Hindi, asked by mutnishu2swit, 1 year ago

Hindi essay on insaniyat ( humanity )

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Answered by monu7bishnoi
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Insaaniyat :

Ajkal to ye sabdh hi sun ne mai ajeeb lagata hai phir log isske matlab aur maayne kaise jaanege ye bhi sochne wali baat hai . Insaaniyat jise saral bhasha mai manavta bhi kahate hai jo humaare ander ek insaan hone ke naate prakritik roop se hona chahiye . Insaaniyat se pahle hum ek achhe insaan bane to behtaar hai , insaaniyat to khud-b-khud aa jaayegi humre andar.manushya hone ke naate humaare andar manavta ka bhav bhagwaan ki banayi har jivit cheej ke prati hona chaiye .Phir chaahe wo ped  ho yaa jaanwar aur pakhi bhi . Hume sabke saath wo hi vyvhaar krna chahiye jo hum chahte hai kihumaare saath ho . Samman de aur samman le . Lekin aajkal ki aadhunik jeevan mai inka to chhodo ek aadmi dusre aadmi ke kaam nahi aa pata . Sadak pe agar koi durghatana bhi ho jaaye to koi rok kar nhi dekhta ki kya hua . koi kisi ko maare peete to bhi koi beech bachaav nhi krt a. Naa ab pyase ko paani pilate hai aur naahi ab koi bhukhe ko roti deta hai .Kyuki kisi ke pass samay nhi hai . Sab ek machien ban gye hai aur bhed chaal mai fase hue hai . kaha jaa  rhe hai khud ko nahi paat . Savedansheelta lagbhag mar gyi hai .Raat ke andhre  to chhodo ab log din ke ujaale mai bhi madad nhi krte . iss se pahle ki  sarshti ka ant aur vinaash hume ek dusre ke saath atmiyata se aur bahichaare se  rahana aur pesh aana chahiye . Pal bhar ki madad naa jaane kab kaam aa jaye uski duaao ki wajahh se . ek sachhi ghatana  hai  ki ek bete ki maa humesha ek aashram mai daan krti thi . Jabki wo ladka bachpan mai hi apne pita ko kho chuka tha. uski maa hi palan poshan krti thi . badi mehnat se us aurat ne use padhya aur ladka videsh uchh sikha ke liye gya tha . iss doran  bhi uski maa ne apne us daan ke niyam ko nahi toda. jab waha ke mahavidhyalya ne ladke ko pochha tumhara koi saga hai kya jise tum apne dishaant samaroh mai bulna chooge . to ladka bola main meri maa ko yaha lana  chahta hu muje dekhen ke liye lekin yatra ke liye paise nhi hai  aur ladke ne apni maa ka naam us mahavidhyalya prabandhan ko bataya. Kuch dino baad uski maa uske saamne thi kyuki Jis aashram ko uski maa kathin dor main bhi daan deti thi uska kuch hissa waha se iss mahavidhyalaya ko bhi aata hai . jo kisi ko pata nahi tha .naa maa ko aur naa hi bete ko .Isliye kahte hai ki bhala kre to bhala hi hoga . hume kabhi apni insaaniyat nhi bhoolni chahiye .hum sab ek bhawaan ki santaan hai aur ek pariwaar ki tarah sambke kaam aaye . ye hi koshis krni chahiye . 
Answered by Anonymous
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Answer:

समस्त संसार का एक ही मूलमंत्र होना चाहिए, वो है जीवमात्र पर दया करना। यह दया भाव मनुष्य का मनुष्य के प्रति या मनुष्य का अन्य जीवों के प्रति होती है। जीवमात्र पर दया करना ही मानवता है। पृथ्वी पर मनुष्य सबसे उत्तम और सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। हमारा यह दायित्व है कि हम सभी के प्रति मानवता निभाए। मानवता रखने वाले मनुष्य ही परोपकार करते है।

निस्वार्थ भाव से सेवा भावना रखना मानवता की उच्च कोटि है। संसार में मानव ही एकमात्र जीव है जो सोचने समझने की शक्ति रखता है। मनुष्य ही अपनी भावना को बोलकर व्यक्त कर सकता है। अच्छे और बुरे की पहचान स्वयं के विवेक से मनुष्य कर सकता है। इसलिए मानवता निभाने की जिम्मेदारी इंसान की ही है। मानवता दिखाना सज्जन व्यक्ति की निशानी है।

प्रत्येक कालखंड का इतिहास उठाकर देख लीजिए, मानवता कई बार शर्मसार हुई है। मनुष्य ने लोभ और लालच में आकर मानवता को ताक पर रखा है। वैसे इतिहास में ऐसे भी कई प्रसंग है, जहाँ मनुष्य ने मानवता की कई मिसाले दी है। दुनिया में कई लोग कुकर्मी और अत्याचारी है जो मानवता की भावना नही रखते है। दूसरों का हित करना तो दूर वो लोग दूसरों का अहित करने की सोचते है। आज लोग किसी गरीब का हक मारने में भी संकोच नही करते है।

महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला जैसे महापुरुषों ने दुनिया को मानवता का पाठ पढ़ाया है। गाँधीजी ने सत्य और अहिंसा के बल पर ही अंग्रेजो को देश से भगाया था। बुरा मत देखों, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो, ये विचार मानवता का पर्याय ही है। भगवान बुद्ध, भगवान महावीर स्वामी जैसी महान आत्माओं ने धरती पर जीवमात्र पर दया का उपदेश दिया था।

मनुष्य का कर्तव्य बनता है कि वह मानवता का सम्मान करें और समय समय पर मानवता दिखाए। किसी भूखे व्यक्ति को खाना खिलाना या प्यासे को पानी पिलाना मानवता है। सर्दी की कपकपाती ठंड में गरीबो और बेघरों को कंबल देना भी मानवता की श्रेस्ठ कसौटी है। किसी भी प्रकार की दुर्घटना में घायल व्यक्ति की मदद करना भी मनावता की निशानी है।

गर्मियों में पशु पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करना भी मानवता है। एक इंसान जब बिना लालच के किसी दूसरे इंसान की मदद करता है, तो यह मानवता है। भूकंप और अकाल जैसी विकट परिस्थितियों में कई सामाजिक संगठन निस्वार्थ भाव से कार्य करते है जो मानवता ही है।

क्षमा वीरों को शोभा देती है। कोई आपके साथ बुरा करता है और अगर उसे इस बात का पछतावा है तो मानवता दिखाकर उसे क्षमा करना श्रेस्ठ है। किसी भी गरीब की आर्थिक रूप से मदद करना भी मानवता है। अगर ईश्वर ने आपको धन दिया है तो उसे मानवता की भलाई में खर्च करना चाहिए। दान पुण्य करना मानवता ही है। मानवता इंसान का धर्म है जो ईश्वर का आदेश है।

प्रत्येक वर्ष 19 अगस्त को विश्व मानवता दिवस मनाया जाता है। अगर आप मनुष्य है तो मानवता आपको दिखानी होगी। मनुष्य का धर्म जीव मात्र पर दया करना है। अगर आप किसी को दुख में देखकर दुखी होते है, तो यह भाव ही मानवता है।

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