हरिशंकर परसाई का साहित्यिक परिचय
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जीवन परिचय
हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त 1924 को मध्य प्रदेश के इटारसी के पास जमाली में हुआ. गांव से शुरुआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे नागपुर चले आए थे. 'नागपुर विश्वविद्यालय' से उन्होंने एम. ए. हिंदी की परीक्षा पास की. कुछ दिनों तक उन्होंने छात्रों को पढ़ाया. इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र लेखन शुरू कर दिया. उन्होंने जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका 'वसुधा' का प्रकाशन भी किया, परंतु घाटा होने के कारण इसे बंद करना पड़ा. हरिशंकर परसाई जी ने खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को बहुत ही बारीकी से पकड़ा है. उनकी भाषा-शैली में खास किस्म का अपनापन है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है.
साहित्यिक परिचय
परसाई के कुछ मशहूर निबंध संग्रह हैं, जिसमें 'तब की बात और थी', 'भूत के पांव पीछे', 'बेईमानी की परत', 'पगडंडियों का जमाना', 'सदाचार का ताबीज', 'वैष्णव की फिसलन', 'विकलांग श्रद्धा का दौर', 'माटी कहे कुम्हार से', 'शिकायत मुझे भी है' और अन्त में, 'हम इक उम्र से वाकिफ हैं' शामिल हैं.
परसाई ने 'ठिठुरता लोकतंत्र' में लिखा,' स्वतंत्रता-दिवस भी तो भरी बरसात में होता है. अंग्रेज बहुत चालाक हैं. भरी बरसात में स्वतंत्र करके चले गए. उस कपटी प्रेमी की तरह भागे, जो प्रेमिका का छाता भी ले जाए. वह बेचारी भीगती बस-स्टैंड जाती है, तो उसे प्रेमी की नहीं, छाता-चोर की याद सताती है. स्वतंत्रता-दिवस भीगता है और गणतंत्र-दिवस ठिठुरता है.
हरिशंकर परसाई का साहित्यिक परिचय |
Explanation:
श्री हरिशंकर परसाई हिंदी के महान व्यंग के लेखक हैं। इन्हें व्यंग्य लेखन में महारत हासिल है। श्री हरिशंकर परसाई जी ने राजनीति, धर्म, समाज आदि सभी क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों को अपने देंगे लेखन के जरिए प्रस्तुत किया है। इनके द्वारा लिखे गए व्यंग्य अत्यंत प्रभाव कारी और चुटकुले होते हैं और इन व्यंजनों का उद्देश्य व्यवस्था में सुधार लाना है।
हरिशंकर परसाई जी अपनी रचनाओं में बोलचाल के शब्दों विदेशी भाषा के शब्दों के साथ-साथ तत्सम शब्दों का भी प्रयोग करते हैं। हरिशंकर परसाई जी का हिंदी साहित्य में एक उच्च स्थान है इन्होंने सामाजिक रूढ़ियों, सामायिक समस्याओं और राजनीतिक विडंबना ऊपर कसकर व्यंग किया है।
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