hi...please tell me story in hindi on bal manovigyan
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hello
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Sorry I don't know any stories
If you mark brainliest I will try to say
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गुड्डू स्कूल से लौट कर मम्मी को पूरे घर मे खोजते- खोजते परेशान हो गई। मम्मी कहीं मिल ही नहीं रही थी । हाँ, आज पापा जरुर घर में हीं थे । वह रोते-रोते पापा के पास पहुँच गई। पापा ने बताया मम्मी अस्पताल गई है। कुछ दिनों में वापस आ जाएगी। तब तक वे उसका ख्याल रखेगें। शाम में पापा के हाथ से दूध पीना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। दूध पी कर,वह बिस्तर में रोते- रोते न जाने कब सो गई। रात में पापा ने उसे खाना खाने उठाया। वह पापा से लिपट गई। उसे लगा, चलो पापा तो पास है। पर खाना खाते-खाते पापा ने समझाया कि मम्मी अस्पताल में हैं। रात में वे अकेली न रहें इसलिए पापा को अस्पताल जाना पड़ेगा। गुड्डू उदास हो गई। वह डर भी गई थी। वह जानना चाहती थी कि मम्मी अचानक अस्पताल क्यों गई? पर घर में कोई कुछ बता हीं नहीं रहा था।
उसकी आँखों में आँसू देख कर पापा उसके बगल में लेट गए। उन्होंने गुड्डू से पूछा- ‘ गुड्डू कहानी सुनना है क्या?’ अच्छा, मै तुम्हें कछुए की कहानी सुनाता हूँ।’ गुड्डू ने जल्दी से कहा- ‘ नहीं, नहीं,कोई नई कहानी सुनाओ न ! कछुए और खरगोश की कहानी तो स्कूल में आज ही मेरी टीचर ने सुनाई थी।”
पापा ने मुस्कुरा कर जवाब दिया- ” यह दूसरी कहानी है।” गुड्डू ने आँखों के आँसू पोँछ लिए। पापा ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा- ” बेटा, यह पैसेफिक समुद्र और हिंद महासागर में रहने वाले कछुओं की कहानी हैं। ये आलिव रीडले कछुए के नाम से जाने जाते हैं। हर साल ये कछुए सैकड़ो किलोमीटर दूर से अंडा देने हमारे देश के समुद्र तट पर आते हैं। गुड्डू ने हैरानी से पापा से पूछा- ये हमारे देश में कहाँ अंडे देने आते हैं? ” पापा ने जवाब दिया- ये कछुए हर साल उड़ीसा के गहिरमाथा नाम के जगह पर लाखों की संख्या में आते हैं। अंडे दे कर ये वापस समुद्र में चले जाते हैं। इन छोटे समुद्री कछुओं का यह जन्म स्थान होता है। फिर पापा ने कहानी शुरू की।
हजारों मीलों से लाखों कछुए समुद्र के किनारे आने लगे। जैसे वहाँ उनका मेला लगा हो। धीरे-धीरे वे बाहर बालू पर आने लगे अौर बालू में बङे-बङे गड्ढ़ों की खुदाई करने लगे। उन गड्ढ़ों में उन्हों ने बहुत सारे अंडे दिये। फिर सावधानी से उसे बालू से ढँक कर छुपा दिया अौर चुपचाप गहरे सागर की खुबसूरत नीली लहरों में जा कर खो गये। अब यहाँ, बालू के नीचे कछुओं के सैकङों घोसलें थे । पर ऊपर से सिर्फ सुनहरे बालुअों का सागर तट हीं दिखता था। कोई नहीं कह सकता था कि यहाँ बालुअों के नीचे इतने सारे आलिवे रीडले कछुए के घोंसले हैं अौर इन में कछुओं के ढेरो अंडे हैं। कुछ समय, लगभग दो महीने के बाद एक जादू सा हुआ। रात के समय बालू के नीचे से कछुए के अनेकों बच्चे निकलने लगे। सागर तट कछुए के छोटे-छोटे बच्चों से भर गया।
सभी बच्चों ने घोसलें से निकालने के बाद घोसलें के चारो ओर चक्कर लगाया। जैसे वे कुछ खोज रहे हो। शायद वे अपनी माँ को खोज रहे थे। पर वे अपनी माँ को पहचानते ही नहीं थे। क्योंकि जब वे घोसलें से निकले तब उनकी माँ वहाँ थी हीं नही। माँ को खोजते -खोजते वे सब धीरे-धीरे सागर की ओर बढ़ने लगे। सबसे आगे हल्के हरे रंग का ‘ऑलिव’ कछुआ था। उसके पीछे ढेरो छोटे-छोटे कछुए थे। वे सभी उसके भाई-बहन थे।
‘ऑलिव’ ने थोड़ी दूर एक सफ़ेद बगुले को देखा। उसने पीछे मुड़ कर अपने भाई-बहनों से पूछा- वह हमारी माँ है क्या? हमलोग जब अंडे से निकले थे, तब हमारी माँ हमारे पास नहीं थी। हम उसे कैसे पहचानेगें? पीछे आ रहे गहरे भूरे रंग के कॉफी कछुए ने कहा- भागो-भागो, यह हमारी माँ नहीं हो सकती है। इसने तो एक छोटे से कछुए को खाने के लिए चोंच में पकड़ रखा है। थोड़ा आगे जाने पर उन्हे एक केकड़ा नज़र आया। ऑलिव ने पास जा कर पूछा- क्या तुम मेरी माँ हो? केकड़े ने कहा- नहीं मै तुम्हारी माँ नहीं हूँ।वह तो तुम्हें समुद्र मे मिलेगी।
सभी छोटे कछुए तेज़ी से समुद्र की ओर भागने लगे। वहाँ पहुँचते, नीले पानी की लहरे उन्हें अपने साथ सागर मे बहा ले गई। पानी में पँहुचते ही वे उसमे तैरने लगे। तभी एक डॉल्फ़िन मछली तैरती नज़र आई। इस बार भूरे रंग के ‘कॉफी’ कछुए ने आगे बढ़ कर पूछा- क्या तुम हमारी माँ हो? डॉल्फ़िन ने हँस कर कहा- अरे बुद्धू, तुम्हारी माँ तो तुम जैसी ही होगी न? मै तुम्हारी माँ नहीं हूँ। फिर उसने एक ओर इशारा किया। सभी बच्चे तेज़ी से उधर तैरने लगे। सामने चट्टान के नीचे उन्हे एक बहुत बड़ा कछुआ दिखा। सभी छोटे कछुआ उसके पास पहुच कर माँ-माँ पुकारने लगे। बड़े कछुए ने मुस्कुरा कर देखा और कहा- मैं तुम जैसी तो हूँ। पर तुम्हारी माँ नहीं हूँ। सभी बच्चे चिल्ला पड़े- फिर हमारी माँ कहाँ है? बड़े कछुए ने उन्हें पास बुलाया और कहा- सुनो बच्चों, कछुआ मम्मी अपने अंडे, समुद्र के किनारे बालू के नीचे घोंसले बना कर देती है। फिर उसे बालू से ढ़क देती है। वह वापस हमेशा के लिए समुद्र मे चली जाती है। वह कभी वापस नहीं आती है। अंडे से निकलने के बाद बच्चों को समुद्र में जा करअपना रास्ता स्वयं खोजना पड़ता है। तुम्हारे सामने यह खूबसूरत समुद्र फैला है। जाओ, आगे बढ़ो और अपने आप जिंदगी जीना सीखो। सभी बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी गहरे नीले पानी में आगे बढ़ गए।
कहानी सुन कर गुड्डू सोचने लगी, काश मेरे भी छोटे भाई या बहन होते। कहानी पूरी कर पापा ने गुड्डू की आँसू भरी आँखें देख कर पूछा- अरे, इतने छोटे कछुए इतने बहादुर होते है। तुम तो बड़ी हो चुकी हो। फिर भी रो रही हो? मै रोना नहीं चाहती हूँ । पर मम्मी को याद कर रोना आ जाता है। आँसू पोंछ कर गुड्डू ने मुस्कुराते हुए कहा। थोड़ी देर में वह गहरी नींद मे डूब गई।
अगली सुबह पापा उसे अपने साथ अस्पताल ले गए। वह भी मम्मी से मिलने के लिए परेशान थी। पास पहुँचने पर उसे लगा जैसे उसका सपना साकार हो गया। वह ख़ुशी से उछल पड़ी। मम्मी के बगल में एक छोटी सी गुड़िया जैसी बेबी सो रही थी। मम्मी ने बताया, वह दीदी बन गई है। यह गुड़िया उसकी छोटी बहन है।
उसकी आँखों में आँसू देख कर पापा उसके बगल में लेट गए। उन्होंने गुड्डू से पूछा- ‘ गुड्डू कहानी सुनना है क्या?’ अच्छा, मै तुम्हें कछुए की कहानी सुनाता हूँ।’ गुड्डू ने जल्दी से कहा- ‘ नहीं, नहीं,कोई नई कहानी सुनाओ न ! कछुए और खरगोश की कहानी तो स्कूल में आज ही मेरी टीचर ने सुनाई थी।”
पापा ने मुस्कुरा कर जवाब दिया- ” यह दूसरी कहानी है।” गुड्डू ने आँखों के आँसू पोँछ लिए। पापा ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा- ” बेटा, यह पैसेफिक समुद्र और हिंद महासागर में रहने वाले कछुओं की कहानी हैं। ये आलिव रीडले कछुए के नाम से जाने जाते हैं। हर साल ये कछुए सैकड़ो किलोमीटर दूर से अंडा देने हमारे देश के समुद्र तट पर आते हैं। गुड्डू ने हैरानी से पापा से पूछा- ये हमारे देश में कहाँ अंडे देने आते हैं? ” पापा ने जवाब दिया- ये कछुए हर साल उड़ीसा के गहिरमाथा नाम के जगह पर लाखों की संख्या में आते हैं। अंडे दे कर ये वापस समुद्र में चले जाते हैं। इन छोटे समुद्री कछुओं का यह जन्म स्थान होता है। फिर पापा ने कहानी शुरू की।
हजारों मीलों से लाखों कछुए समुद्र के किनारे आने लगे। जैसे वहाँ उनका मेला लगा हो। धीरे-धीरे वे बाहर बालू पर आने लगे अौर बालू में बङे-बङे गड्ढ़ों की खुदाई करने लगे। उन गड्ढ़ों में उन्हों ने बहुत सारे अंडे दिये। फिर सावधानी से उसे बालू से ढँक कर छुपा दिया अौर चुपचाप गहरे सागर की खुबसूरत नीली लहरों में जा कर खो गये। अब यहाँ, बालू के नीचे कछुओं के सैकङों घोसलें थे । पर ऊपर से सिर्फ सुनहरे बालुअों का सागर तट हीं दिखता था। कोई नहीं कह सकता था कि यहाँ बालुअों के नीचे इतने सारे आलिवे रीडले कछुए के घोंसले हैं अौर इन में कछुओं के ढेरो अंडे हैं। कुछ समय, लगभग दो महीने के बाद एक जादू सा हुआ। रात के समय बालू के नीचे से कछुए के अनेकों बच्चे निकलने लगे। सागर तट कछुए के छोटे-छोटे बच्चों से भर गया।
सभी बच्चों ने घोसलें से निकालने के बाद घोसलें के चारो ओर चक्कर लगाया। जैसे वे कुछ खोज रहे हो। शायद वे अपनी माँ को खोज रहे थे। पर वे अपनी माँ को पहचानते ही नहीं थे। क्योंकि जब वे घोसलें से निकले तब उनकी माँ वहाँ थी हीं नही। माँ को खोजते -खोजते वे सब धीरे-धीरे सागर की ओर बढ़ने लगे। सबसे आगे हल्के हरे रंग का ‘ऑलिव’ कछुआ था। उसके पीछे ढेरो छोटे-छोटे कछुए थे। वे सभी उसके भाई-बहन थे।
‘ऑलिव’ ने थोड़ी दूर एक सफ़ेद बगुले को देखा। उसने पीछे मुड़ कर अपने भाई-बहनों से पूछा- वह हमारी माँ है क्या? हमलोग जब अंडे से निकले थे, तब हमारी माँ हमारे पास नहीं थी। हम उसे कैसे पहचानेगें? पीछे आ रहे गहरे भूरे रंग के कॉफी कछुए ने कहा- भागो-भागो, यह हमारी माँ नहीं हो सकती है। इसने तो एक छोटे से कछुए को खाने के लिए चोंच में पकड़ रखा है। थोड़ा आगे जाने पर उन्हे एक केकड़ा नज़र आया। ऑलिव ने पास जा कर पूछा- क्या तुम मेरी माँ हो? केकड़े ने कहा- नहीं मै तुम्हारी माँ नहीं हूँ।वह तो तुम्हें समुद्र मे मिलेगी।
सभी छोटे कछुए तेज़ी से समुद्र की ओर भागने लगे। वहाँ पहुँचते, नीले पानी की लहरे उन्हें अपने साथ सागर मे बहा ले गई। पानी में पँहुचते ही वे उसमे तैरने लगे। तभी एक डॉल्फ़िन मछली तैरती नज़र आई। इस बार भूरे रंग के ‘कॉफी’ कछुए ने आगे बढ़ कर पूछा- क्या तुम हमारी माँ हो? डॉल्फ़िन ने हँस कर कहा- अरे बुद्धू, तुम्हारी माँ तो तुम जैसी ही होगी न? मै तुम्हारी माँ नहीं हूँ। फिर उसने एक ओर इशारा किया। सभी बच्चे तेज़ी से उधर तैरने लगे। सामने चट्टान के नीचे उन्हे एक बहुत बड़ा कछुआ दिखा। सभी छोटे कछुआ उसके पास पहुच कर माँ-माँ पुकारने लगे। बड़े कछुए ने मुस्कुरा कर देखा और कहा- मैं तुम जैसी तो हूँ। पर तुम्हारी माँ नहीं हूँ। सभी बच्चे चिल्ला पड़े- फिर हमारी माँ कहाँ है? बड़े कछुए ने उन्हें पास बुलाया और कहा- सुनो बच्चों, कछुआ मम्मी अपने अंडे, समुद्र के किनारे बालू के नीचे घोंसले बना कर देती है। फिर उसे बालू से ढ़क देती है। वह वापस हमेशा के लिए समुद्र मे चली जाती है। वह कभी वापस नहीं आती है। अंडे से निकलने के बाद बच्चों को समुद्र में जा करअपना रास्ता स्वयं खोजना पड़ता है। तुम्हारे सामने यह खूबसूरत समुद्र फैला है। जाओ, आगे बढ़ो और अपने आप जिंदगी जीना सीखो। सभी बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी गहरे नीले पानी में आगे बढ़ गए।
कहानी सुन कर गुड्डू सोचने लगी, काश मेरे भी छोटे भाई या बहन होते। कहानी पूरी कर पापा ने गुड्डू की आँसू भरी आँखें देख कर पूछा- अरे, इतने छोटे कछुए इतने बहादुर होते है। तुम तो बड़ी हो चुकी हो। फिर भी रो रही हो? मै रोना नहीं चाहती हूँ । पर मम्मी को याद कर रोना आ जाता है। आँसू पोंछ कर गुड्डू ने मुस्कुराते हुए कहा। थोड़ी देर में वह गहरी नींद मे डूब गई।
अगली सुबह पापा उसे अपने साथ अस्पताल ले गए। वह भी मम्मी से मिलने के लिए परेशान थी। पास पहुँचने पर उसे लगा जैसे उसका सपना साकार हो गया। वह ख़ुशी से उछल पड़ी। मम्मी के बगल में एक छोटी सी गुड़िया जैसी बेबी सो रही थी। मम्मी ने बताया, वह दीदी बन गई है। यह गुड़िया उसकी छोटी बहन है।
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