हमारे हरर हाररल की लकरी। 4
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करर पकरी।
जागत सोवत स्वप्न ददवस-ननसस,कान्ह-कान्ह जकरी।
सुनत जोग लागत हैऐसौ, ज्यों करुई ककरी। सुती व्याधि हमकों ले आए, देखी सुनी न करी।
यह तो ‘सूर नतनदह ले सौंपो, जजनके मन चकरी।
(क) गोपपयााँहरर की तुलना हाररल की लकडी से क्यों कर रही हैं?
(ख) कृष्ण प्रेम में गोपपयों की मनोदशा कै सी है?
(ग) गोपपयों ने योग का उपहास कै से ककया है?
(घ) ‘जजनके मन चकरी’- से क्या आशय है ?
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दो चम्मच सौंप, थोड़ा सा तेज पत्ता को दोनों को पानी में अच्छी तरह उबालकर एक सूती वस्त्र में बांधकर दो दिन के लिए धूप में सुखाने को रख दें। सूखने के बाद उसे पीस लें और इसमें एक-एक चम्मच पिसी हल्दी व लालमिर्च और एक चम्मच पिसा हुआ जीरा व चीनी स्वादानुसार मिलाकर एक डब्बे में रख लें। एक-एक चम्मच सुबह-शाम ताजे पानी में मिलाकर सेवन करें। मात्र दो दिन में ही ऐसी फालतू की पोस्ट करने का कीड़ा मर जाएगा। धन्यवाद ।
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