Physics, asked by itzcuitipie, 2 months ago

hindi divas par vruthant lekhan​

Answers

Answered by mansiparida
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Explanation:

Match the following conversation to their ending. Read and check. (0.5×4 =2)

1 Teaching children has

a) but I fell down.

2. Some of teacher helped me with

Math and English and I taught their children.

b) made my life meaningful and worthy.

3. Sometimes I tried to imitate them

c) give tution to pay my school.

4.Nobody helped me with my studies and I had to

d)Arabic and Urdu in return.

Answered by aditya876881
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Explanation:

वृत्तांत लेखन हिंदी दिवस समारोह आज हिन्दी का दिन है। हिन्दी दिवस। आज ही के दिन हिन्दी को संवैधानिक रूप से भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था। दो सौ साल की ब्रिटिश राज की गुलामी से आजाद हुए देश ने तब ये सपना देखा था कि एक दिन पूरे देश में एक ऐसी भाषा होगी जिसके माध्यम से कश्मीर से कन्याकुमारी तक संवाद संभव हो सकेगा। आजादी के नायकों को इस बात में तनिक संदेह नहीं था कि हिन्दुस्तान की संपर्क भाषा बनने का महती दायित्व केवल और केवल हिन्दी उठा सकती है। इसीलिए इस संविधान निर्माताओं ने देवनागरी में लिखी हिन्दी को नए देश की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। संविधान निर्माताओं ने तय किया था कि जब तक हिन्दी वास्तविक अर्थों में पूरे देश की संपर्क भाषा नहीं बना जाती तब तक अंग्रेजी भी देश की आधिकारिक भाषा रहेगी। संविधान निर्माताओं का अनुमान था कि आजादी के बाद अगले 15 सालों में हिन्दी पूरी तरह अंग्रेजी की जगह ले लेगी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हों या देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, सभी इस बात पर एकमत थे कि ब्रिटेन की गुलामी की प्रतीक अंग्रेजी भाषा को हमेशा के लिए देश की आधिकारिक भाषा नहीं होना चाहिए। लेकिन अंग्रेजों के जाने के बाद भी उनकी “फूट डालो और राज करो” की नीति भाषा के क्षेत्र में चलती रही। हिन्दी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के खिलाफ उसकी बहनों ने ही बगावत कर दी। उन्होंने एक परायी भाषा “अंग्रेजी” के पक्ष में खड़ा होकर अपनी सहोदर भाषा का विरोध किया। जबकि उनका भय पूरी तरह निराधार था। हिन्दी किसी भी दूसरी भाषा की कीमत पर राष्ट्रभाषा नहीं बनना चाहती। देश की सभी राज्य सरकारें अपनी-अपनी राजभाषाओं में काम करने के लिए स्वतंत्र थीं। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार परस्पर सह-अस्तित्व पर आधारित था, न कि एक भाषा की दूसरी भाषा की अधीनता पर।आजादी के 70 साल बाद भी स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों की वह इच्छा अधूरी है। आज पूरे देश में शायद ही ऐसा कोना हो जहां दो-चार हिन्दी भाषी न हों। शायद ही ऐसा कोई प्रदेश हो जहां आम लोग कामचलाऊ हिन्दी न जानते हों। भले ही आधिकारिक तौर पर हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा न हो केवल राजभाषा हो, व्यावाहरिक तौर पर वो इस देश की सर्वव्यापी भाषा है। ऐसे में जरूरत है हिन्दी को उसका वाजिब हक दिलाने की जिसका सपना संविधान निर्माताओं ने देखा था। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की माँग कमोबेश हर हिन्दी भाषी को सुहाती है। लेकिन इसकी आलोचना पर बहुत से लोग मुँह बिचकाने लगते हैं। आज हम हिन्दी की ऐसी दो खास समस्याओं पर बात करेंगे जिन्हें दूर किए बिना हिन्दी सही मायनों में राष्ट्रभाषा नहीं बन सकती। अंग्रेजी, चीनी, अरबी, स्पैनिश, फ्रेंच इत्यादि के साथ ही हिन्दी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में एक है। लेकिन इसकी तुलना अगर अन्य भाषाओं से करें तो ये कई मामलों में पिछड़ी नजर आती है और इसके लिए जिम्मेदार है कुछ हिन्दी प्रेमियों का संकीर्ण नजरिया। हिन्दी के विकास में सबसे बड़ी बाधा वो शुद्धतावादी हैं जो इसमें से फारसी, अरबी, तुर्की और अंग्रेजी इत्यादि भाषाओं से आए शब्दों को निकाल देना चाहते हैं। ऐसे लोग संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दों के बोझ तले कराहती हिन्दी को “सच्ची हिन्दी” मानते हैं। लेकिन यहाँ मशहूर भाषाविद प्रोफेसर गणेश देवी को याद करने की जरूरत है जो कहते हैं भाषा जितनी भ्रष्ट होती है उतनी विकसित होती है। प्रोफेसर देवी का सीधा आशय है कि जिस भाषा में जितनी मिलावट होती है वो उतनी समृद्धि और प्राणवान होती है। अंग्रेजों को लूट, डकैती, धोती और पंडित जैसे खालिस भारतीय शब्द अपनी भाषा में शामिल करने में कोई लाज नहीं आती लेकिन भारतीय शुद्धतावादी लालटेन, कम्प्यूटर, अस्पताल, स्कूल, इंजन जैसे शब्दों को देखकर भी मुँह बिचकाते हैं जिनका प्रयोग अनपढ़ और गंवई भारतीय भी आसानी से कर लेते हैं। तो हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने के लिए जरूरी है कि वो समस्त भारतीय भाषाओं और अन्य भाषाओं से अपनी जरूरत के हिसाब से शब्दों को लेने में जरा भ संकोच न करे। हम परायी भाषा के शब्दों को हिन्दी में जबरन घुसेड़ने की वकालत नहीं कर रहे। लेकिन जो शब्द सहज और सरल रूप से हिन्दी में रच-बस गये हों उन्हें गले लगाने की बात कर रहे हैं। हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने में दूसरी बड़ी दिक्कत है इसका ज्ञान-विज्ञान में हाथ तंग होना। कोई भाषा केवल अनुपम साहित्य के बल पर राष्ट्रभाषा का दायित्व नहीं निभा सकती। भाषा को ज्ञान, विज्ञान, व्यापार और संचार इत्यादि क्षेत्रों के लिए भी खुद को तैयार करना होता है। आज हिन्दी इन क्षेत्रों में दुनिया की अन्य बड़ी भाषाओं से पीछे है। गैर-साहित्यिक क्षेत्रों में हिन्दी में उच्च गुणवत्ता के चिंतन और पठन सामग्री के अभाव से हिन्दी बौद्धिक रूप से विकलांग प्रतीत होती है। आज जरूरत है कि विज्ञान और समाज विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दुस्तानी को बढ़ावा दिया जाए। तभी सही मायनो में हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा बन सकेगी। अगर इन दो बातों पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए तो हिन्दी को वैश्विक स्तर पर पहचान और प्रतिष्ठा पाने से कोई नहीं रोक सकेगा।

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