हस्तस्य भूषणं दानं, सत्यं कण्ठस्य भूषणम्।
श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं, भूषणैः किम् प्रयोजनम्। a sanskrit word meaning in hindi and no weird answer
Answers
हस्तस्य भूषणं दानं, सत्यं कण्ठस्य भूषणम्।
श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं, भूषणैः किम् प्रयोजनम्।
भावार्थ ⁝ हाथों की शोभा दान देने से होती है और कंठ यानि गले की शोभा सदैव सत्य बोलने से होती है। जब ऐसी ही स्थिति है तो फिर अन्य किसी आभूषण की क्या आवश्यकता है।
व्याख्या ⦂ कहने का भाव यह है कि हाथों पर जो आभूषण पहने जाते हैं, उनसे हाथों की शोभा नहीं होती। हाथों की सच्ची शोभा तब होती है, जब हम मुक्त हाथों से दान दें। उन हाथों से किसी की सहायता करें। परोपकार के कार्य करें। वह हाथ किसी की सहायता करने के काल में आए तब ऐसे हाथों की शोभा बढ़ती है। उसी प्रकार गले में हार पहनने से गले की शोभा नहीं होती बल्कि गले की शोभा तब होती है, जब गले से सत्य वचन निकलें। इसलिये बनावटी आभूषणों की जगह गुण रूपी आभूषणों को पहनना चाहिए।
◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌◌