Hindi, asked by adarshsinghas25, 5 months ago

हमारा अस्तित्व, हमारी प्रवृत्तियाँ तथा जीवन का प्रत्येक क्षण सत्य की आराधना के लिए होना चाहिए।
ऐसा होने पर
सारे नियम प्राप्त हो जाते हैं तथा उनका पालन आसान बन जाता है। सत्य हमारी वाणी, विचार तथा आचार में होना
चाहिए। सत्य ही जगत का सार तथा सत्य की प्राप्ति सच्चा आनंद है। सत्य से ही हमें उचित-अनुचित का ज्ञान होता
है। सत्य को अभ्यास तथा वैराग्य से प्राप्त किया जा सकता है। सत्य नाम ही परमेश्वर है, सत्य की खोज के साथ
तपश्चर्या आत्मकष्ट तथा मर-मिटना होता है, वहाँ स्वार्थ नहीं होता। अतः स्वयं ही भूल सुधार हो जाती है। जिस प्रकार
सबको परमात्मा अलग-अलग रूप में दिखाई देते हैं, उसी प्रकार सत्य भी सबके लिए भिन्न हो सकते हैं।
सत्य की आराधना भक्ति है। भक्ति हरि का मार्ग है, उसमें कायरता नहीं होती, हार नहीं होती, वह तो सिर हथेली पर
लेकर चलने का सौदा है। वह तो मर मिटना है सत्यरूपी परमेश्वर रत्न चिंतामणि है। सत्य और अहिंसा का मार्ग सीधा
परंतु तंग है। वह पल-पल साधना से ही प्राप्त होता है। यह शरीर क्षण मंगुर है। इसमें संपूर्ण सत्य शाश्वत धर्म का
दर्शन असंभव है। मार्ग में आने वाले संकटों को सहने से जिज्ञासु आगे बढ़ सकता है परन्तु संकटों का नाश करने से
वह वहीं का वहीं रहता है।
1. गद्यांश में सत्य की आराधना को आवश्यक क्यों बताया गया है?
2 सत्य ही जगत का सार तथा सत्य की प्राप्ति सच्चा आनंद है। कैसे?
3. सत्य किसका नाम है? सत्य सबके लिए मिन्न कैसे हो सकता है?
4. सत्य और अहिंसा का मार्ग कैसा है?
5. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
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Answers

Answered by raktimmandal79
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don't know sorry can't answer

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