हमें किसका डटकर विरोध करना चाहिए?
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Explanation:
प्रत्येक व्यक्ति के भीतर विरोध की भावना होती है। कुछ इसे व्यक्त करते हैं और कुछ नहीं करते हैं। कुछ अपनी इस विरोध की भावना को विद्रोह में बदल कर सभी का अहित करते रहते हैं और कुछ के लिए विद्रोह न्यायसंगत होता है।
भारत में वामपंथियों द्वारा जनवादी विचारधारा और बौद्धिकता की आड़ में छात्रों में रोष भरा जाता रहा है जो अभी भी जारी है। विचारधाराओं का मोहरा बने इन छात्रों ने पिछले 70 वर्षों में देश को आगे नहीं बढ़ने दिया और आगे भी ये ऐसा ही करेंगे। इसमें इनका दोष नहीं है क्योंकि इनकी खुद की सोच नहीं है ये किसी उधार की सोच के नमुने हैं।
हमारे देश में अलगाववाद, माओवाद, जातिवाद और नक्सलवाद भी एक प्रकार का विरोध ही है जिसके चलते देश नर्क बना हुआ है। विरोध या विद्रोह के कई रूप हैं। विरोध की आग को भड़काने वालों के भी कई रूप होते हैं। लेकिन यह मानकर चलिए जिस भी घर, परिवार, समाज और राष्ट्र में यह भावना होती है वह कभी सुखी नहीं रहता है। विरोध या विद्रोह करने वाले यह नहीं जानते हैं। वे तो बस मोहरे होते हैं।
हम यहां हर तरह के विरोध को तो बता नहीं सकते, लेकिन फिर भी कुछ ऐसी बाते हैं जो पुराने समय में प्रचलित रही है। मध्यकाल के मनुष्यों का मानना था कि हमें कुछ बातों का विरोध नहीं करना चाहिए अन्यथा हम मुसिबत में पड़ सकते हैं। हालांकि आज वक्त बदल गया है, फिर भी इनमें से कुछ बातें तो आज भी मानी जाती है।
Answer:
प्रत्येक व्यक्ति के भीतर विरोध की भावना होती है। कुछ इसे व्यक्त करते हैं और कुछ नहीं करते हैं। कुछ अपनी इस विरोध की भावना को विद्रोह में बदल कर सभी का अहित करते रहते हैं और कुछ के लिए विद्रोह न्यायसंगत होता है।