हरि किलकत जसुमति की कनियाँ।
मुख मैं तीनि लोक दिखराए, चकित भई नंद-रनियाँ।
घर-घर हाथ दिवावति डोलति, बाँधति गर्दै बधनियाँ।
सूर स्याम की अद्भुत लीला नहिं जानत मुनिजनियाँ ।
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