हत विवेक ॥३॥
आवत हिय हरषे नहीं, नैनन नहीं ।
तलसी वहाँ न जाइए, कंचन बरसे
बरसे मेह ॥४॥
-तुलसीदास
चित समय का वृष्टि से, जीवित
मानी जाती है तभी, वृष्टि अमृत की ध
वित है संसार।
की धार ॥५॥
मुखिया का
देना चाहिए।
हमारे पहुँचने पर
चाहे उसके घर
सही समय पर
गया है जोस
कि सही स
बहुत सी
भी नहीं
हमने अनुसंधान से जितने पाए तत्व।
उनमें कोई सत्य सम, पाता नहीं महत्त्व
6.
7. इस दो
विदया धन उद्यम बिना, कहो जु पावे कौल
बिना डुलाये ना मिले, ज्यों पंखा की पौन
बिना
॥90
विव
करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सजान।
रसरी आवत-जात ते, सिल पर परत निसान
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what is this...and what to do in this
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