Social Sciences, asked by leela9669, 1 year ago

Harmful effects of increasing of population in hindi

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Answered by mitkutparsad65paidjl
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आज का समाज भौतिक क्षेत्र में विकास कर रहा है । जीवन-क्रम द्रुतगति से बदलता जा रहा है । प्राकृतिक साधनों का भी अधिकाधिक उपयोग हो रहा है, फिर भी जनसंख्या का संतुलन और उस पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है । अर्थशास्त्र के नियमानुसार, जीवन-स्तर के निम्न होने पर जनसंख्या बढ़ती है । भारत शायद इसी दरिद्रता का शिकार बना हुआ है ।

जनसंख्या की वृद्धि की समस्या अन्य अनेक समस्याओं को पैदा करती है । प्रतिवर्ष उत्पादित खाद्यान्न अपर्याप्त हो जाता है और जो है, वह महँगा हो जाता है । इसी हिसाब से अन्य उपयोगी वस्तुओं के दाम भी बढ़ते हैं । सरकार के पास काम की कमी हो जाती है, अत: बेकारी भी बढ़ती जाती है ।

वैज्ञानिक प्रगति के कारण पूँजीवादी अथवा साम्राज्यवादी आधिपत्य मानव-श्रम को दिन-प्रतिदिन उपेक्षित करता जा रहा है । ऐसी स्थिति में जनसंख्या की स्थिरता आज की अनिवार्य माँग बन गई है । इसके लिए पाश्चात्य देशों में परिवार-नियोजन के अनेक तरीके अपनाए जाते हैं:

संतति नियंत्रण के साधनों में नसबंदी और नलबंदी भी शामिल है । भारत में भी इन साधनों का प्रचार होने लगा है । विवाह की उम्र बढ़ाने की प्रेरणा दी जाती है । भारत में संतानात्पप्न को ईश्वर की देन माना जाता है ।

इसका किसी भी रूप में निरोध ईश्वर के कर्मों में दखल माना जाता है । लेकिन अब स्थिति बदल रही है । शिक्षा के विकास के साथ भारतीय दंपती इम अच्छी तरह समझ रहे हैं और परिवार-नियोजन को अपना रहे हैं । माता के आरोग्य तथा सौंदर्य की रक्षा के लिए भी परिवार-नियोजन पर जोर दिया जाता है ।

आज यद्यपि जनसंख्या-वृद्धि देश की उन्नति में बाधक बनी हुई है तथापि इसके दूसरे पहलू पर विचार किया जा सकता है । जनसंख्या अथवा मानव-शक्ति किसी भी राष्ट्र की निधि मानी जाती है । जन-बल से सरकार अपनी निर्माण-योजनाएँ पूरी कर सकती है ।

परिश्रमशील प्रजा के श्रमदान से राष्ट्रीय व्यय कम किया जा सकता है । देश के दुश्मनों को आतंकित करने के लिए भी प्रभूत प्रजा का होना बुरा नहीं माना जाता है । चीन आज जनसंख्या के बल पर ही विश्व में जूट राष्ट्र बना हुआ है ।

भारतीय स्वभावत: चिंतनशील होते हैं । कष्ट, सहिष्णुता, परिश्रम तथा न्याय यहाँ के निवासियों की परंपरागत विशेषताएँ हैं । इसके अलावा ये आदर्शवादी और समन्वयवादी होते हैं । सरल तथा संयमित जीवन जीना उनको आता है । ऐसे देश में जनसंख्या की वृद्धि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उनकी विकट समस्या नहीं है जितनी कि अन्य देशों में ।

यहाँ की आबादी को स्वावलंबन की शिक्षा मिले तो जनसंख्या- वृद्धि भी की जा सकेगी । बढ़ती जनसंख्या को उपयोगी काम में लगाकर भारत भूमि को स्वर्ग बनाया जा सकता है । जनसंख्या को स्थायी रूप से नियंत्रित करना है, तो शिक्षा को अनिवार्य बनाना चाहिए ।

देखा गया है कि शिक्षितों की अपेक्षा अशिक्षितों की अधिक संतानें हैं । दो संतान से अधिक होने पर माता-पिता को सरकारी सेवा के अवसर से वंचिन कर देना चाहिए । सीमित परिवारवालों को सरकार द्वारा पुरस्कृत-प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ।

Answered by hasiavishikta
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Harmful effects of increasing of population

Scarcity of food.

Demand for  more food from fewer land and water resources.

Essentially, tomorrow’s farmers need to produce more food with fewer resources.
HOPE THIS HELPS...
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