Hindi kavita ki Vikas Yatra se app bhali bhati parichit hai app kis Kaal ki Kavita se Sarvadhik prabhavit hai aur Kyon us kaal ki mukhye visheshtain aur rachnakaro ke naam likhiye 100 to 150 shabd me likhna he
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छायावाद के प्रमुख कवि हैं- सर्वश्री जयशंकर प्रसाद,सुमित्रानंदन पंत,सूर्यकांत त्रिपाठी'निराला' तथा महादेवी वर्मा। अन्य कवियों में डॉ.रामकुमार वर्मा, हरिकृष्ण'प्रेमी',जानकी वल्लभ शास्त्री,भगवतीचरण वर्मा, उदयशंकर भट्ट,नरेन्द्र शर्मा,रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' के नाम उल्लेखनीय हैं। इनकी रचनाएं निम्नानुसार हैं :-
1. जय शंकर प्रसाद (1889-1936 ई.) के काव्य संग्रह :1.चित्राधार(ब्रज भाषा में रचित कविताएं); 2.कानन-कुसुम; 3. महाराणा का महत्त्व; 4.करुणालय; 5.झरना ;6.आंसू; 7.लहर; 8.कामायनी।
2. सुमित्रानंदन पंत (1900-1977ई.) के काव्य संग्रह :1.वीणा; 2.ग्रन्थि;3.पल्लव; 4.गुंजन ;5. युगान्त ;6. युगवाणी; 7.ग्राम्या;8.स्वर्ण-किरण; 9. स्वर्ण-धूलि;10. युगान्तर; 11.उत्तरा ;12. रजत-शिखर; 13.शिल्पी; 14.प्रतिमा; 15.सौवर्ण; 16.वाणी ;17.चिदंबर; 18.रश्मिबंध; 19.कला और बूढ़ा चांद; 20.अभिषेकित; 21.हरीश सुरी सुनहरी टेर; 22. लोकायतन; 23.किरण वीणा ।
3. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'(1898-1961ई.)के काव्य-संग्रह: 1.अनामिका ;2. परिमल; 3.गीतिका ;4.तुलसीदास; 5. आराधना;6.कुकुरमुत्ता; 7.अणिमा; 8. नए पत्ते; 9.बेला; 10.अर्चना ।
4. महादेवी वर्मा(1907-1988ई.) की काव्य रचनाएं:1.रश्मि ;2.निहार; 3.नीरजा; 4.सांध्यगीत; 5.दीपशिखा; 6.यामा ।
5. डॉ.रामकुमार वर्मा(1905- )की काव्य रचनाएं :1.अंजलि ;2.रूपराशि; 3.चितौड़ की चिता; 4.चंद्रकिरण; 5.अभिशाप ;6. निशीथ; 7.चित्ररेखा;8.वीर हमीर; 9. एकलव्य।
6. हरिकृष्ण'प्रेमी'(1908- )की काव्य रचनाएं : 1.आखों में ;2.अनंत के पथ पर; 3.रूपदर्शन; 4. जादूगरनी; 5.अग्निगान; 6.स्वर्णविहान।
छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का विभाजन हम तीन या दो शीर्षकों के अंतर्गत कर सकते हैं।
पहले के अनुसार- 1. विषयगत, 2. विचारगत और 3. शैलीगत।दूसरे के अनुसार- 1. वस्तुगत और 2. शैलीगत।
विषयगत प्रवृत्तियाँसंपादित करें
छायावादी कवियों ने मूलतः सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना की है जिसे हम तीन खण्डों में विभाजित कर सकते हैं-
1. नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण तथा2. प्रकृत्ति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना3. इसके आगे चलकर छायावाद अलौकिक प्रेम या रहस्यवाद के रूप में सामने आता है। कुछ आचार्य इसे छायावाद की ही एक प्रवृत्ति मानते हैं और कुछ इसे साहित्य का एक नया आंदोलन।
नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण छायावादी कवियों ने नारी को प्रेम का आलंबन माना है। उन्होंने नारी को प्रेयसी के रूप में ग्रहण किया जो यौवन और ह्रृदय की संपूर्ण भावनाओं से परिपूर्ण है। जिसमें धरती का सौंदर्य और स्वर्ग की काल्पनिक सुषमा समन्वित है। अतः इन कवियों ने प्रेयसी के कई चित्र अंकित किये हैं। कामायनी में प्रसाद ने श्रद्धा के चित्रण में जादू भर दिया है। छायावादी कवियों का प्रेम भी विशिष्ट है।
इनके प्रेम की पहली विशेषता है कि इन्होंने स्थूल सौंदर्य की अपेक्षा सूक्ष्म सौंदर्य का ही अंकन किया है। जिसमें स्थूलता, अश्लीलता और नग्नता नहींवत है। जहाँ तक प्रेरणा का सवाल है छायावादी कवि रूढि, मर्यादा अथवा नियमबद्धता का स्वीकार नहीं करते। निराला केवल प्राणों के अपनत्व के आधार पर, सब कुछ भिन्न होने पर अपनी प्रेयसी को अपनाने के लिए तैयार हैं।इन कवियों के प्रेम की दूसरी विशेषता है - वैयक्तिकता। जहाँ पूर्ववर्ती कवियों ने कहीं राधा, पद्मिनी, ऊर्मिला के माध्यम से प्रेम की व्यंजना की है तो इन कवियों ने निजी प्रेमानुभूति की व्यंजना की है।इनके प्रेम की तीसरी विशेषता है- सूक्ष्मता। इन कवियों का श्रृंगार-वर्णन स्थूल नहीं, परंतु इन्होंने सूक्ष्म भाव-दशाओं का वर्णन किया है। चौथी विशेषता यह है कि इनकी प्रणय-गाथा का अंत असफलता में पर्यवसित होता है। अतः इनके वर्णनों में विरह का रुदन अधिक है। ह्रृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावनाओं को साकार रूप में प्रस्तुत करना छायावादी कविता का सबसे बड़ा कार्य है।
प्रकृत्ति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना प्रकृति सौंदर्य का सरसतम वर्णन और उससे प्रेम का वर्णन भी छायावादी कवियों की शृंगारिकता का दूसरा रूप है।
छायावाद के प्रकृतिप्रेम की पहली विशेषता है कि वे प्रकृति के भीतर नारी का रूप देखते हैं, उसकी छवि में किसी प्रेयसी के सौंदर्य-वैभव का साक्षात्कार करते हैं। प्रकृति की चाल-ढाल में किसी नवयौवना की चेष्टाओं का प्रतिबिंब देखते हैं। उसके पत्ते के मर्मर में किसी बाला-किशोरी का मधुर आलाप सुनते हैं। प्रकृति में चेतना का आरोपण सर्व प्रथम छायावादी कवियों ने ही किया है।
1. जय शंकर प्रसाद (1889-1936 ई.) के काव्य संग्रह :1.चित्राधार(ब्रज भाषा में रचित कविताएं); 2.कानन-कुसुम; 3. महाराणा का महत्त्व; 4.करुणालय; 5.झरना ;6.आंसू; 7.लहर; 8.कामायनी।
2. सुमित्रानंदन पंत (1900-1977ई.) के काव्य संग्रह :1.वीणा; 2.ग्रन्थि;3.पल्लव; 4.गुंजन ;5. युगान्त ;6. युगवाणी; 7.ग्राम्या;8.स्वर्ण-किरण; 9. स्वर्ण-धूलि;10. युगान्तर; 11.उत्तरा ;12. रजत-शिखर; 13.शिल्पी; 14.प्रतिमा; 15.सौवर्ण; 16.वाणी ;17.चिदंबर; 18.रश्मिबंध; 19.कला और बूढ़ा चांद; 20.अभिषेकित; 21.हरीश सुरी सुनहरी टेर; 22. लोकायतन; 23.किरण वीणा ।
3. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'(1898-1961ई.)के काव्य-संग्रह: 1.अनामिका ;2. परिमल; 3.गीतिका ;4.तुलसीदास; 5. आराधना;6.कुकुरमुत्ता; 7.अणिमा; 8. नए पत्ते; 9.बेला; 10.अर्चना ।
4. महादेवी वर्मा(1907-1988ई.) की काव्य रचनाएं:1.रश्मि ;2.निहार; 3.नीरजा; 4.सांध्यगीत; 5.दीपशिखा; 6.यामा ।
5. डॉ.रामकुमार वर्मा(1905- )की काव्य रचनाएं :1.अंजलि ;2.रूपराशि; 3.चितौड़ की चिता; 4.चंद्रकिरण; 5.अभिशाप ;6. निशीथ; 7.चित्ररेखा;8.वीर हमीर; 9. एकलव्य।
6. हरिकृष्ण'प्रेमी'(1908- )की काव्य रचनाएं : 1.आखों में ;2.अनंत के पथ पर; 3.रूपदर्शन; 4. जादूगरनी; 5.अग्निगान; 6.स्वर्णविहान।
छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का विभाजन हम तीन या दो शीर्षकों के अंतर्गत कर सकते हैं।
पहले के अनुसार- 1. विषयगत, 2. विचारगत और 3. शैलीगत।दूसरे के अनुसार- 1. वस्तुगत और 2. शैलीगत।
विषयगत प्रवृत्तियाँसंपादित करें
छायावादी कवियों ने मूलतः सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना की है जिसे हम तीन खण्डों में विभाजित कर सकते हैं-
1. नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण तथा2. प्रकृत्ति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना3. इसके आगे चलकर छायावाद अलौकिक प्रेम या रहस्यवाद के रूप में सामने आता है। कुछ आचार्य इसे छायावाद की ही एक प्रवृत्ति मानते हैं और कुछ इसे साहित्य का एक नया आंदोलन।
नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण छायावादी कवियों ने नारी को प्रेम का आलंबन माना है। उन्होंने नारी को प्रेयसी के रूप में ग्रहण किया जो यौवन और ह्रृदय की संपूर्ण भावनाओं से परिपूर्ण है। जिसमें धरती का सौंदर्य और स्वर्ग की काल्पनिक सुषमा समन्वित है। अतः इन कवियों ने प्रेयसी के कई चित्र अंकित किये हैं। कामायनी में प्रसाद ने श्रद्धा के चित्रण में जादू भर दिया है। छायावादी कवियों का प्रेम भी विशिष्ट है।
इनके प्रेम की पहली विशेषता है कि इन्होंने स्थूल सौंदर्य की अपेक्षा सूक्ष्म सौंदर्य का ही अंकन किया है। जिसमें स्थूलता, अश्लीलता और नग्नता नहींवत है। जहाँ तक प्रेरणा का सवाल है छायावादी कवि रूढि, मर्यादा अथवा नियमबद्धता का स्वीकार नहीं करते। निराला केवल प्राणों के अपनत्व के आधार पर, सब कुछ भिन्न होने पर अपनी प्रेयसी को अपनाने के लिए तैयार हैं।इन कवियों के प्रेम की दूसरी विशेषता है - वैयक्तिकता। जहाँ पूर्ववर्ती कवियों ने कहीं राधा, पद्मिनी, ऊर्मिला के माध्यम से प्रेम की व्यंजना की है तो इन कवियों ने निजी प्रेमानुभूति की व्यंजना की है।इनके प्रेम की तीसरी विशेषता है- सूक्ष्मता। इन कवियों का श्रृंगार-वर्णन स्थूल नहीं, परंतु इन्होंने सूक्ष्म भाव-दशाओं का वर्णन किया है। चौथी विशेषता यह है कि इनकी प्रणय-गाथा का अंत असफलता में पर्यवसित होता है। अतः इनके वर्णनों में विरह का रुदन अधिक है। ह्रृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावनाओं को साकार रूप में प्रस्तुत करना छायावादी कविता का सबसे बड़ा कार्य है।
प्रकृत्ति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना प्रकृति सौंदर्य का सरसतम वर्णन और उससे प्रेम का वर्णन भी छायावादी कवियों की शृंगारिकता का दूसरा रूप है।
छायावाद के प्रकृतिप्रेम की पहली विशेषता है कि वे प्रकृति के भीतर नारी का रूप देखते हैं, उसकी छवि में किसी प्रेयसी के सौंदर्य-वैभव का साक्षात्कार करते हैं। प्रकृति की चाल-ढाल में किसी नवयौवना की चेष्टाओं का प्रतिबिंब देखते हैं। उसके पत्ते के मर्मर में किसी बाला-किशोरी का मधुर आलाप सुनते हैं। प्रकृति में चेतना का आरोपण सर्व प्रथम छायावादी कवियों ने ही किया है।
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