीजिए​

Answers

Answered by handasiya
3

Answer:

Explanation:

हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का नाम सर्वोपरि है । उन्होंने सन् 1929 ई. में हिन्दी साहित्य का इतिहास नामक ग्रन्थ नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हिंदी शब्द सागर की भूमिका के रुप में लिखा गया था तथा जिसे परिवद्धित एवं विस्तृत करके स्वतंत्र पुस्तक का रुप दे दिया गया । आचार्य शुक्ल ने साहित्य के इतिहास के प्रति एक निश्चित एवं सुस्पष्ट दृष्टिकोण का परिचय देते हुए यह सिद्धांत स्थापित किय कि – “प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चत्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है । जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरु में भी परिवर्तन होता चला जाता है । आदि से अन्त तक इन्हीं चत्तवृत्तियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही साहित्य का इतिहास कहलाता है । जनता की चत्तवृत्ति बहुत – कुछ राजनीतिक, सामजिक, सांप्रदायिक तथा धार्मिक परिस्थिति के अनुसार होती है ।” उन्होंने युगीन परिस्थियों के सन्दर्भ में साहित्यिक प्रवृत्तियों के विकास की बात कही, वह अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने अपने इतिहास में सर्वत्र इसी धारणा के अनुरुप प्रत्येक कालखण्ड की युगीन परिस्थियों का सम्यक विवेचन करते हुए तत्कालीन काव्य प्रवृत्तियों की चर्चा की है ।

शुक्ल जी का दूसरा महत्वपूर्ण योगदान काल विभाजन के सम्बंध में है । मिश्र बन्धुओं तथा ग्रियर्सन ने इस प्रकार के प्रयास किए थे, परन्तु वे प्रयास अधिक सफल नहीं हुए । उन्होंने हिन्दी साहित्य के 900 वर्षों के इतिहास को चार कालों में विभक्त कर नया नामकरम दिया :

Similar questions