hindi essay on mere adarsh adyapeeka (200 -250)
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hi guy here's your answer
अध्यापक और समाज में एक घनिष्ठ सम्बन्ध होता है | किसी भी समाज व् राष्ट्र की उन्नति उस देश के आदर्श, सुयोग्य तथा चरित्रवान अध्यापको पर निर्भर करती है | अध्यापक को राष्ट्र का निर्माता समझा जाता है | एक अध्यापक की तुलना हम सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा से भी कर सकते है | जैसे ब्रह्मा का कार्य संसार के प्रत्येक प्राणी और पदार्थ को बनाना है, उसी प्रकार उन सब बने हुए मनुष्यों को संसार के व्यवहार योग्य बनाना, सजा – संवार कर प्रस्तुत करना एक आदर्श अध्यापक का कार्य है | इन कार्यो को भली प्रकार पूरा करने के लिए अध्यापक को सुयोग्य चरित्रवान तथा कर्त्तव्य – परायण होना चाहिए |
हमारे देश भारत में प्राचीन काल में प्राय: आदर्श अध्यापक ही होते थे तथा उन्हें ही अध्यापन का कार्य सौपा जाता था | ऐसे अध्यापको का जीवन स्वार्थ तथा लोभ से दूर रहता था | उनका जीवन तपोमय तथा ह्रदय विशाल होता था | परन्तु आज हमे इसके विपरीत की स्थिति दिखाई पडती है | आज के आध्यापक में ऐसा कर पाने का गुण व् शक्ति नही रह गई है | उनकी मनोवृत्ति आम व्यवसायियों और दुकानदारों जैसी हो गई है जिनका मुख्य लक्ष्य धन – कमाना होता है | यह बहुत खेद की बात है | हमे अपनी विचारधारा में परिवर्तन कर आदर्श जीवन अपनाना चाहिए | क्योकि आदर्श अध्यापक ही राष्ट्र का सच्चा गुरु होता है | तथा मानव – जीवन को ऊचा उठाता है |
आदर्श अध्यापक में अनेक गुण विद्दमान होते है | वह प्रत्येक विद्दार्थी के साथ प्रेम का व्यवहार करता है | वह दिन, दुखी तथा असहाय विद्दार्थियो की आवश्यकतानुसार सहायता करना अपना कर्त्तव्य समझता है | वह सच्चे अर्थो में विद्वान होता है जिसे अपनी विद्वता पर अहंकार नही होता है | उसका अपने विद्दार्थियो के सम्मुख एक- एक पग आदर्श का होता है | वह सदैव अपने विद्दार्थियो के चरित्र – निर्माण में अपना जीवन लगा देता है | उसका ह्रदय परोपकारी होता है |
अध्यापक और समाज में एक घनिष्ठ सम्बन्ध होता है | किसी भी समाज व् राष्ट्र की उन्नति उस देश के आदर्श, सुयोग्य तथा चरित्रवान अध्यापको पर निर्भर करती है | अध्यापक को राष्ट्र का निर्माता समझा जाता है | एक अध्यापक की तुलना हम सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा से भी कर सकते है | जैसे ब्रह्मा का कार्य संसार के प्रत्येक प्राणी और पदार्थ को बनाना है, उसी प्रकार उन सब बने हुए मनुष्यों को संसार के व्यवहार योग्य बनाना, सजा – संवार कर प्रस्तुत करना एक आदर्श अध्यापक का कार्य है | इन कार्यो को भली प्रकार पूरा करने के लिए अध्यापक को सुयोग्य चरित्रवान तथा कर्त्तव्य – परायण होना चाहिए |
हमारे देश भारत में प्राचीन काल में प्राय: आदर्श अध्यापक ही होते थे तथा उन्हें ही अध्यापन का कार्य सौपा जाता था | ऐसे अध्यापको का जीवन स्वार्थ तथा लोभ से दूर रहता था | उनका जीवन तपोमय तथा ह्रदय विशाल होता था | परन्तु आज हमे इसके विपरीत की स्थिति दिखाई पडती है | आज के आध्यापक में ऐसा कर पाने का गुण व् शक्ति नही रह गई है | उनकी मनोवृत्ति आम व्यवसायियों और दुकानदारों जैसी हो गई है जिनका मुख्य लक्ष्य धन – कमाना होता है | यह बहुत खेद की बात है | हमे अपनी विचारधारा में परिवर्तन कर आदर्श जीवन अपनाना चाहिए | क्योकि आदर्श अध्यापक ही राष्ट्र का सच्चा गुरु होता है | तथा मानव – जीवन को ऊचा उठाता है |
आदर्श अध्यापक में अनेक गुण विद्दमान होते है | वह प्रत्येक विद्दार्थी के साथ प्रेम का व्यवहार करता है | वह दिन, दुखी तथा असहाय विद्दार्थियो की आवश्यकतानुसार सहायता करना अपना कर्त्तव्य समझता है | वह सच्चे अर्थो में विद्वान होता है जिसे अपनी विद्वता पर अहंकार नही होता है | उसका अपने विद्दार्थियो के सम्मुख एक- एक पग आदर्श का होता है | वह सदैव अपने विद्दार्थियो के चरित्र – निर्माण में अपना जीवन लगा देता है | उसका ह्रदय परोपकारी होता है |
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