हरिरस से कवि का अभिप्राय है
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O हरिरस से कवि का अभिप्राय है।
►‘हरि रस’ से कवि का अभिप्राय भगवान की महिमा का बखान करते हुए, जिस रस की अनुभूति हो, वही ‘हरिरस’ है। कवि राम नाम की महिमा का बखान करते हुए कहता है कि भगवान के नाम से बढ़कर कोई दूसरी साधना नहीं जो भगवान के स्मरण, भजन कीर्तन में परम आनंद प्राप्त करता है, वह परम आनंद ही ‘हरिरस’ कहलाता है। भगवान के नाम का स्मरण करते हुए, कीर्तन करते हुए, हरिकीर्तन में रम जाना और परमानंद की अनुभूति करना हरिरस है। इस रस का पान करने से जीवात्मा धन्य हो जाती है
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Hari ras se Kabhi Kabhi pura hai
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