Hindi, asked by doabathewedding, 1 year ago

Hindi essay pashu pakshiyon ki swatantarta

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Answered by keerthisri
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आवारा पशु पक्षियों की समस्या एवं उनके निदान
वर्तमान मे आवारा पशु पक्षी शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रो मे गंभीर समस्या बन गई है । गाय , भैस , बैल , बकरियाँ , कुत्ते , मुर्गे आदि आवारा पशुपक्षी  रहवासी इलाको मे बहुतायत से घूमते मिल जाते है। यदि इस समस्या का निदान नहीं किया गया तो इसके कई दुष्प्रभाव हो सकते है। आवारा पशु यातायात को बाधित करते है जिससे सड़क       दुर्घटनाएँ होती है और यातायात जाम भी हो जाता  है। आवारा पशुपक्षी  अपने मल-मूत्र से गाँव और शहर को अस्वच्छ करते है । इस से कई बीमारियाँ फेलने का खतरा होता है ।
आवारा पशुपक्षी  की समस्या से निदान के लिए शासन को सख्ती के साथ इन पशुओं को कांजी हाउस मे डालना चाहिए । इसके साथ  ही इनके मालिकों पर भी सख्त कारवाई करनी चाहिए ताकि वे अपने पालतू पशुओ को आवारा न छोड़े । साथ साथ घनी आवादी वाले क्षेत्रो मे पालतू पशुओ की संख्या पर भी सीमा होना चाहिए।
रेडियो , टेलिविजन , समाचार पत्र आदि संचार  के साधनो के माध्यम से लोगो मे इस समस्या के प्रति जागरूकता फेलाना चाहिए। 
हालांकि मानव गतिविधियों ने बार्न स्वैलो और यूरोपीय स्टार्लिंग जैसी कुछ प्रजातियों के विस्तार की अनुमति दी है, परन्तु कई अन्य प्रजातियों में जनसंख्या घट जाती है या विलुप्त होने का कारण है।
उन्नीसवी सदी की शुरूवात में ब्रिटिश हुकूमत के एक अफ़सर को लहूलुहान कर देने से यह गाँव चर्चा में आया मसला था। एक खूबसूरत पक्षी प्रजाति को बचाने का, जो सदियों से इस गाँव में रहता आया। बताते हैं कि ग्रामीण ये लड़ाई भी जीते थे, कौर्ट मौके पर आयी और ग्रामीणों के पक्षियों पर हक जताने का सबूत मांगा, तो इन परिन्दों ने भी अपने ताल्लुक साबित करने में देर नही की, इस गाँव के बुजर्गों की जुबानी कि उनके पुरखों की एक ही आवाज पर सैकड़ों चिड़ियां उड़ कर उनके बुजर्गों के आस-पास आ गयी, मुकदमा खारिज़ कर दिया गया।
गाँव वालों के घरों के आस-पास लगे वृक्षों पर ये पक्षी रहते है और ये ग्रामीण उन्हे अपने परिवार का हिस्सा मानते है, यदि कोई इन्हे हानि पहुंचानें की कोशिश करता है तो उसका भी हाल उस बरतानियां सरकार के नुमाइन्दे की तरह हो जाता है...अदभुत और बेमिसाल संरक्षण। खासबात ये है कि हज़ारों की तादाद में ये पक्षी यहां रहते आये है और इन्हे किसी भी तरह का सरकारी सरंक्षण नही प्राप्त है और न ही कथित सरंक्षण वादियों की इन पर नज़र पड़ी है, शायद यही कारण है कि यह पक्षी बचे हुए हैं! अफ़सोस सिर्फ़ ये है ग्रामीणों के इस बेहतरीन कार्य के लिए सरकारों ने उन्हे अभी तक कोई प्रोत्साहन नही दिया, जिसके वो हकदार हैं। जिला लखीमपुर का एक गांव सरेली, जहां पक्षियों की एक प्रजाति सैंकड़ों वर्षों से अपना निवास बनाये हुये है। और यहां के ग्रामीण इस पक्षी को पीढ़ियों से संरक्षण प्रदान करते आ रहे हैं। यह गांव मोहम्मदी तहसील के मितौली ब्लाक के अन्तर्गत आता है। पक्षियों की यह प्रजाति जिसे ओपनबिलस्टार्क कहते हैं। यह पक्षी सिकोनिडी परिवार का सदस्य है। इसकी दुनियां में कुल 20 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 8 प्रजातियां भारत में मौजूद हैं। ओपनबिलस्टार्क सामान्यतः भारतीय उपमहाद्वीप, थाईलैण्ड व वियतनाम, में निवास करते है तथा भारत में जम्मू कश्मीर व अन्य बर्फीले स्थानों को छोड़कर देश के लगभग सभी मैदानी क्षेत्रों में पाये जाते हैं। चिड़ियों की यह प्रजाति लगभग 200 वर्षों से लगातार हजारों की संख्याओं में प्रत्येक वर्ष यहां अपने प्रजनन काल में जून के प्रथम सप्ताह में आती है। यह अपने घोसले मुख्यतः इमली, बरगद, पीपल, बबूल, बांस व यूकेलिप्टस के पेड़ों पर बनाते हैं। स्टार्क पक्षी इस गांव में लगभग 400 के आसपास अपने घोसले बनाते हैं। एक पेड़ पर 40 से 50 घोसले तक पाये जाते हैं। प्रत्येक घोसले में 4 से 5 अण्डे होते हैं। सितम्बर के अन्त तक इनके चूजे बड़े होकर उड़ने में समर्थ हो जाते हैं और अक्टूबर में यह पक्षी यहां से चले जाते हैं। यह सिलसिला ऐसे ही वर्षों से चला आ रहा है। चूंकि यह पक्षी मानसून के साथ-साथ यहां आते हैं इसलिए ग्रामीण इसे बरसात का सूचक मानते हैं। गांव वाले इसको पहाड़ी चिड़िया के नाम से पुकारते हैं, जबकि यह चिड़िया पहाड़ों पर कभी नहीं जाती। इनके पंख सफेद व काले रंग के और पैर लाल रंग के होते हैं। इनका आकार बगुले से बड़ा और सारस से छोटा होता है। इनकी चोंच के मध्य खाली स्थान होने के कारण इन्हें ओपनबिल कहा गया। चोंच का यह आकार घोंघे को उसके कठोर आवरण से बाहर निकालने में मदद करता है। यह पक्षी पूर्णतया मांसाहारी है। जिससे गांव वालों की फसलों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। गांव वालों के अनुसार आज से 100 वर्ष पूर्व यहां के जमींदार श्री बल्देव प्रसाद ने इन पक्षियों को पूर्णतया संरक्षण प्रदान किया था और यह पक्षी उनकी पालतू चिड़िया के रूप में जाने जाते थे। तभी से उनके परिवार द्वारा इन्हें आज भी संरक्षण दिया जा रहा है। यह पक्षी इतना सीधा व सरल स्वभाव का है कि आकार में इतना बड़ा होने कें बावजूद यह अपने अण्डों व बच्चों का बचाव सिकरा व कौओं से भी नहीं कर पाता। यही कारण है कि यह पक्षी यहां अपने घोसले गांव में ही पाये जाने वाले पेड़ों पर बनाते हैं। जहां ग्रामीण इनके घोसले की सुरक्षा सिकरा व अन्य शिकारी चिड़ियों से करते हैं। 
यहा गाँव दो स्थानीय नदियों पिरई और सराय के मध्य स्थिति है गाँव के पश्चिम नहर और पूरब सिंचाई नाला होने के कारण गाँव के तालाबों में हमेशा जल भराव रहता है। जिससे इन पक्षियों का भोजन घोंघा, मछली आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता है। ओपनबिलस्टार्क का मुख्य भोजन घोंघा, मछली, केंचुऐ व अन्य छोटे जलीय जन्तु हैं। इसी कारण इन पक्षियों के प्रवास से यहां के ग्रामीणों को प्लेटीहेल्मिन्थस संघ के 

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