hindi essay on ankho dekhi durgatna in 350-400 words
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अभी तीन महीने की बात है मैं अपने दोस्त के साथ शाम के समय बाजार की ओर जा रहा था। दो दिनों बाद दिवाली थी। मैं और मेरे दोस्त को दिवाली के लिए कुछ सामान की खरीदारी करनी थी। दिवाली के कारण बाजार में बहुत भीड़ थी। चलते चलते हम लोग मुख्य बाजार की सड़क पर आ गए। हम चल ही रहे थे तभी हमने देखा कि एक महिला भी अपने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ खरीदारी के लिए आई हुई थी। उसके दोनों बच्चे थोड़े शरारती थे। महिला एक दुकान पर खड़ी होकर किसी सामान के मोल-भाव में व्यस्त थी। तभी उसके दोनों बच्चे नजर बचाकर सड़क पर आ गए और खेलने लगे। तभी सामने से एक बेकाबू कार आती थी कि और ऐसा लगने लगा कि उस कार का ब्रेक फेल हो गया है। हम लोग थोड़ी दूर पर थे और एकदम से उस जगह पर नहीं आ सकते थे। तभी हमने देखा कि महिला की नजर अपने बच्चों पर पड़ी और उसने देखा कि कार भी तेजी से उनकी तरफ आ रही है। ऐसे में महिला चिल्लाकर अपने बच्चों को बचाने के लिए दौड़ी। उसने तेजी से दौड़ कर अपने बच्चों को खींचा और इस प्रक्रिया में वह अपना संतुलन खो बैठी और कार के सामने आ गई और कान ने उसे जोर से टक्कर मार दी।
हालांकि उसके दोनों बच्चे बच गए उन्हें हल्की सी खरोच आई लेकिन उस महिला को गंभीर चोटें आ गई थीं। कार भी बेकाबू होकर एक दुकान के शटर से जा टकराई। जिससे वहां भगदड़ मच गई लेकिन कोई हताहत नहीं हुआ। महिला खून से लथपथ सड़क पर पड़ी थी। उसके बच्चे उसकी ऐसी हालत देखकर जोर-जोर से रोने लगे। आसपास अफरा-तफरी मच गई। तभी किसी ने एंबुलेंस और पुलिस को फोन कर दिया। तुरंत पास की पुलिस चौकी से पुलिस आ गई और एंबुलेंस भी आ गई। महिला को गंभीर चोटे आई थीं और वह जीवित थी।
पुलिस ने आनन-फानन में महिला को एंबुलेंस में डाला और अस्पताल की ओर रवाना कर दिया। उसके दोनों बच्चों को एक लेडी पुलिस कांस्टेबल ने संभाल लिया। साथ ही महिला के पास एक मोबाइल फोन मिला, जिससे उस महिला के घर वालों का नंबर ज्ञात हुआ। फिर पुलिस ने उसके घर वालों को फोन किया गया। उसके बच्चे बेहद रो रहे थे और उनको रोते देखकर हमें भी बड़ा बुरा महसूस हो रहा था। लेकिन शुक्र है भगवान का कि उसके दोनों बच्चे को कोई चोट नहीं आई थी और महिला को भी लग रहा था कि वह जीवित बच जाएगी।
बाद में उत्सुकता बस हम लोग भी अस्पताल पहुंचे। जहां पर उस महिला को ले जाया गया था तो वहां पता चला कि महिला अब खतरे से बाहर है। तब हमने भी राहत की सांस ली और उसके बच्चों की मासूम छवि हमारे सामने हमारी आंखों के सामने आ गई और हमें बड़ा अच्छा महसूस हुआ कि भगवान ने उसके मासूम बच्चों के साथ अन्याय नहीं किया और उनकी माँ सही सलामत है।
मैं अपने मित्रों के साथ घूम रहा था। शाम के सात बज रहे थे। तभी हमने देखा हमारे पास वाली इमारत में आग लग गई। चूंकि आग मेरे सामने लगी थी। अतः मैंने तुरंत कदम उठाया और दमकल केंद्र में फोन कर दिया। उनके आने में समय था। आग धीरे-धीरे फैल रही थी। मैंने आव देखा न ताव और अपने घर की रसोई से पानी का पाइप लगा दिया। चूंकि इमारत मेरे घर की रसोई की खिड़की के सामने थी। पास वाली इमारत मेरे घर से 10 फुट दूरी पर थी।
अतः पाइप से पानी डालना कठिन नहीं था। हम दोनों इमारतों के मध्यम से गली निकलती थी। मेरी इस हरकत पर लोग चिल्लाए परन्तु जब लोगों का ध्यान उस ओर गया तो लोग हरकत में आए और इमारत को समय रहते खाली करा लिया गया। आग बढ़ रही थी। पर जिस स्थान पर मैंने पानी डाला वहाँ पर आग का प्रभाव अधिक नहीं रहा और इस तरह से सबको बचाया जा सका।