Hemu raja kaha ka tha or uska janam haua tha hindi
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आर्थिक सूझ−बूझ में उसके समान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था। हेमू ने अपना अंतिम युद्ध प्रसिद्ध पानीपत के मैदान में लड़ा। यह युद्ध वह मुग़ल सेनापति बैरम ख़ाँ की कूटनीतिक चाल से हार गया। आँख में एक तीर लग जाने से हेमू की सेना बिखर गई और उसे हार का सामना करना पड़ा।
जन्म तथा परिचय
हेमू का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में 1501 ई. में अलवर, राजस्थान में हुआ था। उसके पिता का नाम राय पूरनमल था, जो उस वक़्त पुरोहित थे। बाद के समय में मुग़लोंद्वारा पुरोहितों को परेशान करने की वजह से राय पूरनमल रेवाड़ी, हरियाणा में आकरनमक का व्यवसाय करने लगे। अपनी छोटी आयु से ही हेमू शेरशाह सूरी के लश्कर को अनाज एवं पोटेशियम नाइट्रेट[1] उपलब्ध करने के व्यवसाय में पिता का हाथ बंटाने लगे थे। सन 1540 ई. में शेरशाह सूरी नेबादशाह हुमायूँ को हरा कर क़ाबुल लौट जाने को विवश कर दिया था। हेमू ने उसी वक़्त रेवाड़ी में धातु से विभिन्न तरह के हथियार बनाने के काम की नीव रख दी थी, जो आज भी रेवाड़ी में पीतल, ताँबा, इस्पातके बर्तन के आदि बनाने के काम के रूप में जारी है।[2]
उच्च पद व लोकप्रियता
शेरशाह सूरी की वर्ष 1545 में मृत्यु हो जाने के बाद इस्लामशाह सूर ने उसकी गद्दी संभाली। इस्लामशाह ने हेमू की प्रशासनिक क्षमता को पहचान लिया और उसे व्यापार एवं वित्त संबधी कार्यों के लिए अपना निजी सलाहकार नियुक्त कर लिया। हेमू ने भी अपनी योग्यता को सिद्ध किया और इस्लामशाह सूर का विश्वासपात्र बन गया। इस्लामशाह हेमू से हर मसले पर राय लेता था। हेमू के काम से प्रसन्न होकर उसने हेमू को "दरोगा-ए-चौकी" बना दिया और उच्च पद प्रदान किया। बाद में इस्लामशाह की मृत्यु के बाद उसके बारह वर्ष के अल्प वयस्क पुत्र फ़िरोजशाह को उसी के चाचा के पुत्र आदिलशाह सूरी ने मार दिया और राजगद्दी पर क़ब्ज़ा कर लिया। आदिलशाह ने हेमू को अपना वजीर नियुक्त किया। आदिलशाह अय्याश और शराबी व्यक्ति था। उसे शासन की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी। इस समय सम्पूर्ण अफ़ग़ान शासन प्रबन्ध हेमू के ही हाथ में आ गया था। सेना के भीतर से भी हेमू का विरोध हुआ, किंतु उसने अपने सारे विरोधियों को पराजित कर शांत कर दिया। उस समय तक हेमू की सेना के अफ़ग़ान सैनिक, जिनमे से अधिकतर का जन्म भारत में ही हुआ था, अपने आप को भारत का रहवासी मानने लग गए थे और वे मुग़ल शासकों को विदेशी मानते थे। इसी वजह से हेमू हिन्दू एवं अफ़ग़ान दोनों में काफ़ी लोकप्रिय हो गया था।
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जन्म तथा परिचय
हेमू का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में 1501 ई. में अलवर, राजस्थान में हुआ था। उसके पिता का नाम राय पूरनमल था, जो उस वक़्त पुरोहित थे। बाद के समय में मुग़लोंद्वारा पुरोहितों को परेशान करने की वजह से राय पूरनमल रेवाड़ी, हरियाणा में आकरनमक का व्यवसाय करने लगे। अपनी छोटी आयु से ही हेमू शेरशाह सूरी के लश्कर को अनाज एवं पोटेशियम नाइट्रेट[1] उपलब्ध करने के व्यवसाय में पिता का हाथ बंटाने लगे थे। सन 1540 ई. में शेरशाह सूरी नेबादशाह हुमायूँ को हरा कर क़ाबुल लौट जाने को विवश कर दिया था। हेमू ने उसी वक़्त रेवाड़ी में धातु से विभिन्न तरह के हथियार बनाने के काम की नीव रख दी थी, जो आज भी रेवाड़ी में पीतल, ताँबा, इस्पातके बर्तन के आदि बनाने के काम के रूप में जारी है।[2]
उच्च पद व लोकप्रियता
शेरशाह सूरी की वर्ष 1545 में मृत्यु हो जाने के बाद इस्लामशाह सूर ने उसकी गद्दी संभाली। इस्लामशाह ने हेमू की प्रशासनिक क्षमता को पहचान लिया और उसे व्यापार एवं वित्त संबधी कार्यों के लिए अपना निजी सलाहकार नियुक्त कर लिया। हेमू ने भी अपनी योग्यता को सिद्ध किया और इस्लामशाह सूर का विश्वासपात्र बन गया। इस्लामशाह हेमू से हर मसले पर राय लेता था। हेमू के काम से प्रसन्न होकर उसने हेमू को "दरोगा-ए-चौकी" बना दिया और उच्च पद प्रदान किया। बाद में इस्लामशाह की मृत्यु के बाद उसके बारह वर्ष के अल्प वयस्क पुत्र फ़िरोजशाह को उसी के चाचा के पुत्र आदिलशाह सूरी ने मार दिया और राजगद्दी पर क़ब्ज़ा कर लिया। आदिलशाह ने हेमू को अपना वजीर नियुक्त किया। आदिलशाह अय्याश और शराबी व्यक्ति था। उसे शासन की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी। इस समय सम्पूर्ण अफ़ग़ान शासन प्रबन्ध हेमू के ही हाथ में आ गया था। सेना के भीतर से भी हेमू का विरोध हुआ, किंतु उसने अपने सारे विरोधियों को पराजित कर शांत कर दिया। उस समय तक हेमू की सेना के अफ़ग़ान सैनिक, जिनमे से अधिकतर का जन्म भारत में ही हुआ था, अपने आप को भारत का रहवासी मानने लग गए थे और वे मुग़ल शासकों को विदेशी मानते थे। इसी वजह से हेमू हिन्दू एवं अफ़ग़ान दोनों में काफ़ी लोकप्रिय हो गया था।
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मेवात स्थित रिवाड़ी के tha or India ke the
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