Hindi, asked by rahulmali56576, 1 year ago

Hindi Essay on ghayal Panchi Ki Atmakatha

Answers

Answered by mchatterjee
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बच्चे स्पर्श के लिए ठंडा है

कोई कदम उठाने, उड़ने, अपना मुंह खोलने का प्रयास नहीं करता है या जब संपर्क किया जाता है

अपने सिर को पकड़ने में कठिनाई

बेबी कीड़े, चींटियों, या चावल अनाज (फ्लाई पैकेट) के टुकड़े जैसा दिखता है

बेबी निर्जलित है - पक्षी की छाती पर अपनी अंगुली ऊपर या नीचे की तरफ चलाएं यदि त्वचा झुर्रियों और झुर्री में रहती है, तो वह निर्जलित होती है अगर त्वचा आपके स्पर्श को ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं देती है, तो यह अच्छी बात है,

बेबी खून बह रहा है या पेंचचर घाव है पक्षी पर किसी भी गोल, छेद के आकार का घाव एक चिड़िया के लिए बहुत गंभीर बात है।

जब बच्चा साँस लेने की कोशिश करता है तो बच्चा हांफते या गड़बड़ कर रहा है या अन्य शोर कर रहा है। पक्षी अक्सर चीख देते हैं और 'बचाए जाने' के एक टन शोर करते हैं और यह ठीक है, लेकिन चिपचिपा ध्वनि साँस लेना, या गाँठना सामान्य नहीं है।

बेबी एक तरफ झुका हुआ है, गिरते हुए और सही खुद को सक्षम नहीं है। इस व्यवहार के साथ ही दौरे के साथ हो सकता है।
Answered by rkkgupta15186
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hindi.yourstory.com

घायल पक्षियों की जान बचाने में जुटा है एक जौहरी

 Geeta Bisht

 

 March 14, 2017

 Tags:प्रेरणा   व्यक्तिगत विकास   संघर्ष   विविध  

जब तक इंसान और पर्यावरण के बीच संतुलन बना रहेगा तब तक दुनिया के अस्तित्व को कोई खतरा नहीं है। लेकिन विकास की दौड़ में इंसान ने पर्यावरण के बारे में ज्यादा सोचना छोड़ दिया है। मोबाइल के इस दौर में वैसे भी रेडिएशन के कारण शहरों में पक्षियों की कई प्रजातियां लुप्त होने की कगार में हैं। वहीं दूसरी ओर अपने शौक पूरा करने के लिए हम कभी भी उनकी जिंदगी के बारे में नहीं सोचते हैं और कई बार जाने अंजाने पक्षियों की जिंदगी संकट में पड़ जाती है। लेकिन एक इंसान ऐसा है जो ना सिर्फ इनके बारे में सोचता है बल्कि इनसे प्यार करता है और जरूरत पड़ने पर इन पक्षियों का इलाज भी कराता है। तभी तो राजस्थान के जयपुर शहर में रहने वाले रोहित गंगवाल इस साल अब तक 16 सौ से ज्यादा पक्षियों की जान बचा चुके हैं।




पेशे से जौहरी रोहित गंगवाल की पढ़ाई लिखाई जयपुर में ही हुई है। वो बताते हैं कि “जयपुर में साल 2006 के जनवरी महीने में मशहूर पतंग महोत्सव चल रहा था तो मैं भी वहां पर मौजूद था। प्रतियोगिता के दौरान अचानक एक पक्षी पतंग की डोर से घायल होकर जमीन में गिर गया। उसकी ऐसी हालत देख मुझे बहुत बुरा लगा और मैंने उस पक्षी को अपने हाथ में उठा लिया। जिसके बाद में उसे बर्ड शेल्टर ले जाने लगा, लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गयी।” इस घटना से रोहित को काफी धक्का लगा और उन्होने उसी दिन फैसला कर लिया कि वो अब अपने जीवन में घायल पक्षियों की देखभाल का काम करेंगे। इसके बाद रोहित ने अपने दोस्तों से इस बारे में बात की और पक्षियों के लिए ‘रक्षा’ नाम से एक संगठन बनाया।




अपने संगठन ‘रक्षा’ के लिए उन्होने सबसे पहले डॉक्टर और नर्सों की एक टीम तैयार की। साथ ही उन्होने घायल पक्षियों के लिए जयपुर में एक शेल्टर होम बनाया जहां पर की घायल पक्षियों को रखा जा सके। अपने इस संगठन के जरिये वो जयपुर और फुलेरा में घायल पक्षियों की देखभाल करते हैं। घायल पक्षियों के लिये एक हेल्पलाइन नंबर 9828500065 भी है। इस नंबर पर कोई भी व्यक्ति 24 घंटे सातों दिन में कभी भी उनसे सम्पर्क कर घायल पक्षी के बारे में जानकारी दे सकता है। रोहित के इस काम में काफी लोग स्वेच्छा से भी जुड़े हैं। इसलिए इनकी टीम जयपुर और फुलैरा में खास तौर पर सक्रिय रहती है। टीम का किसी भी सदस्य को जैसे ही किसी घायल पक्षी की जानकारी मिलती है वो अपने साथी सदस्यों के साथ उस जगह पर पहुंच जाता है जहां पर घायल पक्षी होता है। जिसके बाद वो उसे लेकर शेल्टर होम आते हैं और वहां पर डॉक्टर उस पक्षी का इलाज करते हैं। घायल पक्षियों की जान बचाने के अलावा रोहित और उनकी टीम स्कूली बच्चों को पक्षियों के प्रति जागरूक करने के लिए उनको जागरूक करने का काम भी करती है। टीम के सदस्य अलग अलग स्कूलों और कॉलेजों में वीडियो स्क्रिनिंग के जरिये बताते हैं कि पक्षियों में भी जान होती है, घायल हो जाने पर वो कितने लाचार हो जाते हैं, इलाज नहीं मिलने से वो किस तरह तड़प कर मर जाते हैं और उनका रहना हमारे लिए क्यों जरूरी हैं।




अपने संगठन ‘रक्षा’ के जरिये वो अब तक पक्षियों की कई प्रजातियों को बचा चुके हैं। जिसमें से प्रमुख हैं गोरैया, तोता, चील, बाज आदी। इसके अलावा उनकी टीम सांप और दूसरे रेगने वाले जीवों की भी रक्षा का काम करती है। अगर किसी के घर में सांप निकल आता है तो सूचना मिलने पर इनके स्पेशल वालंटियर वहां पर जाकर उसका रेसक्यू करते हैं। रोहित उन पक्षियों के बच्चों की भी देखभाल करते हैं जिनके मां बाप की मृत्यु हो जाती है। ऐसे बच्चों को वो अपने शेल्टर होम में लाकर उन्हें खाना और उड़ना सिखाते हैं। वो कहते हैं इन बच्चों को बड़ा होकर वो उनके प्राकृतिक निवास स्थान में छोड़ देते हैं। साथ ही अपना खाना ढूंढने के लिए उनको ट्रेंड भी करते हैं इसके लिए जब पक्षियों के बच्चे थोड़ा बड़े हो जाते हैं तो वो उनका खाना छुपा देते हैं जिससे वो पक्षी स्वंय अपना खाना ढूंढ सके।




रोहित और उनकी टीम हर साल जनवरी में संक्रांत के महीने में 4 दिन का कैम्प लगाते हैं। इस साल उन्होने संक्रांत पर 600 घायल पक्षियों का इलाज किया। इस कैम्प के अलावा उन्होने इस साल 1 हजार घायल पक्षियों का इलाज किया है जो कि जयपुर और फुलेरा में घायल अवस्था में उनको मिले थे। अपनी फंडिग के बारे में उनका कहना है कि ये काम वो पक्षियों के लिए दया भावना से कर रहे है। इसके लिए इन्हें अभी तक पैसे की कोई परेशानी नहीं हुई है। जब इनकी टीम पक्षियों को बचाने के लिए जाती है तो कई ऐसे लोग भी होते हैं जो इनके काम की खूब तारीफ करते हैं। तब उनमें से कुछ लोग स्वेच्छिक रूप से दान देते हैं। इसके अलावा टीम के सदस्य भी अपने इस काम के लिये आर्थिक रूप से मदद करते हैं। रोहित अपने इस काम को लेकर सोशल मीडिया में भी बहुत सक्रिय हैं। वो अपने काम से जुड़ी हर जानकारी सोशल मीडिया के जरिये लोगों के सामने रखते हैं। उनका मानना है कि उनके ऐसा करने से अगर एक व्यक्ति के मन में भी पक्षियों के प्रति दया की भावना जगती है तो ये उनके लिए बहुत बड़ी जीत होगी।


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