Heyy mates!!!
Essay on "Prakrati ek maa" In hindi.(about 500 words)
Its urgent.
No spam❌❌❌❌❌❌❌
Answers
Answer:एक छोटे से शब्द ”प्रकृति“ में कितना कुछ समाता है कोई सोच भी नहीं सकता। प्रकृति के अन्दर वायु, पानी, मिट्टी, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नदियाँ, सरोवर, झरने, समुद्र, जंगल, पहाड़, खनिज आदि और न जाने कितने प्राकृतिक संसाधन आते हैं। इन सभी से हमें साँस लेने के लिए शुद्ध हवा, पीने के लिए पानी, भोजन आदि जो जीवन के लिए नितान्त आवश्यक हैं उपलब्ध होते हैं। प्रकृति से हमें जीवन जीने की उमंग मिलती है। बसंत देख कर दिल खुश होता है, सावन में रिमझिम बरसात मन को मोह लेती है, इंद्रधनुष हमारे अंतरंग में रंगीन सपने सजाता है। प्रकृति हमें शारीरिक सुख-सुविधा के साथ-साथ मानसिक सुख भी देती है पर हमारे पास प्रकृति को देने के लिए कोई वस्तु नहीं है। यदि कुछ है तो वह सिर्फ इतना कि हम इसका संरक्षण कर सकें।
सूर्य की पहली किरण से लेकर चाँद की चाँदनी तक, खुले मैदानों, बुग्यालों से लेकर जंगल और पहाड़ों तक, नदी के कल-कल मधुर संगीत से लेकर समुद्र में उठती लहरों, पेड़ पर बैठी चिड़िया की चहचहाहट जो भी हमारे आसपास उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन हैं हमें सबका अनुभव करना चाहिये और आनन्द उठाना चाहिये। क्योंकि जब तक हमें इसके महत्व का बोध नहीं होगा और जब तक हम इसके सौंदर्य की सराहना करना नहीं सीखेंगे तब तक हमारे लिए यह महत्व का विषय नहीं हो सकती। किसी चित्रकार, कवि, लेखक और कलाकारों के भाव तभी जागृत होते हैं जब वह प्रकृति की गोद में शांत वातातरण में कल्पना करता है, तभी वह उसे कागज पर उतारता है। इसके बिना तो जीवन में रंग भी नहीं है। जब इंसान मशीनी जीवन जीते-जीते ऊब जाता है तो प्रकृति की गोद में जाकर सुकून की साँस लेना चाहता है। आजकल के युग में मनुष्य प्राकृतिक वस्तुओं की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहा है और वस्तुएं खरीदते समय भी वह प्राकृतिक वस्तुओं या प्राकृतिक तव्वों से बनी वस्तुओं को ही महत्व देता है। जब हम प्राकृतिक उत्पादों को इतना महत्व देते हैं तो प्रकृति को क्यों नहीं ? आखिर ये सब वस्तुएं तभी तक उपलब्ध हैं जब तक यह प्रकृति है।
हम प्रकृति से चाहते तो बहुत कुछ हैं लेकिन अपनी कीमत पर। जिस रफ्तार से हम पेड़ काट कर वनों को कम करके उत्पादों का निर्माण कर रहे हैं उतनी रफ्तार से पौधों का रोपण नहीं हो रहा है। हमें पीने के लिए स्वच्छ जल चाहिये लेकिन कल-कारखानों का सारा जहरीला पानी हम नदियों में ही बहाते हैं। खाने के लिए हमें रसायन मुक्त फल-फूल और भोजन चाहिये लेकिन रसायनों का प्रयोग बन्द नहीं करते। यदि ऐसा ही रहा तो दिखावे मात्र प्रयास करने से प्रकृति पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ेगा। जैसा व्यवहार हम प्रकृति के साथ करेंगे वैसा ही वह हमारे साथ करेगी। बेमौसमी बरसात, बाढ़, सूखा, मौसम परिवर्तन, भू-स्खलन, सूखते जंगल, बंजर भूमि इन सब परिणामों के लिए हमें तैयार रहना चाहये। यदि ऐसा ही रहा तो दिन प्रति दिन यह प्रकृति धीरे-धीरे लुप्त होती जायेगी इसलिए हमें प्रत्यन करना चाहिये कि हम प्रकृति का संतुलन बिगाड़े बगैर इसका लाभ उठा सकें। अन्यथा इसे स्वच्छ और स्वस्थ रखे बिना स्वच्छ और स्वस्थ जीवन की आशा करना बेकार है।
Explanation: