History, asked by ranjukrishnamishra, 9 months ago

हर्षहिं निराखि राम पर अंकमा
मानहुँ पारसु पाय रंका का अर्थ बताओ​

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Answered by SamikBiswa1911
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Answer:

श्रीगणेशायनमः

श्रीजानकीवल्लभो विजयते

श्रीरामचरितमानस

द्वितीय सोपान

अयोध्या-काण्ड

श्लोक

यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके

भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्।

सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा

शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम्।।1।।

प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।

मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमंगलप्रदा।।2।।

नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।

पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।3।।

दो0-श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।

जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।

भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी।।

रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई।।

मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती।।

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।।

सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी।।

मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली।।

राम रूपु गुनसीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।।

दो0-सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।

आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु।।1।।

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