Hindi essay on vridh ashram ka prasar avam adhunik parivar
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हमारा समाज किस और जा रहा है?युवा पीढ़ी को क्यों भार लग रहे है अपने माता पिता?हमारा समाज जिस संस्कृति का दंभ भर रहा था आज तक,सारे विश्व में अपनी संस्कृति की,अपनी परिवार की गाथा गा रहा था आज वही गली गली में वृद्ध आश्रम खुल रहे है.क्या यही हमारी प्रगति है?या हमारी युवा पीढ़ी अपने कर्त्तव्य से विमुख रही है?क्या हो गया है हमें की हम आज केवल स्वार्थी होकर रह गए है.स्व के अलावा हमें कुछ दिखता नहीं है.हमारा करिअर,हमारी तरक्की ,हमारे बच्चे.बस हम दो हमारे दो के अलावा हमारा अपना कोई नहीं?अपने पन का मीठा अहसास न जाने कहा लुप्त हो गया है.पडोसी,अपने सगे सम्बन्धी ,सारे रिश्ते नाते जैसे दिखावे के छलावे में कैद हो गए है.ये हम किस और जा रहे है?क्या यह सही हो रहा है?किसे परवाह है की हमारी संस्कृति पर जगह जगह वृध्द आश्रम खोल हम कलंक लगा रहे है.जिन माता पिता ने हमें हाथ थाम चलाना सिखाया ,जब उनके पैर डगमगाने लगे ,उन्हें सहारा देने के बजाय हमने उनसे किनारा कर लिया?हमें दुःख होना चाहिए की हमें ममता की छाव में पाल पोस कर बड़े करने वाले हमारे माता पिता के साथ हम ऐसा अमानवीय,अकर्मनीय अशोभनीय बर्ताव कर रहे है.आज हमारे भारत देश में जगह जगह पालना घर खुल रहे है और पूरा विश्व दादा दादी के साथ नन्हे मुन्नों को रखने के लिए जोर दे रहा है.जहा परिवार का हर सदस्य एक दुसरे के सुख बाट लेता था उस देश में ये उलटी गंगा कैसे बह रही है.पश्चिम वाले हमारी संस्कृति को अपनाने के लिए तरस रहे है और हम है की आंखे मूंदकर भौतिक सुख सुविधोके पीछे भाग रहे है.अपनो को भुला रहे है.अपने कर्त्तव्य को भूल रहे है.ये सामाजिक विघटन की और जाने वाला खतरनाक मोड़ है जो हमें घर से बेघर कर देगा.समय रहते जाग जाओ मेरे देश वासियों.माता पिता के साथ रहो.उनकी छत्र छाया में स्वर्ग सुख ही मिलेगा,दुःख तो कभी नहीं.