hindi ki zarurat in hindi essay
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अंग्रेजी भाषा के समर्थकों ने यह चाहा कि अंग्रेजी ही भारत की राष्ट्रभाषा बनी रहे । परन्तु विचार विमर्श के पश्चात् इस निर्णय पर पहुंचे कि अँग्रेजी कैवल पढ़े-लिखे समाज द्वारा ही प्रयोग में लायी जाती थी, इसलिए अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया जा सकता था । दूसरा कारण यह भी था कि भारतीय दो सौ से भी अधिक वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा सताए गए, वे उन अंग्रेजों की भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते थे ।
अंततः 1 सितम्बर, 1949 को संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया । इसलिए प्रतिवर्ष 14 सितंबर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया. जाता है । भारतवर्ष में हिंदी से संबंधित अनेक- प्रकार की प्रतियोगिताएं, कवि सम्मेलन करवाए जाते हैं । आजादी के बाद भी भारत देश में अंग्रेजी फलती फूलती रही परन्तु देशवासियों को यह मंजूर न था । हिंदी को जो अधिकार मिलना चाहिए था वह उसकी अधिकारिणी नहीं बन पायी । आज भी अंग्रेजी बोलने वाले को ही मान्यता दी जाती है ।
हिंदी बोलते समय लज्जा का अनुभव करते हैं । दूसरों की भाषा अंग्रेजी बोलते समय गर्व महसूस करते हैं । आज हिंदी जिस हालत में है उसके जिम्मेदार भी. हम है । सरकार, नेतागण एवं भारतवासी सभी इसके जिम्मेदार है. । दूसरे देशों के नेता कभी भी अपनी राष्ट्रभाषा को छोड्कर किसी अन्य भाषा में भाषण नहीं देते और उनकी राष्ट्रभाषा जो भी है उस पर गर्व महसूस करते हैं । अपनी राष्ट्रभाषा जो भी है उस पर गर्व महसूस करते हैं ।
किसी भी राष्ट्र की पहचान उसके भाषा और उसके संस्कृति से होती है और पूरे विश्व में हर देश की एक अपनी भाषा और अपनी एक संस्कृति है जिसे छाव में उस देश के लोग पले बड़े होते है यदि कोई देश अपनी मूल भाषा को छोड़कर दुसरे देश की भाषा पर आश्रित होता है उसे सांस्कृतिक रूप से गुलाम माना जाता है,क्यूकी जिस भाषा को लोग अपने पैदा होने से लेकर अपने जीवन भर बोलते है लेकिन आधिकारिक रूप से दुसरे भाषा पर निर्भर रहना पड़े तो कही न कही उस देश के विकास में उस देश की अपनाई गयी भाषा ही सबसे बड़ी बाधक बनती है क्यूकी आप कल्पना कर सकते है जिस भाषा अपने बचपन से बोलते है और उसी भाषा में अपने सारे कार्य करने पढ़े तो आपको आगे बढने में ज्यादा परेशानी नही होगी लेकिन यदि आप जो बोलते है उसे छोड़कर कोई दूसरी भाषा में आपको कार्य करना पड़े तो कही न कही यही दूसरी भाषा हमारे विकास में बाधक जरुर बनती है,
यानी हमे दुसरो की भाषा सीखने का मौका मिले तो यह अच्छी बात है लेकिन दुसरो की भाषा के चलते अपनी मातृभाषा को छोड़ना पड़े तो कही न कही दिक्कत का सामना जरुर करना पड़ता है तो ऐसे में आज हम बात करते है अपने देश भारत के राजभाषा हिंदी के बारे में जो हमारी मातृभाषा भी है और हमे इसे बोलने में फक्र महसूस करना चाहिए.हमारे देश की मूल भाषा हिंदी है लेकिन भारत में अंग्रेजो की गुलामी के बाद हमारे देश के भाषा पर भी अंग्रेजी भाषा का आधिपत्य हुआ भारत देश तो आजाद हो गया लेकिन हिंदी भाषा पर अंग्रेजी भाषा का आज भी आधिपत्य आज तक कायम है अक्सर अपने देश के लोग के मुह से यह कहते हुए सुना जाता है की हमारी हिंदी थोड़ी कमजोर है ऐसा कहने का तात्पर्य यही होता है की उनकी अंगेजी भाषा हिंदी के मुकाबले काफी अच्छी है और यदि भूल से यह कह दे की हमारी अंग्रेजी कमजोर है तो उसे लोग कम पढ़ा लिखा मान लेते है क्या यह सही है किसी भाषा पर अगर हमारी अच्छी पकड न हो तो क्या इसे अनपढ़ मान लिया जाय शायद ऐसा होना हमारे देश की विडम्बना है,l
-ananya ☺️