Hindi, asked by schoolchamp77, 7 months ago

हम किसी के घर अगर अतिथि बनकर जाए तो हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए 100 से 150 वर्ड में बताइए
please it is urgent ​

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Answered by Anonymous
20

Answer:

हमारे शास्त्रों में कहा गया है, 'अतिथि देवो भव' अर्थात अतिथि भगवान के समान होता है। उसका आदर करना चाहिए। पुराने ज़माने में यदि भोजन के वक्त कोई मेहमान आ जाता था तो उसे भोजन देना आवश्यक माना जाता था। कुछ अवसरों पर अतिथि के चरण धोये जाते थे। उसको उच्च सत्कार के साथ घर में बैठाया जाता था।

      अतिथि हमारे घर आता है तो वह इस आशा से आता है कि उसे चैन मिलेगा। वह अपने सुख या दुःख को आपके साथ बाँटने के लिए आता है। उसे निराश नहीं करना चाहिए। सुख बाँटने से और बढ़ता है और दुःख बाँटने से कम होता है। इसलिए हमें अतिथि के आगमन को सुखद मानना चाहिए।

      यदि आप किसी के घर अतिथि के रूप में जायेंगे तो आप उससे किस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा करेंगे, इस बात को ध्यान में रखकर अपने घर आने वाले अतिथि के साथ व्यवहार करें। अतिथि के आने से घर में रौनक होती है लोग एक दूसरे से मिलकर खुश होते हैं। समाज में सद्भावना उत्पन्न होती है। आपस में प्यार बढ़ता है और जीवन में आनंद आता है।                 

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Answered by prathambirla
4

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हमारे शास्त्रों में कहा गया है, 'अतिथि देवो भव' अर्थात अतिथि भगवान के समान होता है। उसका आदर करना चाहिए। पुराने ज़माने में यदि भोजन के वक्त कोई मेहमान आ जाता था तो उसे भोजन देना आवश्यक माना जाता था। कुछ अवसरों पर अतिथि के चरण धोये जाते थे। उसको उच्च सत्कार के साथ घर में बैठाया जाता था।

      अतिथि हमारे घर आता है तो वह इस आशा से आता है कि उसे चैन मिलेगा। वह अपने सुख या दुःख को आपके साथ बाँटने के लिए आता है। उसे निराश नहीं करना चाहिए। सुख बाँटने से और बढ़ता है और दुःख बाँटने से कम होता है। इसलिए हमें अतिथि के आगमन को सुखद मानना चाहिए।

      यदि आप किसी के घर अतिथि के रूप में जायेंगे तो आप उससे किस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा करेंगे, इस बात को ध्यान में रखकर अपने घर आने वाले अतिथि के साथ व्यवहार करें। अतिथि के आने से घर में रौनक होती है लोग एक दूसरे से मिलकर खुश होते हैं। समाज में सद्भावना उत्पन्न होती है। आपस में प्यार बढ़ता है और जीवन में आनंद आता है।                 

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हमारे शास्त्रों में कहा गया है, 'अतिथि देवो भव' अर्थात अतिथि भगवान के समान होता है। उसका आदर करना चाहिए। पुराने ज़माने में यदि भोजन के वक्त कोई मेहमान आ जाता था तो उसे भोजन देना आवश्यक माना जाता था। कुछ अवसरों पर अतिथि के चरण धोये जाते थे। उसको उच्च सत्कार के साथ घर में बैठाया जाता था।

      अतिथि हमारे घर आता है तो वह इस आशा से आता है कि उसे चैन मिलेगा। वह अपने सुख या दुःख को आपके साथ बाँटने के लिए आता है। उसे निराश नहीं करना चाहिए। सुख बाँटने से और बढ़ता है और दुःख बाँटने से कम होता है। इसलिए हमें अतिथि के आगमन को सुखद मानना चाहिए।

      यदि आप किसी के घर अतिथि के रूप में जायेंगे तो आप उससे किस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा करेंगे, इस बात को ध्यान में रखकर अपने घर आने वाले अतिथि के साथ व्यवहार करें। अतिथि के आने से घर में रौनक होती है लोग एक दूसरे से मिलकर खुश होते हैं। समाज में सद्भावना उत्पन्न होती है। आपस में प्यार बढ़ता है और जीवन में आनंद आता है।                 

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हमारे शास्त्रों में कहा गया है, 'अतिथि देवो भव' अर्थात अतिथि भगवान के समान होता है। उसका आदर करना चाहिए। पुराने ज़माने में यदि भोजन के वक्त कोई मेहमान आ जाता था तो उसे भोजन देना आवश्यक माना जाता था। कुछ अवसरों पर अतिथि के चरण धोये जाते थे। उसको उच्च सत्कार के साथ घर में बैठाया जाता था।

      अतिथि हमारे घर आता है तो वह इस आशा से आता है कि उसे चैन मिलेगा। वह अपने सुख या दुःख को आपके साथ बाँटने के लिए आता है। उसे निराश नहीं करना चाहिए। सुख बाँटने से और बढ़ता है और दुःख बाँटने से कम होता है। इसलिए हमें अतिथि के आगमन को सुखद मानना चाहिए।

      यदि आप किसी के घर अतिथि के रूप में जायेंगे तो आप उससे किस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा करेंगे, इस बात को ध्यान में रखकर अपने घर आने वाले अतिथि के साथ व्यवहार करें। अतिथि के आने से घर में रौनक होती है लोग एक दूसरे से मिलकर खुश होते हैं। समाज में सद्भावना उत्पन्न होती है। आपस में प्यार बढ़ता है और जीवन में आनंद आता है।                 

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हमारे शास्त्रों में कहा गया है, 'अतिथि देवो भव' अर्थात अतिथि भगवान के समान होता है। उसका आदर करना चाहिए। पुराने ज़माने में यदि भोजन के वक्त कोई मेहमान आ जाता था तो उसे भोजन देना आवश्यक माना जाता था। कुछ अवसरों पर अतिथि के चरण धोये जाते थे। उसको उच्च सत्कार के साथ घर में बैठाया जाता था।

      अतिथि हमारे घर आता है तो वह इस आशा से आता है कि उसे चैन मिलेगा। वह अपने सुख या दुःख को आपके साथ बाँटने के लिए आता है। उसे निराश नहीं करना चाहिए। सुख बाँटने से और बढ़ता है और दुःख बाँटने से कम होता है। इसलिए हमें अतिथि के आगमन को सुखद मानना चाहिए।

      यदि आप किसी के घर अतिथि के रूप में जायेंगे तो आप उससे किस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा करेंगे, इस बात को ध्यान में रखकर अपने घर आने वाले अतिथि के साथ व्यवहार करें। अतिथि के आने से घर में रौनक होती है लोग एक दूसरे से मिलकर खुश होते हैं। समाज में सद्भावना उत्पन्न होती है। आपस में प्यार बढ़ता है और जीवन में आनंद आता है।                 

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हमारे शास्त्रों में कहा गया है, 'अतिथि देवो भव' अर्थात अतिथि भगवान के समान होता है। उसका आदर करना चाहिए। पुराने ज़माने में यदि भोजन के वक्त कोई मेहमान आ जाता था तो उसे भोजन देना आवश्यक माना जाता था। कुछ अवसरों पर अतिथि के चरण धोये जाते थे। उसको उच्च सत्कार के साथ घर में बैठाया जाता था।

      अतिथि हमारे घर आता है तो वह इस आशा से आता है कि उसे चैन मिलेगा। वह अपने सुख या दुःख को आपके साथ बाँटने के लिए आता है। उसे निराश नहीं करना चाहिए। सुख बाँटने से और बढ़ता है और दुःख बाँटने से कम होता है। इसलिए हमें अतिथि के आगमन को सुखद मानना चाहिए।

      यदि आप किसी के घर अतिथि के रूप में जायेंगे तो आप उससे किस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा करेंगे, इस बात को ध्यान में रखकर अपने घर आने वाले अतिथि के साथ व्यवहार करें। अतिथि के आने से घर में रौनक होती है लोग एक दूसरे से मिलकर खुश होते हैं। समाज में सद्भावना उत्पन्न होती है। आपस में प्यार बढ़ता है और ज

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