हमारे समाज में आज भी भेद भाव व्याप्त है '- इससे हमें क्या नुकसान हो रहा है |
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आज हमारे समाज में जातिगत, सम्प्रदायगत या लिंग भेद के कारण भेदभाव दिखाई देता है, आपका
दृष्टि में इससे समाज और देश को क्या हानि हो रही है? इस भेदभाव को कैसे मिटाया जा सकता है?
जातिगत, सम्प्रदायगत व लैंगिक भेदभाव से देश की हानि पर निबंध
आज हमारे समाज में जातिगत, सम्प्रदायगत और लिंग भेद के कारण भेदभाव दिखाई देता है इससे हमारे समाज और देश को बड़ी हानि हो रही है। इससे हमारे समाज में लोगों में वैमनस्य उत्पन हो रहा है। लोग एक दूसरे के प्रति द्वेष भाव रखने लगे हैं। धर्म के नाम पर लोगों में भेदभाव के कारण लोग एक दूसरे से लड़ने लगे हैं। लोगों में परस्पर सौहार्द और भाईचारे की भावना में कमी आ रही है।
जातिगत भेदभाव भी समाज में बहुत समय से देश में व्याप्त है। हमारे देश में जाति की समस्या एक पुरानी समस्या है और इस समस्या का पूरी तरह से निराकरण नहीं हो पाया है।आज भी देश के कई जगह हैं जहां लोग कुछ जाति विशेष के लोगों को नीची दृष्टि से देखते हैं और उन्हें समाज की सार्वजनिक जगहों जैसे कि पूजा स्थलों आदि पर जाने से रोकते हैं। सरकार द्वारा किए जा रहे अनेक प्रयासों से जातिगत भेदभाव में कमी तो आई है लेकिन यह पूरी तरह से खत्म नहीं पाया है।
लिंग भेद भी समाज में व्याप्त अर्थात पुरुष और महिलाओं को समान स्तर पर नही आंका जाता है। पहले ये बहुत ज्यादा था, पर इसमें आज कमी आई है। पहले देश में लिंग भेद बहुत था। महिलाओं को पुरुषों से दोयम दर्जे का समझा जाता था। लेकिन अब समाज में थोड़ी-थोड़ी जागरुकता आई है। अब लोग बेटियों को महत्व देने लगे हैं। पर इस समस्या का निराकरण पूरी तरह से हमारे देश से नहीं हो पाया है। शहरो में ही इस भेदभाव में कमी आई है, ग्रामीण जगहों पर आज भी ये समस्या बदस्तूर जारी है।
अंत में हम कह सकते हैं, कि जब देश में समानता कायम नही होगी। देश के सभी लोगों का योगदान नही होगा तब तक देश का पूर्णरूपेण विकास नही हो सकता। देश के प्रत्येक नागरिक के मन ये विश्वास जागना चाहिये कि उसे एक आम नागरिक के समान अधिकार प्राप्त हैं, तब ही इस देश की उन्नति संभव है।
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समाज में व्याप्त भेदभाव, छूआछूत, को मिटाने के लिए संत रविदास ने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनके आदर्शों और कर्मों से सामाजिक एकता की मिसाल हमें देखने को मिलती है लेकिन वर्तमान दौर में इस सामाजिक विषमता को मिटाने के सरकारी प्रयास असफल ही कहे जा सकते हैं। कहीं-कहीं आशा की किरण समाज क्षेत्र में कार्यरत सेवा भारती जैसे संस्थानों के प्रकल्पों में दृष्टिगोचर होती