हरिवंश राय बच्चन की किसी भी एक कविता का पढय विश्लेषण कीजिए
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हरिवंशराय बच्चन जी को उनकी १४२ गीतात्मक कविता ‘मधुशाला’ (द हाउस ऑफ वाइन) के लिए हम सब बहुत अच्छे से जनते है, क्योंकि यह कविता जो १९३५ में प्रकाशित हुई थी वह आज तक हम सबके बीज चर्चित है। 'मधुशाला' को अंग्रेजी एवं और भी अनेक भाषा में अनुवाद किया गया है। अनुवाद के इस प्रक्रिया से ही पता चल जाता है कि हरिवंशराय बच्चन जी की 'मधुशाला' देशी -विदेशी सबके अंतर्मन को स्पर्श कर गई थी। जिस कारण इसकी मांग आज भी है।
इन्होंने चार भाग में अपनी आत्मकथा को लिखा है। जिसमें से प्रथम भाग 'क्या भूलूं करता याद करूं ' को इन्होंने सन् १९६९ को प्रकाशित किया। यह हिंदी साहित्य जगत में एक कालजयी कृति है। हरिवंशराय बच्चन के अनुसार उनकी रचना को वह ही समझ सकता है जो जीवन में बहुत कुछ सहता है और सहकर जीता है।
दूसरे ही वर्ष उन्होंने अपने आत्मकथा के दूसरे भाग 'नीड़ का निर्माण फिर' सन् १९७० में प्रकाशित हुआ। इस आत्मकथा के कारण ही हरिवंशराय बच्चन जी को 'सरस्वती सम्मान' से सम्मानित किया गया था।
तीसरा आत्मकथा 'बसेरे से दूर' को सन् १९७७ में प्रकाशित किया गया था। यह आत्कथा विवादों से युक्त है। इलाहाबाद से उनको जो भी अनुभव हुआ उन सारे अनुभवों को उन्होंने इसमें लिख दिया।
चौथी आत्मकथा 'दशद्वार से सोपान तक' को सन् १९८५ को प्रकाशित किया गया। इलाहाबाद के जिस किराये के घर में बच्चन साहब रहते थे उसका नामकरण ही उन्होंने 'दशद्वार' और 'सोपान' नाम दिया था।
उनके द्वारा लिखा गया अंतिम कविता 'एक नवंबर' लिखा गया था जो इंदिरा गांधी के मौत के आधार पर लिखा गया था सन् १९८४ में।
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हरिवंशराय बच्चन जी को उनकी १४२ गीतात्मक कविता ‘मधुशाला’ (द हाउस ऑफ वाइन) के लिए हम सब बहुत अच्छे से जनते है, क्योंकि यह कविता जो १९३५ में प्रकाशित हुई थी वह आज तक हम सबके बीज चर्चित है। 'मधुशाला' को अंग्रेजी एवं और भी अनेक भाषा में अनुवाद किया गया है। अनुवाद के इस प्रक्रिया से ही पता चल जाता है कि हरिवंशराय बच्चन जी की 'मधुशाला' देशी -विदेशी सबके अंतर्मन को स्पर्श कर गई थी। जिस कारण इसकी मांग आज भी है।
इन्होंने चार भाग में अपनी आत्मकथा को लिखा है। जिसमें से प्रथम भाग 'क्या भूलूं करता याद करूं ' को इन्होंने सन् १९६९ को प्रकाशित किया। यह हिंदी साहित्य जगत में एक कालजयी कृति है। हरिवंशराय बच्चन के अनुसार उनकी रचना को वह ही समझ सकता है जो जीवन में बहुत कुछ सहता है और सहकर जीता है।
दूसरे ही वर्ष उन्होंने अपने आत्मकथा के दूसरे भाग 'नीड़ का निर्माण फिर' सन् १९७० में प्रकाशित हुआ। इस आत्मकथा के कारण ही हरिवंशराय बच्चन जी को 'सरस्वती सम्मान' से सम्मानित किया गया था।
तीसरा आत्मकथा 'बसेरे से दूर' को सन् १९७७ में प्रकाशित किया गया था। यह आत्कथा विवादों से युक्त है। इलाहाबाद से उनको जो भी अनुभव हुआ उन सारे अनुभवों को उन्होंने इसमें लिख दिया।
चौथी आत्मकथा 'दशद्वार से सोपान तक' को सन् १९८५ को प्रकाशित किया गया। इलाहाबाद के जिस किराये के घर में बच्चन साहब रहते थे उसका नामकरण ही उन्होंने 'दशद्वार' और 'सोपान' नाम दिया था।
उनके द्वारा लिखा गया अंतिम कविता 'एक नवंबर' लिखा गया था जो इंदिरा गांधी के मौत के आधार पर लिखा गया था सन् १९८४ में।