Hindi, asked by Manyaadikshit, 1 year ago

Hey need a hindi story on importence of money .

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Answered by kanika58
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एक बार की बात है एक अमीर व्यापारी का बेटा कुछ सोचते हुए सड़क से जा रहा था सामने से एक कार आ रही थी पर उस का ध्यान कही और ही था राह चलते ने उसे अपनी और खींच कर उस की जान बचा ली उस व्यपारी के लड़के ने उस का शुक्रिया अदा किया और देखते ही देखते उन दोनों की दोस्ती गहरी होती चली गई उस व्यपारी के लड़के ने दूसरे लड़के का दाखिला स्कूल में भी करवा दिया। दोनों की दोस्ती को अब दो साल हो गए थे उनकी पढ़ाई भी पूरी हो गई थी फिर एक दिन व्यापारी के लड़के ने अपने दोस्त से पूछा की अब आगे क्या करेगा उस लड़के ने जवाब दिया की “मेहनत कर के अपना घर चलाऊंगा” और तू क्या करेगा उस लड़के ने पूछा तो व्यापारी के लड़के ने जवाब दिया मुझे मेहनत करने की क्या जरूरत है मैं अपने पिता जी का काम संभालूंगा और जब मैं सब सिख जाऊंगा तब तुम्हे भी बुला लूंगा। पर उस लड़के ने महेनत से जी नही चुराया और कही और जा के मन लगा के काम सीखा। दो साल बाद जब वो दोनों मिले तो व्यापारी के लड़के की हालत खस्ता थी तो उस लड़के ने उसका हाल चाल पूछा व्यापारी के लड़के ने अपनी पूरी बात बताई की उस ने काम में ध्यान नही लगाया और उस का सारा कारोबार ठप हो गया अब उस के पास घर तक नही है तब उस के दोस्त ने अपनी कहानी बताई की वो काम करने के लिए दूसरे शहर तक चला गया और खूब मेहनत कर के पैसा कमा लिया है पर वो उसकी मदद तभी करेगा जब वो खुद मेहनत करना चाहेगा।


Answered by ddeva27
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एक रूपये की कीमत।  

Hindi Story on Extravagance / फिजूलखर्ची पर हिंदी कहानी



बहुत समय पहले की बात है, सुब्रोतो लगभग 20 साल का एक लड़का था और कलकत्ता की एक कॉलोनी में रहता था।

उसके पिताजी एक भट्टी चलाते थे जिसमे वे दूध को पका-पका कर खोया बनाने का काम करते थे।

सुब्रोतो वैसे तो एक अच्छा लड़का था लेकिन उसमे फिजूलखर्ची की एक बुरी आदत थी। वो अक्सर पिताजी से पैसा माँगा करता और उसे खाने-पीने या सिनेमा देखने में खर्च कर देता।

एक दिन पिताजी ने सुब्रोतो को बुलाया और बोले, “देखो बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो और तुम्हे अपनी जिम्मेदारियां समझनी चाहियें। जो आये दिन तुम मुझसे पैसे मांगते रहते हो और उसे इधर-उधर उड़ाते हो ये अच्छी बात नहीं है।”

“क्या पिताजी! कौन सा मैं आपसे हज़ार रुपये ले लेता हूँ… चंद पैसों के लिए आप मुझे इतना बड़ा लेक्चर दे रहे हैं..इतने से पैसे तो मैं जब चाहूँ आपको लौटा सकता हूँ।”, सुब्रोतो नाराज होते हुए बोला।

सुब्रोतो की बात सुनकर पिताजी क्रोधित हो गए, पर वो समझ चुके थे की डांटने-फटकारने से कोई बात नहीं बनेगी। इसलिए उन्होंने कहा, “ ये तो बहुत अच्छी बात है…ऐसा करो कि तुम मुझे ज्यादा नहीं बस एक रूपये रोज लाकर दे दिया करो।”

सुब्रोतो मुस्कुराया और खुद को जीता हुआ महसूस कर वहां से चला गया।

अगले दिन सुब्रोतो जब शाम को पिताजी के पास पहुंचा तो वे उसे देखते ही बोले, “ बेटा, लाओ मेरे 1 रुपये।”

उनकी बात सुनकर सुब्रोतो जरा घबराया और जल्दी से अपनी दादी माँ से एक रुपये लेकर लौटा।

“लीजिये पिताजी ले आया मैं आपके एक रुपये!”, और ऐसा कहते हुए उसने सिक्का पिताजी के हाथ में थमा दिया।

उसे लेते ही पिताजी ने सिक्का भट्टी में फेंक दिया।

“ये क्या, आपने ऐसा क्यों किया?”, सुब्रोतो ने हैरानी से पूछा।

पिताजी बोले-

तुम्हे इससे क्या, तुम्हे तो बस 1 रुपये देने से मतलब होना चाहिए, फिर मैं चाहे उसका जो करूँ।

सुब्रोतो ने भी ज्यादा बहस नहीं की और वहां से चुपचाप चला गया।

अगले दिन जब पिताजी ने उससे 1 रुपया माँगा तो उसने अपनी माँ से पैसा मांग कर दे दिया…कई दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा वो रोज किसी दोस्त-यार या सम्बन्धी से पैसे लेकर पिताजी को देता और वो उसे भट्टी में फेंक देते।

फिर एक दिन ऐसा आया, जब हर कोई उसे पैसे देने से मना करने लगा। सुब्रोतो को चिंता होने लगी कि अब वो पिताजी को एक रुपये कहाँ से लाकर देगा।

शाम भी होने वाली थी, उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो करे क्या! एक रुपया भी ना दे पाने की शर्मिंदगी वो उठाना नहीं चाहता था। तभी उसे एक अधेड़ उम्र का मजदूर दिखा जो किसी मुसाफिर को हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शे से लेकर कहीं जा रहा था।

“सुनो भैया, क्या तुम थोड़ी देर मुझे ये रिक्शा खींचने दोगे? उसके बदले में मैं तुमसे बस एक रुपये लूँगा”, सुब्रोतो ने रिक्शे वाले से कहा।

रिक्शा वाला बहुत थक चुका था, वह फ़ौरन तैयार हो गया।

सुब्रोतो रिक्शा खींचने लगा! ये काम उसने जितना सोचा था उससे कहीं कठिन था… थोड़ी दूर जाने में ही उसकी हथेलियों में छाले पड़ गए, पैर भी दुखने लगे! खैर किसी तरह से उसने अपना काम पूरा किया और बदले में ज़िन्दगी में पहली बार खुद से 1 रुपया कमाया।

आज बड़े गर्व के साथ वो पिताजी के पास पहुंचा और उनकी हथेली में 1 रुपये थमा दिए।

रोज की तरह पिताजी ने रूपये लेते ही उसे भट्टी में फेंकने के लिए हाथ बढाया।

“रुकिए पिताजी!”, सुब्रोतो पिताजी का हाथ थामते हुए बोला, “आप इसे नहीं फेंक सकते! ये मेरे मेहनत की कमाई है।”

और सुब्रोतो ने पूरा वाकया कह सुनाया।

पिताजी आगे बढे और अपने बेटे को गले से लगा लिया।

“देखो बेटा! इतने दिनों से मैं सिक्के आग की भट्टी में फेंक रहा था लकिन तुमने मुझे एक बार भी नहीं रोका पर आज जब तुमने अपनी मेहनत की कमाई को आग में जाते देखा तो एकदम से घबरा गए। ठीक इसी तरह जब तुम मेरी मेहनत की कमाई को बेकार की चीजों में उड़ाते हो तो मुझे भी इतना ही दर्द होता है, मैं भी घबरा जाता हूँ…इसलिए पैसे की कीमत को समझो चाहे वो तुम्हारे हों या किसी और के…कभी भी उसे फिजूलखर्ची में बर्वाद मत करो!”

सुब्रोतो पिताजी की बात समझ चुका था, उसने फौरन उनके चरण स्पर्श किये और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। आज वो एक रुपये की कीमत समझ चुका था और उसने मन ही मन संकल्प लिया कि अब वो कभी भी पैसों की बर्बादी नहीं करेगा।

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