हरि हैं राजनीति पढ़ि आए। समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए इक अति चतुर हुते पहिले ही, अब गुरु ग्रंथ पदाए बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए। ते क्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए। राज धरम तो यहै 'सूर', जो प्रजा न जाहि सताए। इसका काव्यगत विशेषता लिखिए
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