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जिस प्रकार किसी स्त्री की शोभा उसके आभूषणों से बढ़ती है।उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकारों से बढ़ जाती है।
दूसरे शब्दों में, काव्य की शोभा को बढ़ाने के लिए जिस शब्द या तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है उसको हम अलंकार कहते हैं , जैसे. अलन + कार
अलन का अर्थ होता है – भूषण
कार का अर्थ होता है – शुसर्जित करने वाला
अलंकार कितने प्रकार के होते हैं
वैसे तो अलंकार कई प्रकार के होते हैं लेकिन मुख्य रूप से जो प्रमुख अलंकार होते हैं वह दो प्रकार के होते हैं शब्दालंकार और अर्थालंकार
1. शब्दालंकार
जो अलंकार शब्द के माध्यम से शब्दों पर आधारित होते हैं उनको शब्दालंकार कहा जाता है।
(क) अनुप्रास अलंकार
– जिस वाक्य में एक ही वर्ण की बार बार आवृत्ति हो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं , जैसे उदाहरण के लिए.
चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही है जल थल में
अब इसमें आप देख सकते हैं. कि इस उदाहरण में च वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो रही है जिससे कि यह वर्ण वाक्य की शोभा को बढ़ा रहा है ।
(ख) यमक अलंकार-
अनुप्रास अलंकार में एक वर्ण की आवृत्ति बार बार होती है. लेकिन यमक अलंकार में एक पूरे शब्द की आवृत्ति बार-बार होती है. और प्रत्येक शब्द का अर्थ भिन्न भिन्न होता है,जैसे कि
कनक कनक ते सौ गुनी,मादकता अधिकाय,
वह खाए बौराय नर, यह पाए बौराय !
यहाँ कनक शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है लेकिन प्रत्येक का अर्थ भिन्न है कनक-सोना, कनक-धतूरा।
(ग) श्लेष अलंकार
– यह अलंकार अनुप्रास अलंकार और यमक अलंकार दोनों से अलग होता है. इस अलंकार में एक ही शब्द के कई अर्थ होते हैं जैसे.
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून
अब आप इस बारे में देख सकते हैं कि पानी शब्द दो बार लिया गया है और दोनों बार इस शब्द का अर्थ अलग है. एक पानी शब्द का अर्थ है विनम्रता और दूसरे पानी शब्द का मोती और मनुष्य।
2. अर्थालंकार
जब किसी वाक्य की किसी शब्द की या किसी भी तरह के लेखन की अर्थ के आधार पर शोभा बढ़ाई जाती है. उसके अर्थ के हिसाब से उसको सुंदर बनाया जाता है. उस को अच्छा बनाया जाता है. तो उसे अर्थालंकार कहा जाता है.
अर्थालंकार के भेद
अर्थालंकार के मुख्य रूप से पांच भेद होते हैं
1.उपमा अलंकार
जब किसी चीज की दूसरी किसी विशेष चीज के साथ तुलना की जाती है तो उसे उपमा अलंकार कहां जाता है जैसे
पीपर पात सरिस मन डोला
हरि पद कोमल कमल
इस वाक्य में हरि के पैरों की कमल के फूल से तुलना की गई है. हरी के पैरों को इतना कोमल बताया गया है. कि वह कमल के फूल के समान कोमल है तो यह उपमा अलंकार है।
2.रूपक अलंकार
किसी चीज के गुण या उसके रूप की समानता दूसरी चीज के गुण या उसके चीज के रूप से की जाती है. या इसमें दो वस्तुओं को एक दूसरे का रूप दे दिया जाता है. तो उसे रूपक अलंकार कहते हैं. जैसे.
पायो जी मैंने प्रेम रतन धन पायो
चरण-कमल बंदौं हरि राई !
अब इस वाक्य में प्रेम को धन का रुप दिया गया है या प्रेम के गुणों को धन के गुणों के समान माना गया है. तो यह रूपक अलंकार है.
3.उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार की सरल रूप से पहचान यह होती है कि वाक्य में जनहु जानो मनहु मानो शब्द का प्रयोग किया जाता है,-
मुख मानो चंद्रमा है
इस अलंकार में यह प्रतीत होता है. कि किसी भी चीज को दूसरी चीज के समान मान लिया गया हो।उसका मुख मानो चन्द्रमा के समान हो।
4.अतिशयोक्ति अलंकार
जब किसी पद में किसी नामुनकिन बात को बढ़ा चढ़ाकर बताया जाता है. तो उसको अतिशयोक्ति अलंकार कहते हैं. जैसे
लहरें व्योम चुनती उठती
देख लो साकेत नगरी है यही !
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही है !!
इस उदाहरण में आप देख सकते हैं. इसमें लिखा गया है. लहरें व्योम उठती चूमती ऐसा कभी नहीं हो सकता की लहरें इतनी ऊंची उठ जाये आसमान को छू ले यह बिल्कुल नामुनकिन बात है. लेकिन इसको बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लिखा गया है. तो यह एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरणहै।
5. मानवीकरण अलंकार
इस अलंकार में दूसरी निर्जीव चीजों में सजीव होने की बात दर्शाई जाती है. यानी उस चीज में मानव होने का बोध कराया जाता है. जैसे
दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है,
वह संध्या सुंदरी परी-सी
धीरे-धीरे-धीरे !
प्रस्तुत उदाहरण में संध्या को एक सुन्दरी के रूप में मानवीकृत किया गया है।
दूसरे शब्दों में, काव्य की शोभा को बढ़ाने के लिए जिस शब्द या तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है उसको हम अलंकार कहते हैं , जैसे. अलन + कार
अलन का अर्थ होता है – भूषण
कार का अर्थ होता है – शुसर्जित करने वाला
अलंकार कितने प्रकार के होते हैं
वैसे तो अलंकार कई प्रकार के होते हैं लेकिन मुख्य रूप से जो प्रमुख अलंकार होते हैं वह दो प्रकार के होते हैं शब्दालंकार और अर्थालंकार
1. शब्दालंकार
जो अलंकार शब्द के माध्यम से शब्दों पर आधारित होते हैं उनको शब्दालंकार कहा जाता है।
(क) अनुप्रास अलंकार
– जिस वाक्य में एक ही वर्ण की बार बार आवृत्ति हो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं , जैसे उदाहरण के लिए.
चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही है जल थल में
अब इसमें आप देख सकते हैं. कि इस उदाहरण में च वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो रही है जिससे कि यह वर्ण वाक्य की शोभा को बढ़ा रहा है ।
(ख) यमक अलंकार-
अनुप्रास अलंकार में एक वर्ण की आवृत्ति बार बार होती है. लेकिन यमक अलंकार में एक पूरे शब्द की आवृत्ति बार-बार होती है. और प्रत्येक शब्द का अर्थ भिन्न भिन्न होता है,जैसे कि
कनक कनक ते सौ गुनी,मादकता अधिकाय,
वह खाए बौराय नर, यह पाए बौराय !
यहाँ कनक शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है लेकिन प्रत्येक का अर्थ भिन्न है कनक-सोना, कनक-धतूरा।
(ग) श्लेष अलंकार
– यह अलंकार अनुप्रास अलंकार और यमक अलंकार दोनों से अलग होता है. इस अलंकार में एक ही शब्द के कई अर्थ होते हैं जैसे.
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून
अब आप इस बारे में देख सकते हैं कि पानी शब्द दो बार लिया गया है और दोनों बार इस शब्द का अर्थ अलग है. एक पानी शब्द का अर्थ है विनम्रता और दूसरे पानी शब्द का मोती और मनुष्य।
2. अर्थालंकार
जब किसी वाक्य की किसी शब्द की या किसी भी तरह के लेखन की अर्थ के आधार पर शोभा बढ़ाई जाती है. उसके अर्थ के हिसाब से उसको सुंदर बनाया जाता है. उस को अच्छा बनाया जाता है. तो उसे अर्थालंकार कहा जाता है.
अर्थालंकार के भेद
अर्थालंकार के मुख्य रूप से पांच भेद होते हैं
1.उपमा अलंकार
जब किसी चीज की दूसरी किसी विशेष चीज के साथ तुलना की जाती है तो उसे उपमा अलंकार कहां जाता है जैसे
पीपर पात सरिस मन डोला
हरि पद कोमल कमल
इस वाक्य में हरि के पैरों की कमल के फूल से तुलना की गई है. हरी के पैरों को इतना कोमल बताया गया है. कि वह कमल के फूल के समान कोमल है तो यह उपमा अलंकार है।
2.रूपक अलंकार
किसी चीज के गुण या उसके रूप की समानता दूसरी चीज के गुण या उसके चीज के रूप से की जाती है. या इसमें दो वस्तुओं को एक दूसरे का रूप दे दिया जाता है. तो उसे रूपक अलंकार कहते हैं. जैसे.
पायो जी मैंने प्रेम रतन धन पायो
चरण-कमल बंदौं हरि राई !
अब इस वाक्य में प्रेम को धन का रुप दिया गया है या प्रेम के गुणों को धन के गुणों के समान माना गया है. तो यह रूपक अलंकार है.
3.उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार की सरल रूप से पहचान यह होती है कि वाक्य में जनहु जानो मनहु मानो शब्द का प्रयोग किया जाता है,-
मुख मानो चंद्रमा है
इस अलंकार में यह प्रतीत होता है. कि किसी भी चीज को दूसरी चीज के समान मान लिया गया हो।उसका मुख मानो चन्द्रमा के समान हो।
4.अतिशयोक्ति अलंकार
जब किसी पद में किसी नामुनकिन बात को बढ़ा चढ़ाकर बताया जाता है. तो उसको अतिशयोक्ति अलंकार कहते हैं. जैसे
लहरें व्योम चुनती उठती
देख लो साकेत नगरी है यही !
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही है !!
इस उदाहरण में आप देख सकते हैं. इसमें लिखा गया है. लहरें व्योम उठती चूमती ऐसा कभी नहीं हो सकता की लहरें इतनी ऊंची उठ जाये आसमान को छू ले यह बिल्कुल नामुनकिन बात है. लेकिन इसको बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लिखा गया है. तो यह एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरणहै।
5. मानवीकरण अलंकार
इस अलंकार में दूसरी निर्जीव चीजों में सजीव होने की बात दर्शाई जाती है. यानी उस चीज में मानव होने का बोध कराया जाता है. जैसे
दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है,
वह संध्या सुंदरी परी-सी
धीरे-धीरे-धीरे !
प्रस्तुत उदाहरण में संध्या को एक सुन्दरी के रूप में मानवीकृत किया गया है।
sejal07:
Aapni gf ki respct toh krte nhi hoo
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letter writing in hindi for 2days leave
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