हम चलते सीना तान के कविता का केंद्रीय भाव
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'हम चलते सीना तान के' कविता डा. हरिवंशराय बच्चन की बहुत हे सुन्दर कविता है ये कविता कवी ने देश के वीर सैनिको के ऊपर लिखी है।
इसमें कवी कहता है देश के सैनिक अलग-अलग जातियों से,अलग-अलग सथानो से, अलग-अलग भाषाओ बोलने वाले मैदानों से आये है मगर हम एक वर्दी में देश की रक्षा करने वाले सैनिक है हमारे धर्म भी अलग-अलग है लेकिन भारत माता की रक्षा के लिए हम अपना सीना तान कर एक साथ खडे है।
हिंदुस्तान की मिटटी में हम खेले है और यही पर खा-पी कर बड़े हुए है और अब हमे इस मिटटी का कर्ज चुकाना है हमारे पुरखों ने इस मिटटी और भारत माता की पूजा की है और इसके लिए अपना बलिदान भी दिया है और अब हमारी बारी है ।
हम इस देश का गौरव है चाहे कुछ भी हो जाए हम देश को कुछ नहीं होने देंगे खुद मिट जायेंगे लेकिन देख पर आंच नहीं आने देंगे और जो वीरता हम दिखाएंगे उसके गीत देश के कोने-कोने में बजेंगे और उसकी गाथएँ सबको सुनाई जायेंगी क्यूंकि हम भारत माता के वीर जवान है जो अपना सीना तान के चलते है।
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