hamari पृथ्वी ko sabse bada khatra hamari mansikta se hai ki ise koi aur bacha lega है
Answers
“हमारे ग्रह के लिए सबसे बड़ा खतरा यह विश्वास है कि कोई और इसे बचाएगा”
भूमिका
पूरे ब्रह्मांड में धरती ही एक ऐसा ग्रह है जहां जीवन संभव है I यहाँ पर जीवन के लिए जरुरी हर चीज मौजूद है I लेकिन कुछ दशकों से इन्सान ने तरक्की तो की लेकिन धरती के संतुलन को बिगाड़ दिया I
आज हर देश तरक्की करना चाहता है पर पृथ्वी के बिगड़ते संतुलन पर कोई भी राष्ट्र विशेष कार्य नहीं कर रहा है I हर कोई सोचता है कि इसे बचाने का काम कोई और करेगा पर वह और कौन? कौन बचाएगा धरती को
धरती को खतरा
1. वैश्विक तापन-
वैश्विक तापन पृथ्वी के मुख्य खतरों में से एक है I आज वायुमंडल में कार्वन डाई-आक्साइड की मात्रा बहुत बढ़ चुकी है, जिससे पूरा वायुमंडल दिन प्रतिदिन गर्म होता जा रहा है I ओजोन गैस की परत कमजोर हो रही है I लगभग 500 वर्षों के बाद वायुमंडल इतना गर्म हो जाएगा ध्रुबीय क्षेत्रों पर पड़ी सारी बर्फ़ पिघल जायेगी जिससे सारी पृथ्वी जल मग्न हो जायेगी I
2. जल प्रदूषण -
आज मानव उन्नति के पथ पर अग्रसर है I बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों, कारखानों, शहरों, तथा घरों की सारी गन्दगी नदियों, समुद्रों में उत्सर्जित की जाती है, जिससे पानी प्रदूषित होने कारण बहुत से जलचर जीव समूल नष्ट हो चुके हैं I जो धरती के संतुलन के लिए जरुरी हिस्सा थे I
3. ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण भी धरती के खतरों में से एक है I जिस तरह से आबादी बढ़ रही है उसी तरह से वाहनों की संख्या भी बढ़ी है, तथा कारखानों की भी जिससे वातावरण में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है I बहुत से कीट-पतंगे तथा पक्षी अपनी दिशा भूल जाते है
4. वनों का लगातार नष्ट होना
जितनी इन्सानों की आबादी बढाती जा रही वन उतने ही सिकुड़ते जा रहे है I वनों के लगातार नष्ट होने से धरती के वायुमंडल का संतुलन बिगड़ रहा है कभी वारिश होती तो कभी नहीं, कहीं थोड़ी होती है तो कहीं बहुत ज्यादा कहीं अंधाधुंध बर्फ़बारी होती है I यह सब धरती के संतुलन बिगड़ने का संकेत है I
5. वन्य जीवों की घटती संख्या
लगातार वन्य जीवों की घटती संख्यां एक चिंता का विषय है I बहुत सी प्रजातियाँ इस धरती से लुप्त ही चुकी हैं और कुछ लुप्त होने की कगार पर हैं I शीघ्र कोई उपाय ना किया गया तो जंगली जीव इस धरा से लुप्त हो जायेंगे जो धरती के संतुलन का जरुरी हिस्सा हैं I
और भी बहुत से कारण है जो धरती के लिए खतरा हैं लेकिन मुद्दे की बात यह है कि इसे कौन बचाएगा?
आज की स्थिति
आज हर कोई धरती के in खतरों से अनजान नहीं है I पर हर कोई यह सोचकर आगे बढ़ जाता है कि यह काम और कोई करेगाम I पर और कौन? आज सभी राष्ट्रों को मिलकर काम करने की जरुरत है, मात्र मुलाकातों, भाषणों, सम्मेलनों बात नहीं बन्ने वाली आज ठोस कदम उठाने की जरुरत है I कोई और धरती बचाने नहीं आयेगा, यह कार्य हम सबको मिलकर करना होगा I
उपसंहार
पूरे पृथ्वी वासियों को इस धारणा से निकलकर धरती को बचाने के कार्य में व्यक्तिगत रूप से तथा अन्य राष्ट्रों के साथ संयुक्त रूप से मिलकर कार्य को कार्यान्वित करना होगा नहीं तो एक दिन ऐसा आएगा हमारा बजूद ही ख़त्म हो जाएगा Iजो करना होगा हम सब को मिलकर करना होगा और कोई धरती बचाने नहीं आएगा I हमें इस मानसिकता से निकलना होगा I
सफलता के मार्ग पर पहला कदम पहल कर रहा है! लेकिन, यही कारण है कि अधिकतम लोग असफल हो जाते हैं। हर कोई परिवर्तन चाहता है लेकिन कोई भी खुद को बदलना नहीं चाहता। वे जिम्मेदारियां मुक्त होना चाहते हैं लेकिन लाभ भी चाहते हैं। लेकिन यह संभवतः सच नहीं है। 'मैं ही क्यों?' ज्यादातर समय बाधा बन जाता है। लेकिन क्या आपके पास पेड़ उगने के बिना फल हो सकता है? एक बार एक बार जब अकबर ने अपने राज्य का परीक्षण किया तो वह परिणाम से चौंक गया। कहानी यह थी कि एक बार अकबर और बीरबल ने अपने राज्य के लोगों का परीक्षण करने का फैसला किया। अकबर ने एक कुएं बनाया और सभी को इसमें एक गिलास दूध डालने के लिए कहा। परिणामों के अंतिम दिन से गुज़रने वाले दिन आए कि वह देखकर चौंका दिया कि केवल पानी ही था और कोई दूध नहीं था। बाद में, क्या उन्होंने पाया कि यह विश्वास था कि वह एक गिलास पानी डालेगा लेकिन हर कोई दूध डालेगा जो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इन दिनों दुनिया भर के लोगों के साथ ही यही है। लोग देश को बदलने के लिए राजनेताओं का चयन करते हैं। लेकिन हमेशा के रूप में वे किसी और को दोष देते हैं और हम एक अलग द्वीप के बीच एक आदमी की तरह फिर से छोड़ दिया जाता है। यदि यह जारी रहता है तो हम भविष्य से डरते हैं। ऐसी परिस्थितियों में भविष्य अंधेरे में है। हमें उपायों को लेने और हमारी आगामी पीढ़ियों को एक महान भविष्य देने की जरूरत है, लेकिन यह केवल तभी संभव है जब कोई उसे जिम्मेदार पाता है और हमारी मां पृथ्वी को बचाने में ज़िम्मेदारी लेता है। लोग 'ग्लोबल वार्मिंग' के लिए जोर से रोते हैं। हर कोई जानता है कि यह कैसे होता है, कई जागरूकता विज्ञापन दिए जाते हैं और बच्चों को परियोजनाओं के माध्यम से पढ़ाया जाता है। लेकिन मेरा सवाल यह है: क्या यह सब आवश्यक है? हमारा काम यहाँ समाप्त होता है? पृथ्वी की बचत के बारे में क्या? कुछ अभियान और रैली पर्यावरण को बचा नहीं सकते हैं। सख्त नियमों का पालन और पालन किया जाना चाहिए। क्यों नहीं शहर में हर नागो एक साथ मिलते हैं और प्रदूषण रोकते हैं, पहल करते हैं और हमारी धरती की मदद करते हैं। लोग शामिल होने के लिए तैयार होंगे लेकिन नेतृत्व नहीं करेंगे हम कई स्वयंसेवकों को प्राप्त कर सकते हैं लेकिन हमें बस शुरुआत करने की आवश्यकता है। वर्ष 1998 में पटना से विकास चंद्र नाम का एक आदमी नदी गंगा की सफाई के आदर्श वाक्य के साथ आया था। अपने शोध में उन्होंने पाया कि कोई भी जिम्मेदारी लेना नहीं चाहता लेकिन उसने लिया। क्या गंगा केवल उसका था? क्या यह सब केवल उनका कर्तव्य था? उन लाख लोगों ने गंगा नदी को 'गंगा मां' के रूप में सम्मानित किया, फिर वे लोग कहाँ थे? इस पवित्र नदी की पूजा करने वाले लोग इसे गंदे बना रहे हैं? इन सभी सवालों के जवाब यह है कि इस दुनिया में कोई भी जिम्मेदारियों को लेने के लिए तैयार नहीं है, यह हमेशा होता है कि आप शुरू करते हैं और मैं इसका पालन करूंगा लेकिन यहां तक कि एक होने की जरूरत भी शुरू करूँगा। इसमें कोई संदेह नहीं है, आज वह आदमी गंगा की सफाई के मिशन में लगभग 1000 लोगों को स्वयंसेवक करता है। आज, पर्यावरणविदों के साथ-साथ हमारी सरकार द्वारा कई मिशन लॉन्च किए गए हैं, लेकिन देर से यह बहुत पहले शुरू होना चाहिए था। सरकार ने कार्य योजनाओं के साथ आया, आज काम कर रहे हैं कई बदलाव हैं लेकिन सभी क्रेडिट उस व्यक्ति के पास जाते हैं जिसने पहली बार इसे शुरू किया था।