हरिशंकर परसाई जी के जीवन -परिचय और उनकी रचनाओं के बारे में लिखिए।
Answers
Answer:
हरिशंकर परसाई एक हिंदी लेखक थे। वे आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात व्यंग्यकार और हास्य लेखक थे और अपनी सरल और सीधी शैली के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने व्यंग्य लिखा। हरिशंकर परसाई जी ने खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को बहुत ही निकटता से पकड़ा है। उनकी भाषा-शैली में ख़ास किस्म का अपनापन है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है। मात्र अठारह वर्ष की उम्र में हरिशंकर परसाई ने ‘वन विभाग’ में नौकरी की। उनकी पहली रचना “स्वर्ग से नरक जहां तक है” मई 1948 में प्रहरी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। उनकी रचनाओं में सदाचार का ताबीज, ठिठुरता हुआ गणतन्त्र है। परसाई जी जबलपुर रायपुर से निकलने वाले अखबार देशबंधु में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते थे। अखबार में इस स्तम्भ का नाम था-पूछिये परसाई से। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको हरिशंकर परसाई की जीवनी – Harishankar parsai Biography Hindi के बारे में बताएगे।
Explanation:
please mark me as brainliest ans
Answer:
Explanation:
जन्म
हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1924 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले में ‘जमानी’ नामक गाँव में हुआ था।
शिक्षा
हरिशंकर परसाई ने अपनी गाँव से प्राम्भिक शिक्षा जमानी गाँव से प्राप्त करने के बाद वे नागपुर चले आये थे। ‘नागपुर विश्वविद्यालय’ से उन्होंने एम. ए. हिंदी की परीक्षा पास की। कुछ दिनों तक उन्होंने अध्यापन कार्य भी किया। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र लेखन प्रारंभ कर दिया। उन्होंने जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका ‘वसुधा’ का प्रकाशन भी किया, लेकिन घाटा होने के कारण इसे बंद करना पड़ा। हरिशंकर परसाई जी ने खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को बहुत ही निकटता से पकड़ा है। उनकी भाषा-शैली में ख़ास किस्म का अपनापन है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है।
करियर
मात्र अठारह वर्ष की उम्र में हरिशंकर परसाई ने ‘वन विभाग’ में नौकरी की। वे खण्डवा में छ: माह तक बतौर अध्यापक भी नियुक्त हुए थे। उन्होंन ए दो वर्ष (1941–1943 में) जबलपुर में ‘स्पेस ट्रेनिंग कॉलिज’ में शिक्षण कार्य का अध्ययन किया। 1943 से हरिशंकर जी वहीं ‘मॉडल हाई स्कूल’ में अध्यापक हो गये। उनकी पहली रचना “स्वर्ग से नरक जहां तक है” मई 1948 में प्रहरी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। वर्ष 1952 में हरिशंकर परसाई को यह सरकारी नौकरी छोड़ी। उन्होंने वर्ष 1953 से 1957 तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी की। 1957 में उन्होंने नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र लेखन की शुरूआत की।
परसाई जी जबलपुर रायपुर से निकलने वाले अखबार देशबंधु में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते थे। स्तम्भ का नाम था-पूछिये परसाई से। पहले हल्के इश्किया और फिल्मी सवाल पूछे जाते थे । धीरे-धीरे परसाईजी ने लोगों को गम्भीर सामाजिक-राजनैतिक प्रश्नों की ओर प्रवृत्त किया। दायरा अंतर्राष्ट्रीय हो गया। यह सहज जन शिक्षा थी। लोग उनके सवाल-जवाब पढ़ने के लिये अखबार का इंतजार करते थे।